अदिति शर्मा इस्तीफा: न्यायिक व्यवस्था में महिला अधिकारियों की सुरक्षा और जवाबदेही पर सवाल
मध्य प्रदेश के शहडोल में सिविल जज अदिति शर्मा द्वारा जुलाई 2025 में उच्च न्यायिक अधिकारी पर उत्पीड़न के आरोप लगाते हुए इस्तीफे से न्यायपालिका में महिला अधिकारों, संस्थागत जवाबदेही और पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं। शिकायतों की अनदेखी, आरोपी अधिकारी की पदोन्नति, और सुप्रीम कोर्ट की पूर्व बहाली के संदर्भ में यह मामला न्यायिक तंत्र की चुनौतियों को उजागर करता है तथा कार्यस्थल पर महिला अधिकारियों की सुरक्षा के लिए त्वरित सुधार की आवश्यकता रेखांकित करता है।

मध्य प्रदेश के शहडोल की सिविल जज अदिति शर्मा का इस्तीफा: भारतीय न्यायपालिका में महिला अधिकारियों के अधिकार, जवाबदेही और संवेदनशीलता का सवाल
जुलाई 2025 में मध्य प्रदेश के शहडोल की सिविल जज (जूनियर डिवीजन) अदिति कुमार शर्मा ने एक लंबा, विस्तृत पत्र लिखकर न्यायिक सेवा से इस्तीफा दे दिया। इस पत्र ने भारतीय न्यायपालिका की कार्य-संस्कृति, महिला अधिकारियों की सुरक्षा संवेदनशीलता और जवाबदेही पर सवाल खड़े किए। मामले की पृष्ठभूमि के कुछ मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं:
· उत्पीड़न के आरोप:
· जज शर्मा ने अपने इस्तीफा पत्र में शहडोल के तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजेश कुमार गुप्ता पर मानसिक, प्रशासकीय एवं यौन उत्पीड़न, जातिगत अपमान और “बदले की भावना” से प्रताड़ित करने का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने लिखा कि उन्होंने इस बारे में कई बार शिकायतें कीं, परंतु कोई प्रभावी सुनवाई नहीं हुई और एक महिला अधिकारी के बदनामीपूर्ण आरोपों को जांच के स्तर पर ही दबा दिया गया।
· यह घटना 2023 से शुरू हुई थी। उस वर्ष न्यायिक सेवा से उनका अचानक 'डिस्चार्ज' कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि अनुशासनात्मक कार्रवाई के कारण उनके प्रदर्शन मूल्यांकन (ACR) में विरोधाभास थे और गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं कोविड19 जटिलताओं और गर्भपातके बावजूद उनकी कमजोर स्वास्थ्य परिस्थिति की अनदेखी की गई।
· संबंधित अधिकारी की पदोन्नति:
· जुलाई 2025 में सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम ने राजेश कुमार गुप्ता को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त करने की अनुशंसा की। केंद्रीय सरकार ने इसे मंजूरी दे दी।
· एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया कि 2023 में उनकी पदोन्नति रोक दी गई थी क्योंकि उस समय कुछ शिकायतें लंबित थीं; हालांकि बाद में एक आंतरिक जांच ने उन्हें 'क्लीन चिट' दे दी और उन्हें पदोन्नति दे दी गई।
· शिकायतों की अनदेखी और संस्थागत उदासीनता:
· जज शर्मा ने दावा किया कि उन्होंने अपनी शिकायतों के समर्थन में सबूत दिए- फोन रिकॉर्डिंग, संदेश आदि, परंतु न तो उन्हें अपनी बात रखने का मौका दिया गया और न ही कोई निष्पक्ष जांच हुई। उन्होंने लिखा, “मुझे कोई नोटिस, कोई सुनवाई, कोई जांच नहीं मिली” ।
· 2023 में उन्हें सेवा से हटाने के खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 28 फरवरी 2025 को सर्वोच्च न्यायालय की जस्टिस बी.वी. नागरथ्ना और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने उनके निलंबन को “दंडात्मक, मनमाना और अवैध” बताते हुए रद्द किया। न्यायालय ने कहा कि महिला अधिकारियों के लिए अधिक संवेदनशील और अनुकूल कार्य पर्यावरण जरूरी है।
· अदिति शर्मा की बहाली के कुछ ही महीने बाद उनका कथित उत्पीड़नकर्ता उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त हुआ, जिससे उनकी निराशा चरम पर पहुंची। उन्होंने इस्तीफा पत्र में लिखा कि आरोपी को “पुरस्कार” मिला, जबकि शिकायतकर्ता (वे स्वयं) को इंसाफ नहीं मिला।
