जड़ी-बूटी दिवस: परंपरा, विज्ञान और सतत भविष्य की राह

जड़ी-बूटी दिवस औषधीय पौधों के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्व को याद दिलाने का अवसर है। भारत की आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी परंपरा से लेकर आधुनिक चिकित्सा तक, जड़ी-बूटियाँ स्वास्थ्य, जैव विविधता और आत्मनिर्भरता की अहम कड़ी हैं। सरकार, समाज और संस्थाएँ इनके संरक्षण व संवर्धन हेतु योजनाएँ चला रही हैं, परंतु पारंपरिक ज्ञान के लोप, नकली औषधियों और पर्यावरणीय क्षरण जैसी चुनौतियाँ गंभीर हैं। समाधान में जनजागरूकता, घरेलू बागवानी, शिक्षा में समावेश और सतत विकास नीतियाँ अहम भूमिका निभा सकती हैं। यह दिवस हमें प्रकृति से जुड़ने और औषधीय पौधों के प्रति जिम्मेदार व्यवहार अपनाने का आह्वान करता है।

Aug 6, 2025 - 18:49
Aug 6, 2025 - 18:51
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जड़ी-बूटी दिवस: परंपरा, विज्ञान और सतत भविष्य की राह
4 अगस्त जड़ी-बूटी दिवस विशेष

 

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

भारत में जड़ी-बूटियों का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितनी इसकी सभ्यता। ऋग्वेद, अथर्ववेद और चरक संहिता जैसे ग्रंथों में औषधीय पौधों का विस्तृत वर्णन मिलता है। आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सा पद्धतियों का मूल आधार यही वनस्पतियाँ रही हैं। पारंपरिक समाज में 'वनौषधि पूजा' और 'औषधि पञ्चमी' जैसे पर्व प्रकृति और स्वास्थ्य के सामंजस्य का प्रतीक थे। आधुनिक समय में जड़ी-बूटी दिवस’ (Herb Day) इन परंपराओं को पुनर्जीवित करने और औषधीय पौधों के महत्व को जनमानस में जगाने का प्रयास है। पतंजलि योगपीठ, वन अनुसंधान संस्थान, और कई राज्य सरकारें इस अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित करती हैं, जैसे निशुल्क औषधीय पौधों का वितरण, औषधि प्रदर्शनी, और जनजागरूकता संगोष्ठियाँ।

औषधीय पौधों की भूमिका: भारत और विश्व स्तर पर

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, आज भी विश्व की लगभग 80% आबादी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में औषधीय पौधों पर निर्भर है। भारत में तुलसी, नीम, अश्वगंधा, गिलोय, शतावरी जैसी जड़ी-बूटियाँ घर-घर में जानी-पहचानी हैं। चीन की पारंपरिक चिकित्सा (TCM), अफ्रीका की हर्बल हीलिंग पद्धतियाँ, और पश्चिम में हर्बल सप्लीमेंट्स के रूप में इनका व्यापक उपयोग हो रहा है। आधुनिक विज्ञान ने इनके सक्रिय रसायनिक घटकों पर शोध कर कई दवाएँ विकसित की हैं, जैसे सर्पगंधा से हाइपरटेंशन की दवा, हल्दी से करक्यूमिन-आधारित सूजनरोधी औषधि।

आज के संदर्भ में प्रासंगिकता

तेज़ रफ्तार और तनावपूर्ण जीवनशैली में रोग प्रतिरोधक क्षमता, मानसिक संतुलन और प्राकृतिक उपचार की आवश्यकता बढ़ी है। जड़ी-बूटियाँ न केवल शरीर को रोगमुक्त रखने में मदद करती हैं बल्कि जैव विविधता संरक्षण और आत्मनिर्भरता की दिशा में भी महत्वपूर्ण हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान गिलोय, अश्वगंधा और काढ़े की मांग में रिकॉर्ड वृद्धि ने इनके महत्व को पुनः रेखांकित किया। ग्रामीण क्षेत्रों में यह कृषि विविधीकरण और आय बढ़ाने का साधन बन सकती हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में घरेलू हर्ब गार्डनिंग आत्मनिर्भर स्वास्थ्य की ओर एक कदम है।

समाज और सरकार की भागीदारी

केंद्र और राज्य सरकारों ने औषधीय पौधों के संरक्षण व संवर्धन के लिए राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड’ (NMPB) जैसी संस्थाएँ स्थापित की हैं। हरित रोजगार मिशन, हर्बल पार्क, वन औषधि मिशन, और आयुष मंत्रालय के कार्यक्रम कृषकों को औषधीय पौधों की खेती हेतु तकनीकी व वित्तीय सहयोग प्रदान करते हैं। साथ ही, स्वयंसेवी संस्थाएँ व सामुदायिक समूह जड़ी-बूटी मेलों, कार्यशालाओं, और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से जनभागीदारी को बढ़ावा देते हैं।

समकालीन चुनौतियाँ

 पारंपरिक ज्ञान का लोप बुजुर्ग वैद्यों और लोक चिकित्सकों के निधन के साथ मौखिक परंपरा का क्षरण।

 नकली और मिलावटी औषधियाँ बाजार में गुणवत्ता की कमी और उपभोक्ता के स्वास्थ्य पर खतरा।

 तीव्र शहरीकरण व पर्यावरणीय क्षरण प्राकृतिक आवासों का नष्ट होना और दुर्लभ प्रजातियों का विलुप्त होना।

 बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) विवाद विदेशी कंपनियों द्वारा हर्बल ज्ञान का पेटेंट कराना, जैसे नीम और हल्दी विवाद।

समाधान और आगे की राह

 जनजागरूकता अभियान रेडियो, टीवी, सोशल मीडिया और स्थानीय मेले/हाट के माध्यम से जड़ी-बूटियों के लाभ व संरक्षण संदेश का प्रसार।

 घरेलू बागवानी शहरी घरों में गमलों और टैरेस गार्डन में औषधीय पौधों की खेती को प्रोत्साहन।

 स्कूली शिक्षा में समावेश पाठ्यक्रम में वनस्पतिक ज्ञान, हर्बल प्रयोगशालाएँ और फील्ड विज़िट शामिल करना।

 सामाजिक संगठन व स्टार्टअप्स औषधीय पौधों पर आधारित उत्पाद व सेवाएँ विकसित कर स्थानीय रोजगार सृजन।

 सतत विकास नीतियाँ जंगली औषधीय पौधों के अत्यधिक दोहन पर नियंत्रण, और जैव विविधता रजिस्टर का निर्माण।

जिम्मेदारी और रचनात्मक व्यवहार की ओर

जड़ी-बूटी दिवस केवल एक स्मृति उत्सव नहीं, बल्कि यह हमें प्रकृति, स्वास्थ्य और संस्कृति के अभिन्न रिश्ते को याद दिलाने का अवसर है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इन वनौषधियों के प्रति संवेदनशील हों, उनका संरक्षण करें, सही तरीके से प्रयोग करें, और आने वाली पीढ़ियों के लिए इनका भंडार सुरक्षित रखें। जैसे आयुर्वेद कहता है—“वृक्षाणां जीवनं धर्मःपेड़ों का जीवन ही धर्म है। अगर हम जड़ी-बूटियों को बचाएँगे, तो वे भी हमें जीवन का संबल देती रहेंगी।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I