एशिया की बहुपक्षीय कूटनीति: SCO और BRICS शिखर सम्मेलनों में भारत-चीन-रूस की बदलती भूमिका
पिछले दो वर्षों में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और BRICS विस्तार जैसे मंचों ने एशियाई कूटनीति का नया स्वरूप गढ़ा है। चीन ने SCO विकास बैंक और ऊर्जा मंच का प्रस्ताव रखा, रूस ने वैकल्पिक भुगतान प्रणालियों और यूरेशियाई सुरक्षा पर जोर दिया, जबकि भारत ने आतंकवाद-रोध, ऊर्जा विविधीकरण और रणनीतिक स्वायत्तता पर अपनी प्राथमिकताएँ स्पष्ट कीं। BRICS में नए सदस्य (मिस्र, इथियोपिया, ईरान, यूएई) जुड़े, जिससे वैश्विक बहुध्रुवीयता की दिशा मजबूत हुई। लेख में तिथियों, एजेंडा, घोषणाओं और नीति-विश्लेषण के आधार पर भारत की उपलब्धियों, चुनौतियों और भविष्य की नीति-दिशा पर प्रकाश डाला गया है।

पिछले एक–डेढ़ वर्ष में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और ब्रिक्स (BRICS) जैसे एशियाईकेंद्रित मंचों ने वैश्विक एजेंडा पर निर्णायक प्रभाव डाला है। 2024 के अस्ताना SCO शिखर सम्मेलन से लेकर 31 अगस्त – 1 सितंबर 2025 को चीन के तिआंजिन में संपन्न 25वां SCO शिखर सम्मेलन और 22–24 अक्तूबर 2024 के कज़ान BRICS शिखर सम्मेलन, इन बैठकों ने आतंकवादरोध, ऊर्जा और भुगतानप्रणालियों, आपूर्तिश्रृंखलाओं, तथा ‘मल्टीपोलर’ विश्वव्यवस्था के विमर्श को तेज किया। इनके बीच भारत, चीन और रूस की प्राथमिकताएँ कई बार समान दिखती हैं, तो कई बार परस्पर प्रतिस्पर्धी। इस संपादकीय में हम तिथियोंघोषणाओं का तथ्यात्मक आधार रखते हुए, क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक सहयोग के प्रश्नों पर संतुलित विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं और अंत में भारत के लिए स्पष्ट नीतिसंदेश रेखांकित करते हैं।
प्रमुख तिथियाँ, एजेंडा और घोषणाएँ: तथ्यात्मक परिदृश्य
SCO अस्ताना 2024 (कज़ाख़स्तान): 4 जुलाई 2024 को अस्ताना शिखर बैठक में बेलारूस को पूर्ण सदस्यता मिली, जिससे SCO के सदस्य 10 हो गए। इसी बैठक की ‘अस्ताना घोषणा’ और साथ पारित दस्तावेजों में 202527 के लिए आतंकवादविरोधी सहयोगकार्यक्रम (RATS के माध्यम से), 202429 की एंटीड्रग रणनीति, 2030 तक ऊर्जा सहयोग की रूपरेखा और 2035 तक के विकासरणनीति की दिशा तय की गई।
SCO तिआंजिन 2025 (चीन): 31 अगस्त–1 सितंबर 2025 के शिखर सम्मेलन में चीन ने SCO विकास बैंक की परिकल्पना, ऊर्जा सहयोग मंच और लगभग 1.4 अरब डॉलर के ऋणसहायता प्रस्ताव रखे; साथ ही उपग्रह नेविगेशन (BeiDou) के उपयोग और ‘शीतयुद्धशैली गुटबंदी’ से दूरी पर बल दिया। आतंकवादरोध और आपूर्तिश्रृंखलाओं/ऊर्जा सुरक्षा चर्चा के साथ ‘बहुध्रुवीय’ विश्वव्यवस्था पर सामूहिक जोर दिखाई दिया।
