लालबाबा कॉलेज में 'आदमी की बात' पर परिचर्चा संपन्न, अव्यवस्थाओं की गूँज

लालबाबा कॉलेज की यह संगोष्ठी साहित्यिक दृष्टि से भले ही सफल रही, लेकिन व्यवस्थागत खामियों ने इसकी छवि को आंशिक रूप से धूमिल किया। भविष्य के आयोजनों के लिए यह एक स्पष्ट संदेश है कि साहित्यिक विमर्श के साथ-साथ प्रतिभागियों की सुविधाओं का भी समुचित ध्यान रखा जाए, ताकि ऐसे आयोजन अपनी गरिमा और प्रभावशीलता बनाए रख सकें।

May 10, 2025 - 21:33
May 10, 2025 - 21:48
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लालबाबा कॉलेज में 'आदमी की बात' पर परिचर्चा संपन्न, अव्यवस्थाओं की गूँज
मंचस्थ विद्वतगण

हावड़ा, 10 मई 2025 : लालबाबा कॉलेज (हिंदी विभाग) एवं भोजपुरी साहित्य विकास मंच के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 'बदलते सामाजिक सरोकार और 21वीं सदी की कविता' विषय पर संपन्न हुई। संगोष्ठी का केंद्र चर्चित कवि विमलेश त्रिपाठी की चर्चित पुस्तक 'आदमी की बात' रही, जिस पर विद्वतजनों ने विस्तृत विमर्श किया।

साहित्यिक विमर्श की ऊँचाइयाँ : कार्यक्रम में पश्चिम बंग राज्य विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. अरुण होता, मुख्य अतिथि डॉ. सुनील कुमार शर्मा (आई.ई.एस.), डॉ. ललित झा (हिंदी विभागाध्यक्ष, लालबाबा कॉलेज), डॉ. विनय मिश्र (बंगवासी इवनिंग कॉलेज), डॉ. संजय राय (जयपुरिया कॉलेज), स्वयं कवि डॉ. विमलेश त्रिपाठी, डॉ. संजय कुमार जायसवाल (प्राचार्य, लालबाबा कॉलेज) सहित क्षेत्र के प्रतिष्ठित साहित्यकार उपस्थित रहे।

वक्ताओं ने 21वीं सदी की कविता में बदलते सामाजिक सरोकारों, विमलेश त्रिपाठी की रचनाशीलता और 'आदमी की बात' की प्रासंगिकता पर गहन चर्चा की। संचालन डॉ. आदित्य विक्रम सिंह एवं डॉ. रेखा त्रिपाठी ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रिया श्रीवास्तव ने दिया।

अव्यवस्थाओं पर तीखी प्रतिक्रियाएँ : जहाँ एक ओर दोनों सत्रों में विमर्श अत्यंत समृद्ध और विचारोत्तेजक रहा, वहीं आयोजन की व्यवस्थाओं को लेकर प्रतिभागियों में गहरी नाराजगी देखी गई।
प्रतिभागी पद्माकर व्यास ने फेसबुक पर लिखा:

दोनों सत्र में चर्चा तो बहुत समृद्ध हो गई, लेकिन श्रोतागण के लिए पीने का पानी तक न था, अल्पाहार की तो बात ही नहीं, छह घंटे के कार्यक्रम में।

इसी तरह, डॉ. नगिना लाल दास ने कहा:

"संगोष्ठी में भाग लेने के लिए मैंने 100 रुपया देकर पंजीकरण करवाया और इतनी गर्मी में पानी के लिए तरस गया। मैंने अपने जीवन में पहली बार किसी ऐसी संगोष्ठी में भाग लिया जहाँ बुनियादी सुविधाओं की इतनी उपेक्षा दिखी।"

विश्वस्त सूत्रों के अनुसार, जो थोड़ी-बहुत पानी व चाय-बिस्कुट की व्यवस्था हुई, वह कॉलेज की बजाय भोजपुरी साहित्य विकास मंच की ओर से की गई थी।

सवालों के घेरे में आयोजन समिति : प्रतिभागियों की प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट है कि आयोजन समिति ने बुनियादी सुविधाओं की ओर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया, जिससे प्रतिभागियों को असुविधा का सामना करना पड़ा। साहित्यिक आयोजनों की सफलता केवल विचार-विमर्श की गुणवत्ता से नहीं, बल्कि प्रतिभागियों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति से भी आँकी जाती है। इस आयोजन ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या केवल मंचीय चर्चाएँ ही पर्याप्त हैं, या आयोजकों को व्यवस्थागत जिम्मेदारी भी समझनी चाहिए?

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