गरीबी-मुक्त भारत का सपना: केरल ने दिखाया रास्ता

केरल बना भारत का पहला गरीबी-मुक्त राज्य। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के “एक्सट्रीम पॉवर्टी एरेडिकेशन प्रोग्राम” ने 59,000 से अधिक परिवारों को गरीबी से बाहर निकाला। सामाजिक न्याय, शिक्षा और जनभागीदारी पर आधारित यह “केरल मॉडल” अब पूरे भारत के लिए प्रेरणा बना है।

Nov 3, 2025 - 20:07
Nov 3, 2025 - 19:46
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गरीबी-मुक्त भारत का सपना: केरल ने दिखाया रास्ता
इनसेट में केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन

नव-केरल के उदय में छिपा सामाजिक न्याय, संवेदना और नीति की सफलता का पाठ

भारत में विकास की गाथा प्रायः आंकड़ों के जाल में उलझ जाती है, कितना GDP बढ़ा, कितनी योजनाएँ  चलीं, कितनी घोषणाएँ  हुईं। लेकिन विकास तब अर्थपूर्ण बनता है, जब वह लोगों के जीवन को बदलता है, जब किसी की भूख मिटती है, किसी बच्चे को शिक्षा मिलती है, और किसी परिवार को छत। इसी मानवीय पैमाने पर देखें तो केरल ने इतिहास रच दिया है।

1 नवंबर 2025 को, केरल पिरवी दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने विधानसभा में घोषणा की, “केरल अब अत्यधिक गरीबी से मुक्त है।” यह कथन किसी चुनावी भाषण का हिस्सा नहीं, बल्कि एक सामाजिक युगांत की उद्घोषणा थी। केरल ने भारत का पहला ऐसा राज्य बनकर दिखाया, जिसने अत्यधिक गरीबी को जड़ से उखाड़ फेंका। यह सिर्फ शासन की नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक चेतना की जीत है।

भूमि सुधार से मानव कल्याण तक: एक ऐतिहासिक यात्रा

1957 में जब EMS नंबूदिरिपाद के नेतृत्व में पहली वाम सरकार बनी, तब से ही केरल ने विकास की अपनी अलग राह चुनी। उस समय देश के कई हिस्से जातीय भेदभाव और आर्थिक विषमता में उलझे थे, जबकि केरल ने भूमि सुधार, सार्वजनिक स्वास्थ्य, और शिक्षा को अपनी प्राथमिकता बनाया। इन सुधारों ने वह सामाजिक आधार रचा जिसने आगे चलकर गरीबी के खिलाफ निर्णायक लड़ाई का मार्ग प्रशस्त किया। 96% साक्षरता, कम शिशु मृत्यु दर, और पूर्ण विद्युतीकरण जैसे संकेतक इस बात के साक्षी हैं कि केरल ने विकास को मानव-केंद्रित दृष्टि से परिभाषित किया।

EPEP: नीति नहीं, मानवीय संवेदना की योजना

2021 में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में ही एक्सट्रीम पॉवर्टी एरेडिकेशन प्रोग्राम (EPEP) को मंजूरी दी। यह निर्णय केवल एक प्रशासनिक पहल नहीं था, बल्कि उस राजनीतिक प्रतिबद्धता का प्रतीक था जो ‘विकास’ को आंकड़ों से आगे ले जाकर ‘मानव गरिमा’ तक पहुँचाती है। नीति आयोग की 2023 की रिपोर्ट में केरल को देश का सबसे कम बहुआयामी गरीबी दर (0.55%) वाला राज्य बताया गया था। फिर भी, सरकार ने आत्मसंतुष्ट होने के बजाय अपनी दृष्टि और तीक्ष्ण की। राज्य के 1,032 स्थानीय निकायों की भागीदारी से एक अभूतपूर्व सर्वेक्षण हुआ, 64,006 परिवार (1,03,099 व्यक्ति) अत्यधिक गरीबी की श्रेणी में पाए गए।

यह पहचान केवल आय पर नहीं, बल्कि जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं भोजन, स्वास्थ्य, आवास, शिक्षा और रोजगार की उपलब्धता पर आधारित थी। सरकार ने हर परिवार के लिए व्यक्तिगत माइक्रो-प्लान तैयार किया, ताकि सहायता योजनाएँ  ‘एक जैसे सबके लिए’ के बजाय ‘हर व्यक्ति के अनुसार’ हों। यह नीति-निर्माण में मानवीकरण (Humanisation of Policy) की मिसाल है।

जीवन के हर पहलू में हस्तक्षेप: नीति से लेकर नीयत तक

केरल सरकार ने गरीबी को ‘आर्थिक समस्या’ नहीं, बल्कि ‘बहुआयामी अभाव’ के रूप में देखा। इसलिए उसने भोजन, स्वास्थ्य, शिक्षा, और आवास चारों मोर्चों पर एक साथ काम किया।

  • भोजन सुरक्षा: 20,648 परिवारों को नियमित राशन और 2,210 परिवारों को पका भोजन उपलब्ध कराया गया।
  • स्वास्थ्य: 85,721 व्यक्तियों को मुफ्त उपचार और औषधि सहायता मिली।
  • आवास: 5,400 नए घर बने, 5,522 पुराने घरों की मरम्मत हुई, और 2,713 भूमिहीन परिवारों को जमीन दी गई।
  • रोजगार और दस्तावेज़ीकरण: राशन कार्ड, आधार कार्ड, पेंशन जैसी सुविधाओं को तत्काल सुनिश्चित किया गया।