BRICS कज़ान 2024 (रूस): 22–24 अक्तूबर 2024 को 16वाँ BRICS शिखर सम्मेलन कज़ान में हुआ, यह पहली बैठक थी जिसमें 2024 से प्रभावी नए सदस्यों (मुख्यतः मिस्र, इथियोपिया, ईरान, यूएई) की भागीदारी रही; विस्तार के साथ ‘ग्रेटर BRICS’ ढाँचे, वैकल्पिक भुगतानप्रणालियों और बहुपक्षीय सुधारों पर विमर्श तेज हुआ। सऊदी अरब के मामले में 202425 में परस्पर विरोधी संकेत रहे निमंत्रण और सहभागिता के बावजूद औपचारिक सदस्यता को लेकर रिपोर्टें भिन्नभिन्न रहीं, इसलिए इसे ‘सक्रिय भागीदारी/साझेदार’ की श्रेणी में समझना अधिक सटीक है।
नीतिगत प्राथमिकताएँ: भारत, चीन, रूस और अन्य एशियाई देश
चीन: SCO में ‘विकास बैंक’, ऊर्जानेटवर्किंग, डिजिटल/स्पेसनेविगेशन और आपूर्तिश्रृंखलासुरक्षा के माध्यम से संस्थागत गहराई बढ़ाने की आकांक्षा। उद्देश्य—यूरोअमेरिकी ढाँचों से इतर मानकीकरण, वित्ततंत्र और टेक्नोलॉजीइकोसिस्टम को आकार देना; साथ ही आतंकवादविरोध के नाम पर आंतरिक/सीमांत स्थिरता पर बल।
रूस: यूरेशियाई सुरक्षा, ऊर्जा निर्यात, वैकल्पिक भुगतानप्रणालियों और EAEUBelt and Road इंटरफेसिंग पर फोकस; यूक्रेन युद्धोत्तर भूराजनीति में ‘प्रतिबंधस्थायित्व’ (sanctionsresilience) को बढ़ाना। BRICSविस्तार और SCOसुरक्षा ढाँचे को ‘पश्चिमी व्यवस्थाओं’ का संतुलन बनाने के औजार के रूप में देखना।
भारत: रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) को अक्षुण्ण रखते हुए—आतंकवाद के विरुद्ध ‘जीरोटॉलरेंस’, कनेक्टिविटी में संप्रभुता/भौगोलिक अखंडता, ऊर्जासुरक्षा (रूसमध्यपूर्व स्रोतों का विविधीकरण), और उभरती टेक साझेदारियाँ (5G/6G, डिजिटल पब्लिक गुड्स) पर जोर। भारत—इंडोपैसिफ़िक और यूरेशिया दोनों में ‘ब्रिजस्टेट’ की भूमिका निभाने की कोशिश करता है।
अन्य एशियाई देश: मध्य एशिया सुरक्षास्थिरता, नार्कोट्रैफिकिंगरोध और ऊर्जाट्रांज़िट पर केंद्रित; ईरानयूएईमिस्र/इथियोपिया जैसे नए BRICS प्रतिभागी वित्तीय बहुध्रुवीयता, साउथसाउथ ट्रेड और ऊर्जालॉजिस्टिक्स में अवसर देखते हैं; पाकिस्तान RATS/SCO ढाँचे में काउंटरटेररिज़्म सहयोग पर बल देता है।
बड़े मुद्दे: क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग, ऊर्जाव्यापार, आतंकवाद, तकनीकी साझेदारी
(क) यूरेशिया बनाम इंडोपैसिफ़िक दो थियेटर, एक रणनीति?
