संख्याओं की सृष्टि में ईश्वर की झलक: शकुंतला देवी
शकुंतला देवी, भारत की वह अद्भुत प्रतिभा जिन्होंने गणित को कला, संवेदना और दर्शन में बदल दिया। ‘ह्यूमन कंप्यूटर’ कही जाने वाली शकुंतला देवी की कहानी मानव मन की शक्ति, जिज्ञासा और साहस का अद्वितीय उदाहरण है।
शकुंतला देवी मानव मस्तिष्क की असीम संभावनाओं की मिसाल
संख्याओं का संसार जितना अनंत है, उतना ही रहस्यमय भी। और जब कोई व्यक्ति इस रहस्य को नृत्य में बदल दे, तो वह केवल गणितज्ञ नहीं, बल्कि सृजनकर्ता कहलाता है। शकुंतला देवी ऐसी ही एक सृजनात्मा थीं, जिनके मस्तिष्क में गणना संगीत बन जाती थी, और जिनकी स्मृति में अंक चित्रों की तरह उभरते थे। उनके लिए गणित केवल तर्क नहीं, अनुभूति था।
4 नवंबर 1929 को बैंगलोर की साधारण गलियों में जन्मी इस बालिका ने संसार को यह दिखा दिया कि जिज्ञासा, अनुशासन और आत्मविश्वास के सम्मिश्रण से कोई भी मनुष्य असंभव को संभव बना सकता है। उस समय जब भारत में लड़कियों की शिक्षा भी सीमित थी, शकुंतला देवी ने बिना किसी औपचारिक डिग्री के वह उपलब्धि हासिल की, जो बड़े-बड़े विश्वविद्यालय भी नहीं दे सके, उन्होंने मानव बुद्धि की सीमाओं को पुनर्परिभाषित किया।
संख्याओं की नृत्यांगना
जहाँ हम में से अधिकांश लोग गणित से भय खाते हैं, शकुंतला देवी उसे कविता की तरह गुनगुनाती थीं। वे कहती थीं, “संख्याएँ मेरे साथ संवाद करती हैं; मैं उन्हें महसूस करती हूँ, जैसे कोई चित्रकार अपने रंगों को।” उनकी यही सहज बौद्धिक अंतर्दृष्टि उन्हें पारंपरिक गणितज्ञों से अलग करती थी। वे सूत्रों या कैलकुलेटर पर निर्भर नहीं थीं; उनका मस्तिष्क स्वयं एक प्रयोगशाला था, जहाँ हर गणना रचनात्मक आनंद बन जाती थी।
1950 के दशक में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर वह करिश्मा दिखाया, जिसने वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया। 1980 में, उन्होंने दो 13-अंकीय संख्याओं (7,686,369,774,870 × 2,465,099,745,779) का गुणनफल मात्र 28 सेकंड में निकाला। जब परिणाम को कंप्यूटर से मिलाया गया, तो एक भी त्रुटि नहीं थी। यह चमत्कार गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज हुआ, एक ऐसी उपलब्धि, जिसने गणित को मानव चेतना की पराकाष्ठा बना दिया।
मानव कंप्यूटर नहीं, मानव करिश्मा
शकुंतला देवी को ‘ह्यूमन कंप्यूटर’ कहा गया, पर सच्चाई यह है कि वे ‘ह्यूमन करिश्मा’ थीं। मशीनें गणना कर सकती हैं, पर संवेदना और सौंदर्य का अनुभव नहीं। शकुंतला ने संख्याओं को संवेदना दी, और गणित को मानवीय स्पर्श। वे कहती थीं, “मैं गणित करती हूँ, क्योंकि यह मेरा प्रेम है, मेरी साँसों का आधार है।” यह प्रेम ही था जो उन्हें प्रयोग और खोज की दिशा में निरंतर अग्रसर रखता था। उनकी पुस्तकों ‘Puzzles to Puzzle You’, ‘Fun with Numbers’, ‘Figuring: The Joy of Numbers’, और ‘In the Wonderland of Numbers’ ने पीढ़ियों को गणित के प्रति नई दृष्टि दी। उन्होंने साबित किया कि गणित रटने की चीज़ नहीं, बल्कि सोचने का आनंद है। वे हर बच्चे में एक गणितज्ञ देखती थीं, बस प्रेरणा की चिंगारी जगाने की आवश्यकता मानती थीं।
सामाजिक चेतना की गणना
शकुंतला देवी का व्यक्तित्व केवल गणित तक सीमित नहीं था। वे अपने समय से बहुत आगे थीं।
