भारत में मादक द्रव्य निषेध एवं तस्करी रोकथाम: वैश्विक बेस्ट प्रैक्टिसेज एवं भारतीय दृष्टिकोण
विश्व मादक द्रव्य निषेध दिवस 2025 की थीम 'Break the Cycle. #StopOrganisedCrime' मादक द्रव्यों की तस्करी और संगठित अपराध के बीच के संबंध को तोड़ने पर केंद्रित है। भारत में नशीली दवाओं का दुरुपयोग और तस्करी एक गंभीर चुनौती है, जिसके समाधान हेतु NDPS अधिनियम, NMBA अभियान, और पुनर्वास योजनाएं चलाई जा रही हैं। वैश्विक स्तर पर पुर्तगाल, स्वीडन और नीदरलैंड्स जैसे देशों ने स्वास्थ्य-केंद्रित और समुदाय-आधारित उपायों से उल्लेखनीय सफलता पाई है। भारत को भी जागरूकता, उपचार की सुविधा, सामाजिक कलंक हटाने, कानून प्रवर्तन के आधुनिकीकरण और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्राथमिकता देकर एक समग्र रणनीति अपनानी चाहिए, जिससे नशीली दवाओं की मांग व तस्करी दोनों पर प्रभावी नियंत्रण संभव हो सके।

हर वर्ष 26 जून को अंतरराष्ट्रीय मादक द्रव्य निषेध एवं तस्करी रोकथाम दिवस (World Drug Day) मनाया जाता है। यह दिन संयुक्त राष्ट्र की उस वैश्विक प्रतिबद्धता की स्मृति दिलाता है जिसमें समाज को नशा-मुक्त बनाने, मादक पदार्थों की अवैध तस्करी पर नियंत्रण और सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रित दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता रेखांकित की जाती है। वर्ष 2025 का विषय 'Break the Cycle. #StopOrganisedCrime' इस कड़ी में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मादक द्रव्यों की तस्करी और संगठित अपराध के बीच के गहरे संबंधों को तोड़ने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
भारतीय परिप्रेक्ष्य: एक विकराल चुनौती
भारत में मादक द्रव्यों का दुरुपयोग और उनकी अवैध तस्करी एक गंभीर सामाजिक, आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चुनौती बन चुकी है। देश की भौगोलिक स्थिति 'स्वर्ण त्रिकोण' (दक्षिण पूर्व एशिया) और 'स्वर्ण अर्धचंद्र' (अफगानिस्तान, पाकिस्तान और ईरान) के मध्य स्थित होना, भारत को मादक द्रव्यों की तस्करी का एक संवेदनशील मार्ग बना देता है।
भारत सरकार ने इस चुनौती का सामना करने के लिए NDPS (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances) अधिनियम, 1985, PITNDPS (Prevention of Illicit Traffic in Narcotic Drugs and Psychotropic Substances) अधिनियम, तथा नशा मुक्त भारत अभियान (NMBA) और राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPDDR) जैसी पहलें चलाई हैं। ये कार्यक्रम नशे की मांग में कमी लाने, उपचार एवं पुनर्वास की सुविधा प्रदान करने, तथा जन-जागरूकता को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
हालांकि इन प्रयासों के बावजूद मादक द्रव्यों की समस्या का प्रसार थमता नहीं दिख रहा है। खासकर युवा वर्ग, शिक्षण संस्थानों, ग्रामीण इलाकों और सीमावर्ती राज्यों में नशे की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है। एक बड़ी बाधा यह भी है कि नशे की लत को अब भी सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है, जिससे पीड़ित व्यक्ति सहायता लेने से कतराता है।
वैश्विक अनुभव और सफल मॉडल
पुर्तगाल मॉडल:
पुर्तगाल ने वर्ष 2001 में मादक द्रव्यों के व्यक्तिगत उपयोग को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और स्वास्थ्य आधारित दृष्टिकोण को अपनाया। अपराधियों की बजाय, पीड़ितों के रूप में देखे गए नशा-आदी लोगों को काउंसलिंग, पुनर्वास और सामाजिक पुनःस्थापन प्रदान किया गया। परिणामस्वरूप, वहाँ मादक द्रव्यों से संबंधित मृत्यु दर और अपराध दर में अभूतपूर्व गिरावट दर्ज की गई।