SCO का केंद्रबिंदु यूरेशियाई स्थिरता है, अफगानिस्तान का दीर्घकालिक प्रभाव, मध्यएशिया में उग्रवाद/नार्कोट्रेड, रूसचीनभारत के परस्पर हित। दूसरी ओर, BRICS आर्थिक/वित्तीय बहुध्रुवीयता, दक्षिणदक्षिण व्यापार, और वैश्विक शासनसुधार की बहस को आगे बढ़ाता है। भारत इन दोनों थियेटरों को जोड़ते हुए, क्वाड/इंडोपैसिफ़िक साझेदारियों और SCO/BRICS संलग्नताओं में एक साथ खेलता है।
(ख) आतंकवादरोध और RATS:
अस्ताना 2024 में 202527 के लिए ट्राईईविल (आतंकवाद विच्छेद वाद उग्रवाद) विरोधकार्यक्रम को मंज़ूरी दी गई; एंटीड्रग रणनीति और जॉइंटएक्सरसाइज के ज़रिये RATS को ऑपरेशनल रूप देने की दिशा तय हुई, यह प्रवृत्ति तिआंजिन 2025 में भी परिलक्षित हुई, जहाँ आतंकवादरोध की भाषा और कड़ी हुई। भारत लगातार सीमापार आतंकवाद और ‘डबलस्टैंडर्ड’ पर आपत्ति दर्ज करता रहा है।
(ग) ऊर्जाव्यापार और भुगतानप्रणाली:
BRICS 202425 वार्ताओं का केंद्रीय तत्व वैकल्पिक भुगतानढाँचे (डॉलर निर्भरता में कमी) और ऊर्जासमझौते रहे। रूसभारतमध्यपूर्व ऊर्जासमीकरण, तथा यूएई/ईरान/मिस्र जैसे नए BRICS प्रतिभागियों की भागीदारी से समुद्रीलॉजिस्टिक्स और रिफाइनिंगट्रेड के नए संयोजन उभर रहे हैं। हालांकि सऊदी की औपचारिक सदस्यता को लेकर 202425 में संदेश मिश्रित रहे, यही दिखाता है कि भूराजनीतिकआर्थिक संतुलन अभी तरल अवस्था में है।
(घ) तकनीक और स्पेसनेविगेशन:
तिआंजिन 2025 में चीन का BeiDou अपनाने का आग्रह, सुरक्षित डिजिटल अवसंरचना/सप्लाईचेन रेज़िलिएंस और टेकमानकीकरण पर सहयोग का प्रस्ताव, एशियाई टेकइकोसिस्टम के ‘डिकपलिंगरोधी’ मॉडल की झलक देता है। भारत के लिए यह क्षेत्र अवसर और जोखिम दोनों का स्रोत है—क्योंकि एक तरफ 5G/6G, UPIआधारित भुगतान, और अंतरिक्षसहयोग में संभावनाएँ हैं; दूसरी तरफ डेटासुरक्षा, IPR और मानकराजनीति के पेच दोगुने हो जाते हैं।
भारत की भूमिका: कूटनीतिक संतुलन, उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ
रणनीतिक स्वायत्तता की परीक्षा:
भारत ने यूक्रेन युद्ध, पश्चिमी प्रतिबंधवातावरण और चीन के साथ सीमातनाव के बीच ‘मल्टीएलाइनमेंट’ की नीति को जिया है, SCO/BRICS में सहभागिता बनाए रखते हुए QUAD, IPEF, G20 में सक्रिय भूमिका निभाई। SCO में आतंकवाद पर कड़ी भाषा, क्षेत्रीय कनेक्टिविटी में संप्रभुता का प्रश्न, और BRICS में बहुध्रुवीय वित्तसंवाद ये तीनों धुरी भारत के हितों से जुड़ते हैं।
उपलब्धियाँ:
(i) ऊर्जा सुरक्षा: रियायती रूसी तेल और मध्यपूर्व आपूर्तियों का विविधीकरण; (ii) वैकल्पिक भुगतान/सेटलमेंट पर बहस को वैधता; (iii) टेक साझेदारी, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर मॉडल (UPI आदि) का सॉफ्टपावर; (iv) आतंकवाद रोध पर एकजुट भाषा के लिए लगातार दबाव।
