'फुज्जार' कहानी संग्रह की पुस्तक समीक्षा व राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

कथाकार धनेश दत्त पाण्डेय के कहानी संग्रह 'फुज्जार' की समीक्षा और राष्ट्रीय संगोष्ठी का यह आयोजन साहित्यिक महत्ता को रेखांकित करने वाला रहा, साथ ही साथ हिंदी कहानी की परंपरा, नवीन प्रवृत्तियों और सामाजिक सरोकारों पर भी गंभीर विमर्श का मंच बना।

Apr 30, 2025 - 16:19
Apr 30, 2025 - 16:34
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'फुज्जार' कहानी संग्रह की पुस्तक समीक्षा व राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
मंचाशीन कथाकार धनेश दत्त पाण्डेय, मुक्तांचल की संपादक मीरा सिन्हा व अन्य वक्ता

मुक्तांचल, विद्यार्थी मंच व गाथा प्रकाशन के संयुक्त तत्वावधान में कथाकार धनेश दत्त पाण्डेय के कहानी संग्रह 'फुज्जार' की समीक्षा हेतु पश्चिम बंगाल के हावड़ा में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में साहित्य जगत के अनेक प्रतिष्ठित विद्वानों, शिक्षकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने सहभागिता की।

संगोष्ठी का शुभारंभ मुक्तांचल पत्रिका की संपादक डॉ. मीरा सिन्हा के स्वागत वक्तव्य से हुआ, उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय संगोष्ठी के इस विषय के माध्यम से मैं यह प्रस्तावना प्रेषित करती हूँ कि कहानी के मौजूदा परिदृश्य पर संवाद की जरूरत है, इस संवाद को मुक्तांचल जारी रखेगा। मंच संचालन डॉ. शुभ्रा उपाध्याय ने किया। मंच पर उपस्थित अतिथियों में पूर्व प्राध्यापक डॉ. अरुण कुमार, डॉ. अरुण होता, डॉ. सत्या उपाध्याय, प्रो. मंजु रानी सिंह, मृत्युंजय श्रीवास्तव, डॉ. मनीषा झा, डॉ. इतु सिंह, कथाकार सेराज खान बातिश और स्वयं प्रख्यात कथाकार धनेश दत्त पाण्डेय शामिल थे।

मुख्य पुस्तक समीक्षा वक्तव्य विश्वभारती विश्वविद्यालय, शान्ति निकेतन की प्राक्तन प्राध्यापिका डॉ. मंजु रानी सिंह ने प्रस्तुत किया।  उन्होंने कहा कि 'फुज्जार' संग्रह की कहानियाँ भारतीय समाज के विविध यथार्थ-महानगरीय, ग्रामीण, कस्बाई की परतों को गहराई से उद्घाटित करती हैं। धनेश दत्त पाण्डेय की कहानियाँ केवल सतही यथार्थ नहीं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक यथार्थ की जटिलताओं को उजागर करती हैं। उन्होंने कहा कि कहानी में संप्रेषणीयता, सांद्रता और नाटकीयता आवश्यक हैं, और 'फुज्जार' की कहानियाँ इन तत्वों को बखूबी समेटे हुए हैं।

राष्ट्रीय संगोष्ठी के विषय ‘हिंदी कहानी नई-पुरानी : परंपरा एवं परिदृश्य’ पर कहानी विधा के बदलते स्वरूप, कथ्य और शिल्प के विवाद, तथा पठनीयता के प्रश्न पर भी विचार हुआ। वक्ताओं ने कहा कि आज की कहानी केवल सनसनीखेज या तात्कालिक मुद्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह समाज के गहरे अंतर्विरोधों, जातिगत दंश और मानवीय संघर्षों को भी उजागर करती है। प्रेमचंद, उदय प्रकाश, स्वयं प्रकाश आदि के संदर्भ में हिंदी कहानी की परंपरा और समकालीनता पर भी चर्चा हुई।

डॉ. मनीषा झा ने 'फुज्जार' की कहानियों की तुलना 1960 की 'वापसी' जैसी कहानियों से की और बताया कि परिवार, संबंध और समय के बदलते समीकरण इन कहानियों की संवेदना को समकालीन बनाते हैं। उन्होंने कहा कि संग्रह की कहानियाँ आधुनिकता और परंपरा के द्वंद्व, पीढ़ियों के टकराव और बदलती सामाजिक संरचना को प्रभावशाली ढंग से चित्रित करती हैं।

'फुज्जार' की कहानियों पर लिलुआ हाई स्कूल के प्रधानाचार्य विवेक लाल, शिक्षक ऋतेश पाण्डेय, हिंदी विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका दिव्या प्रसाद व डॉ. अनिता कुमारी ठाकुर ने कहानी की समालोचना में भाग लिया।  

कार्यक्रम में शोधार्थी निखिता पाण्डेय, शालू सिंह, संध्या राम, दिव्या पाण्डेय व प्राध्यापिका डॉ. रेखा कुमारी त्रिपाठी, डॉ. अनिता कुमारी ठाकुर ने अपने शोधपत्र का वाचन किया। समापन सत्र में वक्ताओं ने कहा कि 'फुज्जार' कहानी संग्रह हिंदी कहानी की समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाता है और समकालीन समाज की जटिलताओं को नई दृष्टि से प्रस्तुत करता है। यह समीक्षा कार्यक्रम न केवल 'फुज्जार' कहानी संग्रह की साहित्यिक महत्ता को रेखांकित करने वाला रहा, बल्कि हिंदी कहानी की परंपरा, उसकी नवीन प्रवृत्तियों और सामाजिक सरोकारों पर भी गंभीर विमर्श का मंच बना।

साहित्यिक कार्यक्रम को सफल बनाने में संयोजक डॉ. विनय मिश्रा, डॉ. विजया सिंह, सुशील कुमार पाण्डेय, विनोद यादव, पद्माकर व्यास, सरिता खोवाला, परमजीत पंडित तथा विनीता लाल, प्रिया श्रीवास्तव, त्रिनेत्रकांत त्रिपाठी, राजसार्थक शर्मा, बलराम साव, रुद्रकांत झा व अन्य का सहयोग रहा।  

 

 

 

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