· इस्तीफा पत्र की पीड़ा और भावनाएँ:
· अपने पत्र में उन्होंने लिखा, “मैं न्यायालय के प्रति अपना विश्वास नहीं खो रही हूं, लेकिन इस संस्था ने मुझे विफल किया” । उन्होंने कहा कि उन्होंने “हर बार सत्य बोलने का विकल्प चुना” लेकिन न्यायपालिका ने 'सत्य की खोज' करने के बजाय 'चुप्पी' अपनाई।
· उन्होंने शहडोल के वरिष्ठ न्यायाधीश द्वारा मानसिक प्रताड़ना, जातिगत भेदभाव एवं 'शारीरिक मानसिक, गरिमा और आवाज़' के दमन का वर्णन किया और कहा कि यह उत्पीड़न लगातार चलता रहा।
· उन्होंने लिखाः “मैं कोई प्रतिशोध नहीं चाहती; मैं बस नियमानुसार जांच चाहती थी… परंतु न्यायपालिका ने उन पर आरोप लगाने वाले को ‘सजा’ दी, जबकि आरोपी को ‘पुरस्कृत’ किया” ।
· उदासीनता पर सवाल:
· पत्र में उन्होंने पूछा कि “न्यायपालिका की बेटियों” को क्या संदेश जाएगा, जब एक वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ गंभीर शिकायतें करने वाली महिला जज को प्रताड़ना सहनी पड़े और दोषी को पदोन्नति मिले।
· उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों और प्रतिष्ठानों को लिखे अपने पत्रों का संदर्भ दिया -ये पत्र अदालत, राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम तथा मुख्य न्यायाधीशों को संबोधित थे, लेकिन कहा कि उनकी बात नहीं सुनी गई।
· न्याय व्यवस्था में महिलाओं की चुनौतियाँ:
· 28 फरवरी 2025 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में न्यायमूर्ति बी.वी. नागरथ्ना ने टिप्पणी की थी कि केवल महिलाओं का न्यायपालिका में प्रवेश ही पर्याप्त नहीं; वे 'बनें और पदोन्नत हों' और 'प्रणाली संवेदनशील हो' यह आवश्यक है।
· भारतीय न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी अभी भी सीमित है- सुप्रीम कोर्ट ऑब्ज़र्वर के अनुसार 2025 तक उच्च न्यायालयों में केवल ~14% महिला न्यायाधीश थीं, जबकि जिला न्यायपालिका में लगभग 36% महिलाएँ थीं।
· शिकायत निवारण व्यवस्था की निष्क्रियता:
· अदिति शर्मा ने अपनी शिकायतों पर कोई आंतरिक समिति या स्वतंत्र जांच नहीं होने का आरोप लगाया। उनका कहना था कि आरोप तय करने वाले को ही जांच का प्रभारी बना दिया गया, जिससे निष्पक्षता आशंकित थी।
· LawBeat के एक विश्लेषण में बताया गया कि कई संस्थानों में आंतरिक शिकायत निवारण समितियाँ केवल कागजों पर हैं और 'संस्थागत विश्वासघात' के कारण महिलाएँ आवाज उठाने से हिचकती हैं।
· आरोपी अधिकारी की प्रतिक्रिया:
· कुछ मीडिया रिपोर्टों में राजेश कुमार गुप्ता का बयान आया कि उन्होंने 35 वर्षों के करियर में किसी भी महिला से कोई शिकायत नहीं सुनी और उन्होंने “संत की तरह जीवन जिया” ।
· इस प्रकार उनका आरोपों को सिरे से ख़ारिज करना और उच्च न्यायालय में नियुक्ति पाना, एक पीड़ित महिला के लिए संस्थागत निराशा को बढ़ाता है।
· पदोन्नति की अनदेखी के निहितार्थ:
· न्यायपालिका द्वारा एक शिकायतकर्ता महिला अधिकारी की बात को बिना जांच के अनदेखा कर एक आरोपी अधिकारी को पदोन्नति देना, कार्यस्थल पर शक्ति संतुलन एवं श्रमकानून सिद्धांतों के उल्लंघन जैसा प्रतीत होता है।
· इससे उन महिला कर्मचारियों को संदेश जाता है कि यदि वे वरिष्ठों के खिलाफ शिकायत करेंगी तो न केवल उन्हें न्याय नहीं मिलेगा बल्कि उनका करियर भी दांव पर लग सकता है।
· कार्य संस्कृति एवं आत्म मूल्यांकन:
· सुप्रीम कोर्ट के 2025 के फैसले ने साफ किया कि प्रशासनिक निर्णयों में संवेदनशीलता आवश्यक है और महिला अधिकारियों की परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
· यह मामला न्यायपालिका के भीतर कार्य संस्कृति में आत्मचिंतन का अवसर प्रदान करता है- क्या मानसिक यौन उत्पीड़न के आरोपों पर निष्पक्ष जांच और सजा का ढांचा मौजूद है? क्या पदोन्नति नीति में शिकायतकर्ता की बात सुनी जाती है?