चुनौतियाँ:
(i) चीन के साथ LAC पर भरोसे का अभाव; (ii) रूस के साथ घनिष्ठता और अमेरिका/यूरोपीय साझेदारियों के बीच संतुलन; (iii) BRICS विस्तार के बाद ‘विविध हितों’ का समायोजन कठिन कुछ सदस्य अमेरिका पक्षधर, कुछ उसके प्रतिद्वंद्वी; (iv) SCO में पाकिस्तान/अफगानिस्तान कारक।
अमेरिका यूरोप बनाम एशिया: नया शक्ति संतुलन
BRICS विस्तार और SCO सक्रियता ने बहुध्रुवीयता का विमर्श गाढ़ा किया है, यानी वैश्विक संस्थागत सुधार (UNSC, वित्तीय संस्थाएँ), आपूर्ति शृंखला विविधीकरण, तथा वैकल्पिक मानकी करण। किंतु, इन मंचों की वास्तविक ‘हॉर्डपावर’ उस समय कसौटी पर आती है जब पश्चिमी नीतियाँ टैरिफ/प्रतिबंध/टेक नियंत्रण कठोर हों। 2025 में BRICS के भीतर भी विविधता के कारण सहमतिनिर्माण चुनौतीपूर्ण दिखा; पश्चिम के साथ आर्थिक अंतर्सम्बंध इतने गहरे हैं कि पूर्ण ‘डिकपलिंग’ संभव नहीं। परिणामतः विश्वव्यवस्था ‘कम्पार्ट मेंटलाइज़्ड इंटरडिपेंडेंस’ की ओर बढ़ रही है जहाँ देश अलग-अलग मंचों पर अलग-अलग मुद्दों में साझेदारी चुनते हैं।
भविष्य की नीतिगत दिशा: जोखिम और अवसर
(क) संस्थागत गहराई बनाम वैचारिक विविधता:
SCO में विकास बैंक/ऊर्जा मंच जैसी पहलों से संस्थागत गहराई बढ़ेगी; परंतु चीनरूसभारत के त्रिकोण में सीमाविश्वास और युद्धपरिस्थितिउत्पन्न तनाव संस्थागत एजेंडा पर छाया डाल सकते हैं। BRICS में विस्तार से ‘स्केल’ तो मिलता है, पर अंतर्विरोध (लोकतांत्रिक अधिनायकवादी मिश्रण, अलग-अलग सुरक्षा निर्भरताएँ) फैसलों को धीमा कर सकते हैं।
(ख) ऊर्जा और कॉरिडोर जियो पॉलिटिक्स:
रूस एशिया मध्य पूर्व ऊर्जा कॉरिडोर, ट्रांस कज़ाख/कॉकस रूट, तथा हिंद महासागर आधारित समुद्री नेटवर्क भारत, चीन और खाड़ी राज्यों के लिए निर्णायक रहेंगे। अपतटीय/न्यूक्लियर/नवीकरणीय निवेश शृंखलाएँ तथा यदि BRICS/SCO वित्तढाँचा ठोस होता है, तो दीर्घकालिक फंडिंग के मार्ग खुलेंगे।
(ग) आतंकवाद रोध और सीमांत स्थिरता:
RATSकेंद्रित अभ्यास और एंटीड्रग समन्वय तब ही सार्थक होंगे जब ‘क्रॉसबॉर्डर सेफ हेवन्स’ पर बिना दोहरे मानदंड के कार्रवाई हो। भारत का रुख स्पष्ट है, राज्य प्रायोजित आतंकवाद पर नाम लेकर कठोरता; यही रेखा भविष्य की SCO घोषणाओं में और स्पष्ट करानी होगी।
(घ) टेक मानक और डेटा आलोक तंत्र:
BeiDou/साइबरसुरक्षा/डिजिटल पेमेंट इंटर ऑपरेबिलिटी पर सहयोग के साथ भारत को ‘ओपनस्टैंडर्ड्स’ और डेटासंप्रभुता के बीच संतुलन साधना होगा। बहुपक्षीय मानकीकरण में यदि चीनकेंद्रित ईकोसिस्टम बढ़ता है, तो इंटर ऑपरेबिलिटी/सुरक्षा आशंकाएँ उभरेंगी, इसलिए भारत को ‘कंसोर्टियमआधारित’ सहकारी फ्रेमवर्क्स (टेलीकॉम, क्लाउड, एआईसुरक्षा) में नेतृत्व लेना होगा।
