सेंट पॉल्स कॉलेज में तुलसीदास एवं प्रेमचंद जयंती पर साहित्य और मानव-मूल्यों की गूँज

कोलकाता स्थित सेंट पॉल्स कैथेड्रल मिशन कॉलेज में गोस्वामी तुलसीदास और मुंशी प्रेमचंद की जयंती संयुक्त रूप से मनाई गई। इस अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने दोनों साहित्यकारों की प्रासंगिकता, भाषा-शैली, मानव-मूल्य और साहित्यिक चेतना पर गहराई से विमर्श किया। कार्यक्रम में शिक्षकों और विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी रही। आयोजन ने समकालीन संदर्भ में तुलसी और प्रेमचंद जैसे कालजयी साहित्यकारों के विचारों को पुनः जीवंत कर दिया।

Jul 31, 2025 - 17:10
Jul 31, 2025 - 17:38
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सेंट पॉल्स कॉलेज में तुलसीदास एवं प्रेमचंद जयंती पर साहित्य और मानव-मूल्यों की गूँज
सेंट पॉल्स कैथेड्रल मिशन कॉलेज के विद्यार्थी एवं प्राध्यापक

 कोलकाता, 31 जुलाई। साहित्य और संवेदना के दो शिखर व्यक्तित्व गोस्वामी तुलसीदास और प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में सेंट पॉल्स कैथेड्रल मिशन कॉलेज में एक प्रेरणादायी संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य समाज में बढ़ रही निराशा और हिंसा के बीच विवेक, संवेदना और नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना करना रहा।

कॉलेज अध्यक्ष डॉ. सुदीप्त मिद्दे ने उद्घाटन भाषण में कहा कि “तुलसीदास और प्रेमचंद जैसे साहित्यकारों का स्मरण केवल परंपरा का निर्वाह नहीं, बल्कि मानव-मूल्य आधारित समाज के पुनर्निर्माण की चेतना है।”

मुख्य वक्ता प्रो. विनायक भट्टाचार्य (बांग्ला विभाग) ने तुलसी और प्रेमचंद के युगीन संघर्ष और साहित्यिक दृष्टि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनका साहित्य आज भी सामाजिक चुनौतियों से संवाद करता है।

डॉ. शेख मक़बूल इस्लाम ने तुलसीदास, प्रेमचंद, चैतन्य महाप्रभु और शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की भावधाराओं का तुलनात्मक साहित्यिक विश्लेषण प्रस्तुत किया, जो ज्ञानवर्धक और भावनात्मक दोनों रहा।

हिंदी विभाग के प्रो. परमजीत कुमार पंडित ने तुलसी और प्रेमचंद के साहित्य में प्रयुक्त जनभाषा और संवादात्मक शैली को उनकी लोकप्रियता का मूल बताया। उन्होंने कहा कि “भाषा और भाव का अद्भुत संगम ही इन रचनाकारों को जन-जन का साहित्यकार बनाता है।”

हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. कमलेश पांडेय ने स्वागत भाषण में दोनों साहित्यकारों को 'मानव धर्म के प्रतिनिधि' बताते हुए कहा कि “इनका साहित्य हमें मनुष्यता का बोध कराता है, जो आज के समय की सबसे बड़ी ज़रूरत है।”

विद्यार्थियों ने भी अपने विचार साझा किए और उत्साहपूर्वक प्रश्न पूछकर गोष्ठी को संवादमूलक रूप दिया। संचालन रोहित मिश्रा ने किया और पलक सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।

इस अवसर पर विभिन्न विभागों के प्रोफेसरगण जैसे प्रो. इन्द्राणी बनर्जी, प्रो. मौसमी मुखर्जी, प्रो. अनिल बनिक, प्रो. सुमंत मुखोपाध्याय, प्रो. सुदेशना मित्र, प्रो. रीति अग्रवाल आदि उपस्थित रहे।

कार्यक्रम की सफलता में सुधांशु, तनिषा, सुमित, अंशु, निकिता, प्रिंस, सानिया, ममता, पूजा, पंकज, सोहा अहमद सहित अनेक विद्यार्थियों का विशेष योगदान रहा।

इस आयोजन ने एक बार फिर सिद्ध किया कि साहित्य केवल किताबों में नहीं, बल्कि चेतना और सामाजिक चेतावनी का दर्पण भी है।

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