इंस्पेक्टर समेत 5 पर FIR: एंटी करप्शन ने साजिश पकड़ी

लखनऊ में बंथरा थाना पुलिस द्वारा झूठा केस गढ़ने, साक्ष्य नष्ट करने और निर्दोषों को फंसाने की साज़िश का एंटी करप्शन इकाई ने खुलासा किया। PGI थाने में इंस्पेक्टर प्रहलाद सिंह समेत पाँच पुलिस अधिकारियों पर IPC 193, 201, 120-B, 211, 166, 167 के तहत FIR दर्ज।

Dec 12, 2025 - 20:31
Dec 12, 2025 - 21:14
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इंस्पेक्टर समेत 5 पर FIR: एंटी करप्शन ने साजिश पकड़ी
इंस्पेक्टर समेत 5 पर FIR

पुलिसिया फर्जीवाड़े का वास्तविक चेहरा

उत्तर प्रदेश में पुलिस सुधारों और जवाबदेही की चर्चाओं के बीच लखनऊ से सामने आया यह मामला राज्य की कानून-व्यवस्था और पुलिस विवेचना प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। एक ऐसा केस जिसमें: अपराध हुआ ही नहीं, साक्ष्य पुलिस ने खुद गढ़े, फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए, असली साक्ष्यों को जानबूझकर नष्ट किया गया, और निर्दोष लोगों को जेल भेज दिया गया। इस पूरे षड्यंत्र का भंडाफोड़ तब हुआ जब एंटी करप्शन संगठन, लखनऊ मंडल को शासन द्वारा जाँच सौंपा गया। जाँच अधिकारी निरीक्षक नुरुल हुदा खान की तहरीर ने वह सच सामने ला दिया जिसे दबाने की कोशिश की गई थी।

FIR का आधार: शासन आदेश से शुरू हुई जाँच

FIR में दर्ज ‘नकल तहरीर’ के अनुसार: गृह विभाग (गोपन अनुभाग-3) का शासन पत्र संख्या 1596/2022-सी-एक्स-3, दिनांक 18.10.2022, और भ्रष्टाचार निवारण संगठन, लखनऊ का पत्र क्रमांक 9914/लखनऊ (1643)/06/2021 (68) आरसी, के अनुपालन में निरीक्षक नुरुल हुदा खान को मुअस 517/2020 (थाना बंथरा) की जाँच और बंथरा पुलिस की भूमिका की समीक्षा का दायित्व सौंपा गया।

जाँच में सामने आया हृदय-विदारक सच: पुलिस ने साक्ष्य गढ़े

निरीक्षक की विस्तृत रिपोर्ट में निम्न तथ्य उजागर हुए:

पुलिस अधिकारियों ने पदाधिकार का दुरुपयोग किया: जाँच में यह प्रमाणित हुआ कि पुलिस ने जानबूझकर अधिकारों का गलत इस्तेमाल किया।

झूठा साक्ष्य गढ़ा गया: एक काल्पनिक कहानी तैयार की गई, जिसे FIR में ‘अपराध’ करार दिया गया। प्रमाणित/ग्राह्य साक्ष्य उपलब्ध ही नहीं था।

असली साक्ष्यों का विलोप: विशाल आयरन स्टोर, बंथरा से जुड़े साक्ष्य गायब कर दिए गए। यह IPC की धारा 201 का स्पष्ट उल्लंघन है।

अदालत में झूठी विवेचना रिपोर्ट दाखिल की गई: जाँच अधिकारी ने पाया कि: "मा. सक्षम न्यायालय में बिना किसी प्रमाणित / ग्राह्य साक्ष्य के आरोप पत्र दाखिल किया गया।" यह न्यायिक प्रक्रिया के साथ धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है।

यह एक संगठित आपराधिक साज़िश थी: घटना को किसी एक अधिकारी की गलती नहीं माना गया। बल्कि, पूरी टीम ने 120B (आपराधिक साजिश) के तहत एक संगठित अपराध को अंजाम दिया।

