राजमाता जीजाबाई : मातृत्व से राष्ट्रनिर्माण तक की अद्वितीय गाथा

राजमाता जीजाबाई न केवल छत्रपति शिवाजी महाराज की माता थीं, बल्कि वे मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाली असाधारण नेता और विचारक भी थीं। उन्होंने शिवाजी को मातृत्व के साथ-साथ नीति, धर्म, युद्धकला और राष्ट्रसेवा की शिक्षा दी। धार्मिक सहिष्णुता, महिला सशक्तिकरण और राष्ट्रनिर्माण के लिए उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं। राजमाता जीजाबाई का जीवन केवल एक वीर पुत्र की माँ की गाथा नहीं, बल्कि एक संपूर्ण राष्ट्रनिर्माता, समाज सुधारक और महिला सशक्तिकरण की अग्रदूत की प्रेरक कथा है। उनकी शिक्षाएँ आज के भारत के लिए उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी 17वीं शताब्दी में थीं। उनकी 352वीं पुण्यतिथि पर उन्हें शत-शत नमन।

Jun 17, 2025 - 06:04
Jun 16, 2025 - 18:09
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राजमाता जीजाबाई : मातृत्व से राष्ट्रनिर्माण तक की अद्वितीय गाथा
352वीं पुण्यतिथि पर विशेष

भारत के इतिहास में मातृत्व, त्याग, नेतृत्व और राष्ट्रनिर्माण का ऐसा समन्वय शायद ही किसी अन्य महिला के जीवन में दिखाई देता है, जैसा कि छत्रपति शिवाजी महाराज की माता राजमाता जीजाबाई के जीवन में मिलता है। वे केवल छत्रपति शिवाजी की जननी नहीं थीं, वे एक संकल्प थीं, वे एक सपना थीं और वे उस स्वराज्य की चेतना थीं, जिसकी नींव पर भारत का स्वतंत्रता संग्राम आगे जाकर खड़ा हुआ।

आज जब हम उनकी 352वीं पुण्यतिथि पर उन्हें स्मरण करते हैं, तो यह केवल अतीत का स्मरण नहीं है, यह वर्तमान भारत के लिए दिशा-निर्देश है।

एक ऐसे कालखंड में जन्म, जहाँ महिलाओं की भूमिका सीमित मानी जाती थी

जीजाबाई का जन्म 12 जनवरी 1598 को देवगिरी (अब महाराष्ट्र में दौलताबाद) में हुआ था। उस कालखंड में महिलाओं का जीवन रसोई और गृहस्थी तक सीमित समझा जाता था, लेकिन जीजाबाई ने बचपन से ही राजनीति, प्रशासन और धर्मशास्त्र में गहरी रुचि ली। पिता लखुजी जाधव अहमदनगर दरबार में प्रभावशाली सरदार थे, जिससे जीजाबाई का बचपन राजनीति और रणनीति की कहानियों के बीच बीता।

डॉ. जयसिंह राव पवार जैसे इतिहासकार लिखते हैं कि जीजाबाई की शिक्षा-दीक्षा में धार्मिक ग्रंथों, खासकर रामायण और महाभारत का विशेष स्थान था। यही कारण था कि उन्होंने शिवाजी को शासन और धर्म का गूढ़ अंतर बचपन से ही सिखा दिया था।

व्यक्तित्व निर्माण : शिवाजी के पीछे एक महामातृ का हाथ

छत्रपति शिवाजी महाराज का व्यक्तित्व कोई संयोग नहीं था। शिवाजी अंधश्रद्धा से परे’ में लेखक जेम्स डब्ल्यू लेन स्पष्ट लिखते हैं कि शिवाजी के भीतर का नेतृत्व, नैतिकता और धर्मनिष्ठा उनकी माता जीजाबाई के शिक्षण और दृष्टिकोण का प्रतिफल था।

जब शाहजी भोंसले बीजापुर दरबार में व्यस्त रहते थे, तब जीजाबाई ने पुणे के वीरान क्षेत्र को न केवल बसाया, बल्कि उसे एक सक्रिय राजनीतिक और सैन्य प्रशिक्षण केंद्र बना दिया।

बाबासाहेब पुरंदरे की पुस्तक शिवचरित्र बताती है कि पुणे की पुनर्स्थापना केवल भौगोलिक नहीं थी, वह मराठा साम्राज्य के लिए भावनात्मक और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण निर्णय था।

धार्मिकता, लेकिन अंधश्रद्धा नहीं

जीजाबाई धार्मिक अवश्य थीं, लेकिन उनकी धार्मिकता में अंधविश्वास नहीं था। उन्होंने शिवाजी को धर्म की सहिष्णुता, सभी धर्मों के सम्मान और नैतिकता पर आधारित शासन का पाठ पढ़ाया। यही कारण था कि शिवाजी के राज्याभिषेक (1674) में सभी धर्मों के संत, मौलवी और पुजारियों को आमंत्रित किया गया।