स्वीडन मॉडल:
स्वीडन ने ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को सामुदायिक भागीदारी, सशक्त परिवारिक हस्तक्षेप, स्कूल-आधारित जागरूकता और कठोर कानून प्रवर्तन से जोड़ा। इसके चलते देश में नशे की प्रवृत्ति बहुत कम रही है।
नीदरलैंड्स:
यहाँ सरकार ने 'हार्ड ड्रग्स' और 'सॉफ्ट ड्रग्स' के बीच कानूनी अंतर करते हुए नियंत्रित बिक्री की नीति अपनाई, साथ ही जागरूकता और उपचार सुविधाओं को सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा का अभिन्न अंग बनाया।
इन तीन देशों के अनुभव यह दिखाते हैं कि स्वास्थ्य, पुनर्वास और शिक्षा पर आधारित दृष्टिकोण, महज़ दंडात्मक कानूनों की तुलना में अधिक प्रभावी होते हैं।
भारत द्वारा करणीय कदम: एक समग्र रणनीति
भारत को नशा मुक्ति एवं मादक द्रव्य तस्करी रोकथाम में अधिक समन्वित, मानवीय और बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय प्रभावी सिद्ध हो सकते हैं:
सामुदायिक जागरूकता एवं शिक्षा
स्कूलों, कॉलेजों, कार्यस्थलों और ग्राम पंचायतों के स्तर पर नियमित रूप से जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। समाज को यह समझाने की आवश्यकता है कि नशे की लत केवल व्यक्ति की नहीं, पूरे परिवार और समाज की समस्या है।
उपचार और पुनर्वास सुविधाओं की सुलभता
देशभर में गुणवत्तापूर्ण, किफायती और सुलभ पुनर्वास केंद्रों की स्थापना ज़रूरी है। सार्वजनिक अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में नशा उपचार सुविधाएं अनिवार्य की जानी चाहिए। हेल्पलाइन, मोबाइल क्लीनिक और डिजिटल प्लेटफॉर्म भी मददगार हो सकते हैं।
कानून प्रवर्तन और तकनीकी उन्नयन
सीमा सुरक्षा बल (BSF), नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB), पुलिस और कस्टम विभागों को ड्रोन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन व डेटा विश्लेषण जैसे आधुनिक उपकरणों से लैस किया जाना चाहिए। अंतर-एजेंसी समन्वय को भी बढ़ावा देना होगा।
सामाजिक कलंक को दूर करना
मादक द्रव्यों की लत को अपराध नहीं, बल्कि स्वास्थ्य समस्या के रूप में देखने की मानसिकता को बढ़ावा देना होगा। मीडिया, धर्मगुरु, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षा प्रणाली इस कलंक को मिटाने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग और संवाद
भारत को SAARC, ASEAN, UNODC (United Nations Office on Drugs and Crime) जैसे मंचों पर संगठित तस्करी के खिलाफ रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करना होगा। सूचनाओं का आदान-प्रदान, संयुक्त अभियानों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से वैश्विक सहयोग को सशक्त बनाया जा सकता है।
विश्व मादक द्रव्य निषेध दिवस केवल एक प्रतीकात्मक दिन नहीं, बल्कि नशा-मुक्त, संगठित अपराध-मुक्त और स्वस्थ समाज की दिशा में ठोस कार्यवाही की पुकार है। भारत जैसे विशाल, युवा जनसंख्या वाले देश के लिए यह समस्या केवल कानून व्यवस्था की नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, स्वास्थ्य और मानव गरिमा की भी है।
हमें वैश्विक बेस्ट प्रैक्टिसेज से सीख लेकर एक स्वदेशी, जन-सहभागिता आधारित, स्वास्थ्य-केंद्रित और वैज्ञानिक रणनीति अपनानी होगी। तभी हम 'Break the Cycle' के इस वर्ष के संदेश को सच्चे अर्थों में साकार कर सकेंगे।
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