· उच्च न्यायिक संस्थाओं की जवाबदेही:
· सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम ने 2023 में राजेश गुप्ता की पदोन्नति को शिकायतों के कारण रोक दिया था, पर बाद की जांच ने उन्हें “क्लीन चिट” दे दी। इस संदर्भ में यह जरूरी है कि आंतरिक जांच प्रक्रिया पारदर्शी हो, ताकि आरोप लगाने वाली का विश्वास बहाल हो सके और आरोपित को भी निष्पक्ष अवसर मिले।
· यदि संस्थागत प्रक्रिया में कोई पक्षपात हुआ तो इसका असर न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर पड़ेगा।
· अन्य महिलाओं के लिए संदेश:
· जज शर्मा ने अपने पत्र में पूछा कि अदालत की 'बेटियों' को क्या संदेश जाएगा।
· जब एक उच्च अधिकारी पर गंभीर आरोपों के बावजूद उसे पदोन्नति मिलती है और शिकायत करने वाली को इस्तीफा देना पड़ता है, तो यह संदेश जाता है कि संस्था शिकायतकर्ताओं की सुरक्षा या न्याय सुनिश्चित नहीं कर पाएगी।
1. स्वतंत्र एवं अनिवार्य शिकायत निवारण समितियाँ:
2. प्रत्येक न्यायिक इकाई (जिला अदालतों से लेकर उच्च न्यायालयों तक) में यौन उत्पीड़न और मानसिक उत्पीड़न की शिकायतों के लिए स्वतंत्र समिति का गठन किया जाए, जिसमें बाहरी विशेषज्ञ, महिला अधिकारी और न्यायिक सेवा के प्रतिनिधि शामिल हों।
3. समिति की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक न सही, परंतु उसकी अनुशंसा और निर्णय प्रतिवेदनों में दर्ज हों ताकि पारदर्शिता हो और मनमानी न हो।
4. पदोन्नति से पहले 'इंटीग्रिटी क्लियरेंस' प्रक्रिया:
5. किसी भी न्यायिक अधिकारी की पदोन्नति से पूर्व शिकायतों, आचरण, आंतरिक जांच रिपोर्ट और महिला अधिकारों के पालन का ऑडिट किया जाए।
6. शिकायतकर्ता के पक्ष को सुना जाए; अन्यथा पदोन्नति से पहले न्यायिक परिषद से मंजूरी न मिले।
7. महिला न्यायिक अधिकारियों के लिए संरक्षक व्यवस्था:
8. बड़ी अदालतों में महिला अधिकारियों के लिए संरक्षक या ‘मैत्री अधिकारी’ नियुक्त हों, जिनसे वे उत्पीड़न या कठिनाइयों पर चर्चा कर सकें।
9. संरक्षक व्यवस्था से सीनियर जूनियर संबंधों में व्यावसायिकता और सहारा दोनों मिलेंगे।
10. प्रशासकीय पारदर्शिता और प्रशिक्षण:
11. उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट के लिए पारदर्शी प्रशासनिक मैनुअल तैयार हों, जिनमें महिलाभावनाओं, जाति संवेदनशीलता और न्यायिक नैतिकता पर प्रशिक्षण अनिवार्य हो।
12. प्रशिक्षण में विशिष्ट मॉड्यूल जेंडर संवेदनशीलता, पॉश कानून, मानसिक स्वास्थ्य शामिल हों और वरिष्ठ अधिकारियों के लिए रिफ्रेशर कोर्स चलाए जाएँ।
13. डेटा प्रकाशन और समावेशी प्रतिनिधित्व:
14. न्यायपालिका में लैंगिक संतुलन, पदोन्नतियों, शिकायतों और कार्रवाई के डाटा को नियमित रूप से प्रकाशित किया जाए।
15. इससे समाज और राज्य दोनों न्यायपालिका को जवाबदेह बनाए रखने में मदद करेंगे और महिलाएँ निर्भीक होकर संस्था में शामिल होंगी
अदिति कुमार शर्मा का इस्तीफा एक व्यक्तिगत संघर्ष की कहानी भर नहीं बल्कि भारतीय न्यायपालिका के भीतर प्रणालीगत विफलताओं का दर्पण है। उन्होंने साफ कहा कि उन्होंने “सत्य बोलना चुना”, पर संस्था ने “सत्य सुनना नहीं चुना” । उनकी बहाली के बाद भी अपने कथित उत्पीड़नकर्ता को उच्च न्यायालय में नियुक्त होता देखना उनके लिए असहनीय था। सुप्रीम कोर्ट ने उनके निलंबन को रद्द कर यह स्वीकार किया कि महिला अधिकारियों के प्रति संवेदनशीलता और पारदर्शिता आवश्यक है।
इस प्रकरण से स्पष्ट होता है कि यदि न्यायिक सेवा में महिलाओं के साथ समानता और सम्मान सुनिश्चित करना है तो शिकायत निवारण प्रणाली में सुधार, पदोन्नति में पारदर्शिता, तथा संस्थागत संवेदनशीलता अनिवार्य हैं। न्यायपालिका लोकतंत्र का स्तंभ है; इसकी विश्वसनीयता तभी बनी रह सकती है जब अंदर की प्रक्रियाएँ भी न्यायपूर्ण, पारदर्शी और संवेदनशील हों।
What's Your Reaction?