जीजाबाई ने शिवाजी को यह भी सिखाया था कि :

  • "धर्म का रक्षण केवल शस्त्रों से नहीं, नीति और न्याय से भी किया जाता है।"
  • "सत्ता सेवा का माध्यम है, अधिकार का नहीं।"

उनकी इन्हीं शिक्षाओं के कारण शिवाजी ने मंदिरों के साथ-साथ मस्जिदों और सूफी दरगाहों का भी संरक्षण किया।

रणनीति में महारथ, केवल माँ नहीं – एक परामर्शदाता

राजमाता जीजाऊ’ (लेखक: दत्तोपंत आपटे) के अनुसार, शिवाजी द्वारा स्वराज्य की घोषणा से लेकर बीजापुर और मुगलों के विरुद्ध संघर्ष तक, जीजाबाई न केवल मार्गदर्शक थीं, बल्कि रणनीतिक योजनाओं में सक्रिय भूमिका निभाती थीं।

जब अफजल खान वध जैसी ऐतिहासिक घटनाएँ  घटित हुईं, तब जीजाबाई ने अपने पुत्र को स्पष्ट संदेश दिया था – “जब धर्म संकट में हो, तो शत्रु की चालाकियों का उत्तर उसी की भाषा में देना धर्म है।”

महिला सशक्तिकरण की अग्रदूत

जीजाबाई का दृष्टिकोण सिर्फ अपने पुत्र तक सीमित नहीं था। वे समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए कार्यरत रहीं। ‘Women in Indian History’ (लेखिका किरण पवार) में उल्लेख है कि उन्होंने पुणे में बालिकाओं के लिए पाठशालाएँ  स्थापित करवाईं और विधवाओं के लिए संरक्षण गृहों की स्थापना करवाई।

भारतीय नारियां’ (रमा झा) में लिखा है कि यदि मराठा समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान जागा तो उसका श्रेय जीजाबाई की दूरदर्शिता को है।

समकालीन भारत के लिए संदेश

आज जब भारत आत्मनिर्भरता, महिला सशक्तिकरण और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ओर अग्रसर है, तो जीजाबाई जैसी विभूतियों का स्मरण केवल ऐतिहासिक रस्म नहीं है, बल्कि एक आवश्यक प्रेरणा है।

यदि एक माता अपने पुत्र को केवल एक वीर नहीं, बल्कि एक धर्मनिष्ठ, न्यायप्रिय और बहु-सांस्कृतिक समाज का निर्माता बना सकती है, तो यह आज की हर माँ के लिए संदेश है - “मातृत्व केवल परिवार का भविष्य नहीं गढ़ता, बल्कि राष्ट्र की दिशा भी तय करता है।”

उपसंहार

डॉ. सदाशिव कान्हेरे अपनी पुस्तक भारतीय इतिहास की महामाताएँ ’ में लिखते हैं - "यदि जीजाबाई जैसी माताएँ  न होतीं, तो शिवाजी जैसा राष्ट्रनायक कभी जन्म नहीं लेता।" उनकी पुण्यतिथि केवल स्मरण का अवसर नहीं, बल्कि आत्ममंथन का क्षण है - क्या हम अपने बच्चों को केवल नौकरी के लिए तैयार कर रहे हैं या एक राष्ट्रनिर्माता बनाने का साहस कर रहे हैं?

एक जीजाबाई ने एक शिवाजी गढ़ा, लाखों जीजाबाइयाँ मिलकर एक नया भारत गढ़ सकती हैं।

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डॉ. शैलेश शुक्ला लेखक डॉ. शैलेश शुक्ला वैश्विक स्तर पर ख्याति प्राप्त वरिष्ठ लेखक, पत्रकार, साहित्यकार, भाषाकर्मी होने के साथ-साथ 'सृजन अमेरिका', 'सृजन ऑस्ट्रेलिया', 'सृजन मॉरीशस', 'सृजन मलेशिया', 'सृजन कतर', 'सृजन यूरोप' जैसी विभिन्न अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं के वैश्विक प्रधान संपादक हैं। डॉ. शुक्ला द्वारा लिखित एवं संपादित 25 पुस्तकें, दिल्ली विश्वविद्यालय और इग्नू की बीए और एमए के पाठ्यक्रमों सहित कुल 30 से अधिक अध्याय विभिन्न पुस्तकों में 30 से अधिक शोध-पत्र, कविताओं, लेखों, कहानियों, व्यंग्यों सहित कुल 300 रचनाएं प्रकाशित हैं। डॉ. शैलेश शुक्ला भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा प्रदत्त 'राजभाषा गौरव पुरस्कार (2019-20)' और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की हिंदी अकादमी द्वारा ‘नवोदित लेखक पुरस्कार (2004)’ सहित विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सम्मनों एवं पुरस्कारों से सम्मानित हैं।