1977 में उन्होंने ‘The World of Homosexuals’ नामक पुस्तक लिखी, एक ऐसी किताब जिसने भारतीय समाज में समलैंगिकता पर चर्चा की नींव रखी। उस दौर में जब यह विषय वर्जित था, शकुंतला देवी ने लिखा कि “हर व्यक्ति को अपनी पहचान के साथ जीने का अधिकार है, और समाज का कर्तव्य है कि वह उसे सम्मान दे।”
यह पुस्तक भारत में इस विषय पर प्रकाशित पहली गंभीर रचना थी। यह कदम न केवल सामाजिक साहस का प्रतीक था, बल्कि यह भी दिखाता था कि शकुंतला देवी का दृष्टिकोण मानवता की समानता में गहराई से निहित था। वे गणित की सीमाओं से आगे जाकर मानवीय संबंधों की जटिलताओं को समझने का प्रयास कर रही थीं।
भारत की राजदूत
अमेरिका, जापान, यूरोप, मलेशिया और कनाडा हर जगह शकुंतला देवी ने भारत का नाम गौरवान्वित किया। वे भारतीय स्त्री की उस नई छवि की प्रतीक थीं, जो सीमाओं से परे जाकर सोचती, सृजित करती और प्रेरित करती है। 1980 में उन्होंने लोकसभा चुनाव भी लड़ा। राजनीति में उनकी यह पहल उनकी स्वतंत्र सोच और सामाजिक भागीदारी की प्रतीक थी। भले ही वे चुनाव नहीं जीतीं, पर यह कदम उनके साहस की गवाही देता है कि जीवन में कोई भी क्षेत्र असंभव नहीं।
संवेदना, गणना और आत्मा
उनकी जीवन यात्रा यह सिखाती है कि प्रतिभा तभी सार्थक होती है जब वह संवेदना से जुड़ी हो। शकुंतला देवी के व्यक्तित्व में यही समरसता थी, गणना में गहराई और जीवन में करुणा।
वे कहती थीं, “संख्याएँ जीवित हैं। वे हमें समझाती हैं कि हर चीज़ का कोई संतुलन, कोई अर्थ होता है।”
शायद इसी संतुलन को उन्होंने अपने जीवन में भी साधा, जहाँ वे वैज्ञानिक चमत्कार के साथ-साथ मानवीय मूल्यों की वाहक बनीं।
21 अप्रैल 2013 को जब शकुंतला देवी इस संसार से विदा हुईं, तब भी उनकी स्मृति में वही प्रकाश था, जो उनके अंकों की गति में झलकता था।
2020 में उनकी जीवनी पर बनी फिल्म ‘शकुंतला देवी’ ने नई पीढ़ी को उनसे परिचित कराया, पर असली शकुंतला को समझने के लिए हमें उनके भीतर झाँकना होगा, उस स्थान पर, जहाँ संख्या और आत्मा एकाकार होती है।
आज की दुनिया के लिए संदेश
आज जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता और सुपरकंप्यूटरों का युग है, शकुंतला देवी की याद हमें यह सिखाती है कि सच्ची शक्ति मनुष्य के मस्तिष्क और उसकी रचनात्मकता में निहित है। मशीनें तेज़ हो सकती हैं, पर वे अनुभव नहीं कर सकतीं। शकुंतला देवी ने यह सिद्ध किया कि गणित केवल तकनीक नहीं, आत्मा की भाषा है। वे उस अनंत चेतना की प्रतीक हैं, जहाँ विज्ञान और कला एक दूसरे से मिलते हैं। उनकी कहानी यह बताती है कि शिक्षा, डिग्री या संसाधन प्रतिभा के निर्धारक नहीं होते, जुनून और जिज्ञासा ही असली ईंधन हैं। शकुंतला देवी ने अपनी ज़िंदगी से यह दिखाया कि जब मनुष्य अपने भीतर के ब्रह्मांड को खोज लेता है, तो वह किसी भी कंप्यूटर से अधिक अद्भुत बन जाता है।
शकुंतला देवी एक युग थीं, एक ऐसा युग जहाँ मानव चेतना ने स्वयं को अपनी सीमाओं से मुक्त किया। उन्होंने हमें यह सिखाया कि गणित केवल गिनती नहीं, बल्कि जीवन का एक दर्शन है। उनके जीवन की गणना में अंक नहीं, प्रेरणाएँ हैं, साहस का गुणन, सीमाओं का भाग, संवेदना का जोड़ और जिज्ञासा का वर्गफल। वे उस प्रश्न का उत्तर हैं, जो हर युग पूछता है, क्या मानव मस्तिष्क अनंत है? और शकुंतला देवी का उत्तर सदैव गूँजता रहेगा, “हाँ, यदि तुम विश्वास करो।”
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