बंगाल की शिक्षा में अनैतिकता की घुसपैठ: शिक्षक भर्ती घोटाला और जनता का प्रतिरोध

पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था की साख को गहरी चोट पहुँचाई है। CBI और ED की जाँच में SSC और TET परीक्षाओं के माध्यम से बड़े पैमाने पर फर्जी नियुक्तियाँ और रिश्वतखोरी उजागर हुई हैं, जिसमें पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी समेत कई लोग संलिप्त पाए गए। योग्य अभ्यर्थियों को दरकिनार कर अयोग्य लोगों को पैसे लेकर नियुक्त किया गया, जिससे हज़ारों छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ गया। आंदोलनरत अभ्यर्थियों की उपेक्षा और प्रशासन की दमनकारी नीति लोकतंत्र के लिए चिंताजनक संकेत हैं।

May 18, 2025 - 07:00
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बंगाल की शिक्षा में अनैतिकता की घुसपैठ: शिक्षक भर्ती घोटाला और जनता का प्रतिरोध
आंदोलनकारी शिक्षकों पर लाठीचार्ज

पश्चिम बंगाल जिसे कभी बुद्धिजीवियों की भूमि कहा जाता था - आज शिक्षा व्यवस्था में भारी भ्रष्टाचार के कारण शर्मसार हो रहा है। राज्य की बहुप्रतीक्षित शिक्षक भर्ती प्रणाली में घोटाले के खुलासों ने यह सिद्ध कर दिया है कि राजनीति और पैसे के गठजोड़ ने अब देश की भावी पीढ़ी के भविष्य से भी खिलवाड़ शुरू कर दिया है।

भ्रष्टाचार का खुला दस्तावेज: SSC-TET घोटाला

2022 में प्रवर्तन निदेशालय (ED) औरCBI द्वारा की गई छापेमारी में राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी और उनकी करीबी अर्पिता मुखर्जी के आवास से करोड़ों की नकदी, सोना और दस्तावेज़ बरामद हुए। जाँच एजेंसियों के अनुसार, स्कूल सर्विस कमीशन (SSC) और शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) के माध्यम से शिक्षकों की भर्ती में बड़े पैमाने पररिश्वत लेकर अयोग्य उम्मीदवारों को नौकरी दी गई।

सीबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, 800 से अधिक अयोग्य नियुक्तियाँ केवल 2014 से 2018 के बीच की गईं। इसके अलावा,2021 TET परीक्षा में 11,000 से अधिक फर्जी अंकपत्र सामने आए।

छात्रों और अभ्यर्थियों का आक्रोश: न्याय की लड़ाई

घोटाले के सामने आने के बाद से ही हज़ारों योग्य लेकिन नियुक्ति से वंचित अभ्यर्थीकोलकाता के करुणामयी, धर्मतला और सॉल्ट लेक इलाकों में धरने पर बैठे हैं। कुछ अभ्यर्थी 300 दिनों से भी अधिक समय से लगातार धरना दे रहे हैं- यह केवल आंदोलन नहीं, बल्कि एक लोकतांत्रिक याचना है।

सरकारी रवैया: टालमटोल और दमन का दोहरा चेहरा

पश्चिम बंगाल सरकार की प्रतिक्रिया शुरू से ही टालमटोल और अनुत्तरदायी रही है। कई बार पुलिस बल का प्रयोग कर शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को हटाया गया, उन्हें गिरफ्तार किया गया, और प्रेस को नियंत्रित करने की कोशिश की गई।

इसके समानांतर,अदालतों ने हस्तक्षेप कर कई नियुक्तियाँ रद्द कीं, लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें फिर से बहाल करने की कोशिश की - यह स्पष्ट संकेत है कि सत्ता पक्ष खुद को कानून से ऊपर समझता है।

बुद्धिजीवियों की चुप्पी और समाज का खतरा

शिक्षा जगत के कई वरिष्ठ शिक्षक और बुद्धिजीवी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। यह न केवल अफसोसनाक है, बल्कि यह दर्शाता है कि जब सत्ता की निकटता विवेक पर भारी पड़ती है, तो सामाजिक पतन सुनिश्चित हो जाता है।

आगे क्यान्यायिक निगरानी और व्यापक सुधार

यह घोटाला केवल नियुक्तियों तक सीमित नहीं, यह उस बुनियादी ताने-बाने पर हमला है जो राष्ट्र निर्माण की नींव है। आवश्यक है कि:

 भर्ती प्रक्रिया की स्वतंत्र जाँच न्यायिक निगरानी में हो।

फर्जी नियुक्तियों को निरस्त कर योग्य अभ्यर्थियों को मौका मिले।

भविष्य में नियुक्तियों के लिए टेक्नोलॉजी-आधारित पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई जाए।

घोटाले से जुड़े सभी अधिकारियों और नेताओं को कठोर दंड मिले, चाहे वे कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों।

बंगाल के इस शिक्षक भर्ती घोटाले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जब सत्ता और लालच शिक्षा से टकराते हैं, तो सबसे बड़ा नुकसान समाज के सबसे कमजोर तबके के छात्र, शिक्षार्थी और बेरोज़गार युवाओं को होता है। अगर इस घोटाले से व्यवस्था सबक नहीं लेती, तो वह दिन दूर नहीं जब शिक्षकों की कुर्सियों पर बैठे लोग ज्ञान नहीं, केवल लेन-देन का प्रतीक बन जाएँगे। यह केवल बंगाल की बात नहीं, पूरे देश की चेतावनी है।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I