(ड़) भुगतान प्रणाली और वित्तीय सुरक्षा:
BRICSविस्तार के बाद ‘डीडॉलराइजेशन’ की चर्चा बढ़ी है; पर व्यावहारिक स्तर पर यह क्रमिक विविधीकरण की दिशा है स्थानीय मुद्राओं/क्रॉसबॉर्डर पेमेंट रेल्स/रिफाइनरीसेटलमेंट जैसे तंत्र। भारत को UPIवंशज प्रणालियों की ‘पब्लिकगुड’ अपील के साथ, शुल्कमानक/साइबर रेज़िलिएंस पर साझा ढाँचा प्रस्तावित करना चाहिए।
महाद्वीपीय कूटनीति, वैश्विक महत्ता और भारत के लिए नीति संदेश
एशियाई बहुपक्षीय मंच आज ‘मानक निर्माण’ (standard setting) के निर्णायक दौर में हैं। SCO की सुरक्षाकेंद्रित जड़ों में अब विकास बैंक/ऊर्जानेटवर्क/सप्लाईचेन की परतें जुड़ रही हैं; BRICS विस्तार ने साउथ साउथ सहयोग और वैश्विक शासनसुधार की बहस को वृहद् बनाया है, यद्यपि अंतर्विरोध भी बढ़े हैं। पश्चिमी टैरिफ/प्रतिबंधराजनीति और टेकनियंत्रण के बीच, एशियाई मंचों की क्षमता ‘समन्वित वैकल्पिकता’ (coordinated alternatives) गढ़ने में परखी जाएगी। इस परिदृश्य में भारत के लिए पाँच स्पष्ट नीतिसंदेश उभरते हैं:
1. द्वि थियेटर एप्रोच: यूरेशियन सुरक्षा (SCO) और इंडोपैसिफ़िक आर्किटेक्चर (Quad/IPEF) दोनों में समवर्ती सक्रियता; ‘ब्रिजस्टेट’ की भूमिका को औपचारिक करें।
2. आतंकवाद रोध की कठोर रेखा: RATS/एंटीड्रग ढाँचों में ‘नाम लेकर जवाबदेही’ की भाषा को संस्थागत करें, घोषणाओं में ‘सेफहेवन्स/फाइनेंसिंग’ पर निगरानीमैट्रिक्स जोड़ें।
3. टेक मानकी करण में नेतृत्व: UPI मॉडल, 5G/6G ओपन RAN, स्पेस डेटा इंटर ऑपरेबिलिटी इन क्षेत्रों में बहुपक्षीय ‘ओपन स्टैंडर्ड’ गठबंधन प्रस्तावित कर भारत केंद्रित मानक राजनीति धार दें।
4. ऊर्जा कॉरिडोर सुरक्षा: रूस मध्य एशिया कॉकस मध्य पूर्व मार्गों के ‘जियोरिस्क’ को घटाने हेतु बहुपक्षीय बीमा/वित्तीय गारंटी तंत्र BRICS/SCO मंच पर टेबल करें।
5. वित्तीय विविधीकरण पर सावधानी: BRICS पेमेंट विमर्श में भागीदारी रखें, पर पूँजी नियमन, साइबर अनुपालन, और G20/IMF संशोधनों के साथ सामंजस्य बनाए रखें, ताकि पश्चिमी बाजार प्रवेश और प्रौद्योगिकी प्रवाह प्रभावित न हों।
अंततः, बहुध्रुवीयता का अर्थ ‘विरोधी गुटबंदी’ नहीं, बल्कि ‘विकल्पों का वास्तुशास्त्र’ है, जहाँ भारत अपनी लोकतांत्रिक साख, आर्थिक पैमाने और टेकसमर्थता से नियमनिर्माण की मेज पर स्थायी शक्ति बन सकता है। SCO और BRICS दोनों, यदि वे घोषणाओं को ठोस परियोजनाओं (ऊर्जा ग्रिड, सप्लाईचेन, फाइनेंस, टेकमानक) में बदलते हैं, तो एशियाई सदी का आकार अधिक संतुलित और अधिक समावेशी होगा। भारत की भूमिका संतुलनकारी, मानक निर्माता और सुरक्षा गैर समझौतावादी यही इस दौर का मूल मंत्र है।
What's Your Reaction?






