ऋषिकांत शुक्ला डिप्टी एसपी है या भ्रष्टाचार की दूकान?
कानपुर-नगर में तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने अपने गुलामी-कार्यक्षेत्र में 12 भूमि, 11 दुकानें तथा अन्य संपत्तियाँ अर्जित की हैं, गृह विभाग ने सतर्कता जाँच का आदेश जारी किया है।
कानपुर में 100 करोड़ की दौलत: डिप्टी एसपी ऋषिकान्त शुक्ला के खिलाफ सतर्कता जाँच
लखनऊ : उत्तर प्रदेश प्रदेश में कानून-प्रवर्तन एजेंसियों पर पारदर्शिता व जवाबदेही की माँग लगातार बनी हुई है। ऐसे में, कानपुर नगर क्षेत्र में तैनात डिप्टी एसपी ऋषिकांत शुक्ला के खिलाफ खबर ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं कि यदि अधिकारी ही सम्पत्ति नियंत्रण के दायरे से बाहर हो जाएँ, तो न्याय-प्रक्रिया और सार्वजनिक भरोसे को कितना धक्का लगता है।
आरोप एवं प्राथमिक जाँच
एक आधिकारिक नोटिफिकेशन के अनुसार, गृह (पुलिस सेवाएँ-1) अनुभाग-17 द्वारा जारी पत्र में उल्लेख है कि ऋषिकांत शुक्ला द्वारा अपनी सेवा अवधि में अस्वाभाविक और आय से कई गुना अधिक सम्पत्ति अर्जित की गई है।
सूत्र बताते हैं कि उनके नाम पर 12 भूमि-संपत्तियाँ मिली हैं, तथा 11 दुकानें आर्यनगर क्षेत्र में पड़ी हुई हैं, जो कथित रूप से उनके पड़ोसी साथी के नाम पर बेनामी रूप से निर्देशित हैं। इसके अतिरिक्त, तीन अन्य स्थानों पर ऐसी सम्पत्तियाँ हैं जिनके अभिलेख नहीं मिल पाए, लेकिन गोपनीय सूचना के अनुसार वे त्यागपत्र की जाँच में पैन संबंधी हैं।
जाँच में यह पाया गया कि ऋषिकांत शुक्ला का नाम एक वकील गिरोह के साथ जुड़ा हुआ है, ऐसा गिरोह जो फर्जी मुकदमे दर्ज कराने, जमीन ज़ब्त करने व जबरन वसूली करने में कथित रूप से सक्रिय है। पुलिस कमिश्नर कानपुर नगर के पत्र तथा एसआईटी की रिपोर्ट को आधार मानते हुए, प्रशासन ने सतर्कता जाँच एवं अग्रेतर कार्यवाही की सिफारिश की है।
प्रश्न जो उठते हैं
1. यदि एक अधिकारी की नियमित आय व अधिकारी-वेतन के अनुरूप संपत्ति इतनी विशाल हो सकती है, तो यह संकेत है कि सिस्टम में नियंत्रण व पारदर्शिता में खामी है।
2. बेनामी संपत्ति व साथी-नामांतर्गत लेखांकन की पीठ पीछे क्या नेटवर्क काम करता रहा? स्थानीय वकील-गिरोह और पुलिस का गठजोड़ कितनी दूर तक गया?
3. प्रशासन द्वारा पहले कब तक इस तरह के आरोपों पर सक्रिय रवैया अपनाया गया है, और क्या इस मामले में जाँच निष्पक्ष व समयबद्ध होगी?
4. सार्वजनिक भरोसे के लिए यह कितना महत्वपूर्ण है कि जाँच निष्कर्ष सार्वजनिक हों, और जवाबदेही तय हो?
सामाजिक एवं नीतिगत संकेत
यह मामला सिर्फ एक अधिकारी-स्तर का स्कैंडल नहीं है, यह यह दर्शाता है कि कानून-व्यवस्था व न्याय व्यवस्था का इकोसिस्टम कुंडलित हो सकता है जब एक कड़ी (जैसे पुलिस) में भ्रष्टाचार पनप जाए।
नीति-दृष्टि से: संपत्ति प्रवासन (asset declaration) व समय-समय पर निगरानी व्यवस्था को और मजबूत करना होगा। स्थानीय नागरिक तथा मीडिया द्वारा जागरूकता बढ़ानी होगी कि अधिकारी-संपत्ति-रिश्तों की जाँच हो सके। भ्रष्टाचार रोधी संस्थाओं (जैसे सतर्कता विभाग, पुलिस महानिदेशालय) को स्वायत्तता व संसाधन देना होगा ताकि इन्हें दबाव-रहित कार्य करना संभव हो सके। पीड़ितों जहाँ जमीन-कब्जा, वसूली जैसे मामले सामने आते हैं, उनकी शिकायतों का त्वरित निपटान सुनिश्चित करना चाहिए। डिप्टी एसपी ऋषिकांत शुक्ला मामले ने एक बार फिर यह स्मरण कराया है कि सत्ता के साथ जिम्मेदारी आती है, यदि वह जिम्मेदारी नहीं निभाई जाए, तो न सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि सामाजिक-नैतिक स्तर पर भरोसा टूटता है। आज जब सरकारी अधिकारी की ‘100 करोड़ की दौलत’ जैसी खबरें सामने आती हैं, तो यह हमारे सभी लिए अलार्म-घंटियाँ हैं, यह वक्त है कि हम केवल शिकायत करें नहीं, बल्कि उन नीतियों-प्रक्रियाओं को भी सुदृढ़ करें जो ऐसी घटनाओं को नियंत्रित कर सकें। इस मामले की आगे की जाँच, सार्वजनिक निष्पादन व जवाबदेही तय करेगा कि यह सिर्फ एक खबर रह जाएगी या वाकई एक परिवर्तन-सूचक घटना बन सकेगी।
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