यह सब केवल सरकारी फाइलों तक सीमित नहीं रहा, कुडुंबश्री जैसे महिला समूहों और स्थानीय पंचायतों ने इसे जन-आंदोलन में बदल दिया। 59,277 परिवारों को गरीबी से बाहर लाना केवल योजना की नहीं, बल्कि समाज की भागीदारी की सफलता है।

केरल मॉडल: विकास का मानवीय चेहरा

पिनराई विजयन ने इसे ‘नव-केरल का उदयकहा। उनके शब्दों में, “यह आर्थिक प्रगति नहीं, सामाजिक पुनर्जागरण है।” केरल मॉडल की सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह विकास और समानता को एक साथ लेकर चलता है। यह मॉडल यह नहीं मानता कि आर्थिक विकास पहले होगा और सामाजिक न्याय बाद में। बल्कि, यह कहता है कि सामाजिक न्याय ही आर्थिक विकास का आधार है। यह सोच ही केरल को बाक़ी भारत से अलग करती है। जहाँ देश के अन्य हिस्सों में विकास अक्सर असमानता पैदा करता है, वहाँ केरल में विकास ‘समानता’ और ‘भागीदारी’ पर टिका है।

विवाद, आलोचना और लोकतांत्रिक परिपक्वता

कांग्रेस-नीत यूडीएफ ने इस घोषणा को ‘राजनीतिक दिखावा’ कहा। विपक्षी नेता वी.डी. सतीशन ने विधानसभा सत्र का बहिष्कार किया और सर्वेक्षण की पद्धति पर सवाल उठाए। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने वायनाड के आदिवासी इलाकों में अब भी मौजूद सुविधाओं की कमी की ओर ध्यान खींचा। सरकार ने आलोचना को खारिज नहीं किया, बल्कि सुधार का अवसर’ माना। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि “गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य स्थायी तभी होगा, जब कोई परिवार दोबारा गरीबी में न लौटे।” इसके लिए निगरानी, डेटा अपडेट, और सामुदायिक सहभागिता को संस्थागत रूप दिया जा रहा है। यह रुख दर्शाता है कि केरल का मॉडल आत्ममुग्ध नहीं, बल्कि आत्मसमीक्षक है, जो अपनी कमियों को भी सुधार के अवसर में बदलता है।

आर्थिक परिप्रेक्ष्य: जब मानव पूँजी बनती है शक्ति

दिलचस्प तथ्य यह है कि केरल का GDP भारत का केवल 0.51% है। फिर भी, यह राज्य मानव विकास सूचकांक (HDI) में अग्रणी है। इसका अर्थ यह है कि विकास केवल पूँजी निवेश का परिणाम नहीं, बल्कि नीति की प्राथमिकताओं का भी है। केरल ने इन्फ्रास्ट्रक्चर से पहले इंसान को रखा, स्कूल, अस्पताल, पंचायत, महिला समूह ये सब मिलकर ‘मानव पूँजी’ का निर्माण करते हैं। यही वह पूँजी है जो राज्य को आत्मनिर्भर और सहनशील बनाती है।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य: SDG-1 की जीवंत मिसाल

संयुक्त राष्ट्र का पहला सतत विकास लक्ष्य (SDG-1) है, ‘No Poverty’2025 में केरल ने यह लक्ष्य हासिल कर लिया। विश्व बैंक की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, केरल में अब कोई भी व्यक्ति प्रतिदिन 3 डॉलर से कम आय पर नहीं जीता। यह एक ऐसा उपलब्धि है जो न केवल भारत, बल्कि दक्षिण एशिया के लिए प्रेरणास्रोत बन सकती है।

चीनी राजदूत शू फेइहोंग ने केरल सरकार के समारोह में कहा, “यह सिर्फ केरल की नहीं, मानवता की साझा जीत है।” जब विश्व के कई हिस्से महामारी और युद्ध से बढ़ती गरीबी से जूझ रहे हैं, केरल का उदाहरण बताता है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और सामाजिक एकजुटता से कोई भी राज्य गरीबी को हरा सकता है।

भारत के लिए केरल से सबक

भारत में अब भी करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड जैसे राज्यों में बहुआयामी गरीबी दर 25% से अधिक है। केरल का मॉडल इन राज्यों के लिए दिशा दिखाता है, नीति का लक्ष्य गरीबी मापना नहीं, बल्कि उसे मिटाना होना चाहिए।’ यदि केंद्र की योजनाएँ, जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान भारत, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM), EPEP की तरह माइक्रो-प्लानिंग और स्थानीय निकायों की साझेदारी से जोड़ी जाएँ, तो ‘गरीबी-मुक्त भारत’ केवल नारा नहीं, हकीकत बन सकता है।

सेवा की राजनीति, संवेदना का शासन

केरल की यह ऐतिहासिक घोषणा एक संदेश देती है कि जब राजनीति सत्ता नहीं, सेवा बन जाए; जब विकास परियोजना नहीं, मानवता का मिशन बन जाए; तो ‘गरीबी’ जैसी सदियों पुरानी चुनौती भी परास्त की जा सकती है। केरल की कहानी इस बात का प्रमाण है कि संवेदना और शासन, जब हाथ मिलाते हैं, तो चमत्कार होते हैं। आज भारत के सामने चुनौती स्पष्ट है, क्या बाकी राज्य भी इस दिशा में बढ़ेंगे? क्या विकास का अर्थ अब ‘अमीरों के आँकड़े’ नहीं, बल्कि ‘गरीबों की मुस्कान’ बनेगा?

अगर ऐसा हुआ, तो वह दिन दूर नहीं जब भारत भी कह सकेगा, “हम केवल बढ़े नहीं, सबको साथ लेकर आगे बढ़े हैं।” केरल ने रास्ता दिखा दिया है। अब भारत को उस पर चलना है।

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