उत्तर प्रदेश सूचना आयोग जाँच के घेरे में | आरटीआई आवेदक ने धमकी, कदाचार और कानूनी उल्लंघन का आरोप लगाया
कोलकाता स्थित एक आरटीआई अपीलकर्ता ने उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राकेश कुमार और प्रशासनिक अधिकारी मुमताज अहमद पर कदाचार, मुठभेड़ की धमकी को दबाने और आरटीआई अधिनियम के उल्लंघन का आरोप लगाया है। राष्ट्रपति सचिवालय और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के समक्ष प्रति-अपील दायर कर जाँच और कार्रवाई की माँग की गई है।
राष्ट्रपति सचिवालय में दायर शिकायत पर आयोग की अपूर्ण व विवादित आख्या; अपीलार्थी ने उच्च स्तरीय जाँच, अनुशासनिक कार्रवाई और सुरक्षा की माँग की।
लखनऊ/नई दिल्ली, 13 नवंबर 2025। उत्तर प्रदेश सूचना आयोग के कार्यप्रणाली पर एक गंभीर विवाद सामने आया है, जब कोलकाता निवासी सुशील कुमार पाण्डेय (अपील संख्या – एस-10/ए/0243/2025, एस-10/ए/0240/2025, एस-10/ए/0230/2025, एस-10/ए/0239/2025) ने राष्ट्रपति सचिवालय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT), यूपी शासन और मुख्य सूचना आयुक्त को एक विस्तृत प्रति-आख्या (Counter Appeal) भेजकर सूचना आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी और सूचना आयुक्त के विरुद्ध कठोर आरोप लगाए।
अपीलार्थी की शिकायत PRSEC/E/2025/0058409 और IGRS संख्या 60000250253495 के संदर्भ में भेजी गई यूपी सूचना आयोग के प्रशासनिक अधिकारी मुमताज़ अहमद की आख्या को “तथ्यहीन, विधि–विरुद्ध, भ्रामक और संविधान के विपरीत” बताया गया है।
शिकायत के मुख्य आरोप
अपीलार्थी ने अपनी अपील में निम्न अत्यंत गंभीर आरोप लगाए:
RTI अधिनियम की धारा 20 की अवमानना
राज्य सूचना आयुक्त राकेश कुमार ने जनसूचना अधिकारी को जारी ‘कारण बताओ नोटिस’ के बावजूद उसके द्वारा कोई जवाब न देने पर भी कोई दंड नहीं लगाया। यह RTI अधिनियम की दंडात्मक शक्तियों का स्पष्ट उल्लंघन बताया गया है।
‘एनकाउंटर’ की धमकी की शिकायत पर उपेक्षा व मज़ाक
अपीलार्थी ने आरोप लगाया कि जनसूचना अधिकारी द्वारा दी गई हत्या/एनकाउंटर करने की धमकी की शिकायत को सूचना आयुक्त ने हँसी में उड़ाया। यह आचरण अपीलार्थी के मुताबिक “मानवाधिकार उल्लंघन और पीड़ित का उत्पीड़न” है।
पुलिस प्रतिनिधि को गलत, अवैध प्रशिक्षण देने का आरोप
ऑनलाइन सुनवाई में उ.प्र. सूचना आयुक्त राकेश कुमार ने कथित तौर पर उपनिरीक्षक योगेन्द्र सिंह से कहा: “उत्तर केवल एक पंक्ति में दें और नियम 4(2)(ग) के तहत मना कर दें।” इसे RTI को कमजोर करने और सूचना रोकने की institutionalized practice करार दिया गया है।
राज्य नियमावली को केंद्रीय RTI अधिनियम से ऊपर मानना
अपीलार्थी का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारी मुमताज़ अहमद ने अपनी आख्या में एक राज्य शासनादेश (17.02.2020) को RTI अधिनियम-2005 के ऊपर रख दिया, जो संविधान के अनुच्छेद 13(2) के खिलाफ है और कानूनन शून्य है।
धमकी की शिकायत और दुराचार को आख्या में छुपाना
श्री पाण्डेय के अनुसार, आख्या ने
• धमकी,
• दुरुपयोग,
• अवमानना,
• और सुनवाई के दौरान की गई अनुचित टिप्पणियों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ किया है। इसे “पक्षपाती, अपूर्ण और मानसिक उत्पीड़न का विस्तार” बताया गया है।
अपीलार्थी की माँगें
अपील में पाँच प्रमुख माँगें की गई हैं:
1. मुमताज़ अहमद की आख्या को तत्काल अपास्त (Reject) किया जाए।
2. राज्य सूचना आयुक्त राकेश कुमार के विरुद्ध विभागीय जाँच प्रारंभ की जाए।
3. अपीलार्थी को दी गई एनकाउंटर धमकी की स्वतंत्र जाँच कर सुरक्षा प्रदान की जाए।
4. उत्तर प्रदेश की RTI नियमावलियों की वैधानिक समीक्षा की जाए।
5. शासनादेश 17.02.2020 को RTI अधिनियम के ऊपर मानने हेतु दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए।
मामला क्यों महत्वपूर्ण है?
यह मामला दो स्तरों पर अत्यंत संवेदनशील हो गया है-
सूचना आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्न
यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो यह राज्य सूचना आयोग की कार्यशैली, नैतिक मानदंडों और अर्द्ध-न्यायिक आचरण पर गंभीर सवाल उठाता है।
RTI व्यवस्था की विश्वसनीयता पर संकट
RTI लोकतंत्र की पारदर्शिता का प्रमुख माध्यम है। सूचना आयुक्त द्वारा-
• अवैध प्रशिक्षण,
• धमकी को नज़रअंदाज़ करना,
• जनसूचना अधिकारियों को गलत निर्देश देना, जैसे आरोप पूरी RTI प्रणाली के लिए खतरा माने जा सकते हैं।
सरकारी प्रतिक्रिया?
इस खबर के लिखे जाने तक राष्ट्रपति सचिवालय, DoPT या यूपी शासन किसी की ओर से सार्वजनिक बयान जारी नहीं किया गया है। हालांकि, शिकायत उच्चतम प्राधिकरणों को भेजी जा चुकी है और मामला गंभीर संवैधानिक जाँच का आधार बन सकता है।
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