FIR में लगी 6 गंभीर धाराएँ, पुलिस पर पुलिस की कार्रवाई

 FIR No: 0621/2025

 थाना: PGI, लखनऊ दक्षिणी

 समय: 03.12.2025 – 22:01 बजे

FIR में निम्न IPC धाराएँ लगाई गईं:

 193 – झूठा साक्ष्य

 201 – साक्ष्य का विलोप

 120B - आपराधिक साज़िश

 211 – झूठा आरोप लगाना

 166 – विधि के निर्देशों की अवहेलना

 167 – गलत दस्तावेज तैयार करना

इन धाराओं का संयोजन बताता है कि यह सामान्य विभागीय कदाचार का मामला नहीं, बल्कि क्रिमिनल मिसकंडक्ट है।

इन पाँच पुलिस अधिकारियों पर दर्ज हुई FIR

 1. निरीक्षक प्रहलाद सिंह

 तत्कालीन नियुक्ति: थाना बंथरा

 वर्तमान: बहराईच

 PNO: 052350098

 2. उप निरीक्षक संतोष कुमार

 तत्कालान: बंथरा

 वर्तमान: बहराईच

 PNO: 155062755

 3. उप निरीक्षक राजेश कुमार

 तत्कालीन: बंथरा

 वर्तमान: बहराईच

 PNO: 930630285

 4. एसएसआई दिनेश कुमार सिंह

 तत्कालीन: बंथरा

 वर्तमान: बहराईच

 PNO: 902490044

 5. उप निरीक्षक आलोक कुमार श्रीवास्तव

 तत्कालीन: थाना कृष्णानगर

 वर्तमान: रिज़र्व पुलिस लाइन, लखनऊ

 PNO: 132160160

एंटी करप्शन जाँच के बाद इन सभी की भूमिका संदिग्ध और प्रमाणित रूप से दोषपूर्ण पाई गई।

जाँच अधिकारी की अंतिम सिफारिश, FIR दर्ज करने का आदेश

निरीक्षक नुरुल हुदा खान ने अपनी लिखित तहरीर में सिफारिश की:उपर्युक्त सभी अधिकारियों के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 193, 201, 120-बी, 211, 166, 167 में अभियोग पंजीकृत करने का कष्ट करें।” इसके बाद PGI थाने में FIR पंजीकृत कर ली गई।

कानूनी और प्रशासनिक प्रभाव

गिरफ्तारी की संभावनाएँ बढ़ीं:  धारा 193 + 201 + 120-B के संयोजन से संगीन अपराध सिद्ध होते हैं।

निलंबन और विभागीय कार्रवाई लगभग तय: गृह विभाग और DGP मुख्यालय इसे ‘गंभीर पुलिस दुराचार’ की श्रेणी में मानते हैं।

अदालत में इन अधिकारियों की भूमिका कठघरे में होगी: झूठे चार्जशीट को अदालत में गलत साबित करना स्वतः एक बड़ा आपराधिक अपराध है।

पीड़ितों के वकील अब क्षतिपूर्ति और मुआवजे की माँग कर सकते हैं:  धारा 211 के तहत झूठे आरोप लगाने के पीड़ितों को मुआवज़े का अधिकार है।

समाज और न्याय व्यवस्था पर असर

यह मामला दो चीजें साफ करता है:

1. पुलिस की विवेचना प्रणाली में गंभीर खामियाँ हैं, जहाँ जाँच अधिकारी खुद अपराधी बन बैठते हैं, वहाँ न्याय असंभव हो जाता है।

 2. एंटी करप्शन द्वारा FIR दर्ज होना एक ऐतिहासिक कदम है, यह दिखाता है कि प्रशासन अब फर्जी FIR और पुलिसिया झूठ को बर्दाश्त नहीं करेगा।

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