"मेरी माँ कहाँ हैं?" - सुप्रीम कोर्ट में गूंजा बेटे का सवाल, असम सरकार की कार्रवाई पर उठे संवैधानिक प्रश्न

सुप्रीम कोर्ट में एक युवा बेटे यूनुस द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका ने असम सरकार की कार्रवाई को कठघरे में खड़ा कर दिया है। आरोप है कि यूनुस की माँ मोनोवारा बेवा को बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के हिरासत में लेकर बांग्लादेश भेजा गया या भेजे जाने की तैयारी की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई है, जिससे राज्य प्रशासन की विदेशियों के संबंध में अपनाई जा रही प्रक्रिया पर संवैधानिक बहस शुरू हो गई है।

Jun 4, 2025 - 07:20
Jun 4, 2025 - 08:28
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"मेरी माँ कहाँ हैं?" - सुप्रीम कोर्ट में गूंजा बेटे का सवाल, असम सरकार की कार्रवाई पर उठे संवैधानिक प्रश्न
सुप्रीम कोर्ट (इमेज-एएनआई)

"मेरी माँ कहाँ हैं?" - यह सवाल केवल एक बेटे की पुकार नहीं, बल्कि भारत में संवैधानिक अधिकारों की स्थिति पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न है।

सोमवार, 2 जून को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान यूनुस नामक युवक ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के माध्यम से एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसकी माँ, मोनोवारा बेवा, को असम पुलिस ने गैरकानूनी रूप से हिरासत में ले लिया और उन्हें कथित रूप से बांग्लादेश निर्वासित करने की कोशिश की जा रही है - बिना किसी न्यायिक आदेश या निष्पक्ष सुनवाई के।

पृष्ठभूमि और कानूनी संदर्भ

मोनोवारा बेवा को वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक आदेश के तहत जमानत दी थी। यह आदेश उन लोगों के लिए था जो असम के 'विदेशी डिटेंशन कैंपों' में तीन वर्ष से अधिक समय से बंद थे, बशर्ते वे कुछ शर्तों का पालन करें। यूनुस के अनुसार, उनकी माँ ने इन सभी शर्तों का पालन किया।

लेकिन 24 मई, 2025 को मोनोवारा को 'बयान दर्ज कराने' के बहाने स्थानीय पुलिस स्टेशन बुलाया गया और तब से वे कथित रूप से हिरासत में हैं। यूनुस ने आरोप लगाया कि उन्होंने पुलिस को यह बताया कि उनकी माँ का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, लेकिन फिर भी उन्हें रिहा नहीं किया गया।

बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का महत्व

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 के तहत बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) एक मौलिक अधिकार है - जिसके तहत कोई भी नागरिक किसी व्यक्ति की गैरकानूनी हिरासत के विरुद्ध न्यायालय से राहत माँग सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई पर सहमति जताई है, जो यह दर्शाता है कि मामला संवैधानिक गंभीरता लिए हुए है।

 संवैधानिक प्रश्न और प्रशासनिक पारदर्शिता

यह मामला न केवल एक व्यक्ति की आज़ादी से जुड़ा है, बल्कि असम की नागरिकता नीति, NRC के बाद की कार्यवाही, तथा बांग्लादेश प्रत्यर्पण जैसे संवेदनशील विषयों पर प्रशासन की पारदर्शिता और न्यायिक निरीक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

अगर मोनोवारा बेवा का निर्वासन बिना स्पष्ट न्यायिक आदेश के हुआ है, तो यह 'न्यायिक प्रक्रिया के उल्लंघन' के साथ-साथ भारत में मानवाधिकारों और विधिक प्रणाली पर एक गहरा सवाल खड़ा करता है।

यूनुस की पुकार -"मेरी माँ कहाँ हैं?" - एक व्यक्तिगत वेदना से बढ़कर, लोकतंत्र के स्तंभों को झकझोरने वाला प्रश्न बन गई है। यह मामला देश की न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के संतुलन की परीक्षा है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में यह सुनिश्चित किया जाना नितांत आवश्यक है कि कोई भी नागरिक - चाहे उसकी नागरिकता पर विवाद हो या न हो - संविधान में प्रदत्त मूल अधिकारों से वंचित न हो।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I