एक राष्ट्र, एक शिक्षा नियामक: उच्च शिक्षा में ऐतिहासिक सुधार

विकसित भारत शिक्षा अधिक्षण विधेयक के माध्यम से मोदी सरकार ने यूजीसी-एआईसीटीई युग का अंत कर उच्च शिक्षा में पारदर्शी, आधुनिक और एकीकृत नियामक व्यवस्था की नींव रखी है, जो भारत को ज्ञान-महाशक्ति बनाएगी।

Dec 15, 2025 - 06:36
Dec 15, 2025 - 06:38
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एक राष्ट्र, एक शिक्षा नियामक: उच्च शिक्षा में ऐतिहासिक सुधार
उच्च शिक्षा में ऐतिहासिक सुधार

भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था लंबे समय से एक संरचनात्मक संकट से गुजरती रही है। प्रतिभाशाली युवा, विशाल जनसंख्या और ऐतिहासिक बौद्धिक परंपरा होने के बावजूद, हमारी विश्वविद्यालय प्रणाली वैश्विक रैंकिंग, शोध गुणवत्ता और नवाचार के क्षेत्र में अपेक्षित ऊँचाइयों को नहीं छू पाई। इसका एक प्रमुख कारण रहा खंडित और अतिनियामक व्यवस्था, जहाँ एक ही संस्थान को अलग-अलग पाठ्यक्रमों के लिए यूजीसी, एआईसीटीई और एनसीटीई जैसे अनेक निकायों के चक्कर काटने पड़ते थे। विकसित भारत शिक्षा अधिक्षण विधेयक इसी अव्यवस्था पर निर्णायक प्रहार है।

 बहु-नियामक व्यवस्था से एकल दृष्टि तक

अब तक उच्च शिक्षा में नियमों की बहुलता ने नवाचार को नियंत्रित करने का काम किया। अनुमोदन में देरी, अस्पष्ट दिशानिर्देश, और जवाबदेही की कमी ने संस्थानों को अकादमिक प्रयोगों से दूर रखा। कई बार शिक्षा की गुणवत्ता से अधिक महत्व औपचारिक अनुपालन (compliance) को दिया गया। एकल नियामक की स्थापना इस सोच को बदलती है। यह संदेश स्पष्ट है-सरकार नियंत्रण नहीं, मार्गदर्शन चाहती है; काग़ज़ी अनुशासन नहीं, वास्तविक गुणवत्ता।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का संस्थागत रूप

यह विधेयक केवल प्रशासनिक सुधार नहीं है, बल्कि NEP 2020 का संस्थागत विस्तार है। बहु-विषयक शिक्षा, क्रेडिट ट्रांसफर, कौशल-आधारित पाठ्यक्रम और वैश्विक मानकों की बात तब तक अधूरी थी, जब तक नियामक ढाँचा उसी पुराने ढर्रे पर चलता रहता। नया आयोग तीन स्तंभों पर आधारित है-

1. विनियमन (Regulation) - न्यूनतम लेकिन प्रभावी

2. प्रत्यायन (Accreditation) - पारदर्शी, डेटा-आधारित और निष्पक्ष

3. व्यावसायिक मानक (Standards) - शिक्षक शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और अकादमिक गुणवत्ता में समानता। यह त्रिस्तरीय ढाँचा गुणवत्ता बनाम स्वायत्तता के पुराने द्वंद्व को समाप्त करता है।

छात्र-केंद्रित सुधार: डिग्री नहीं, क्षमता निर्माण

इस विधेयक का सबसे बड़ा लाभार्थी छात्र है। अब तक छात्र प्रशासनिक नियमों का कैदी था, विषय बदलना कठिन, बहु-विषयक संयोजन लगभग असंभव और संस्थानों के बीच स्थानांतरण जटिल। एकल नियामक व्यवस्था से: पाठ्यक्रम अधिक लचीले होंगे, इंजीनियरिंग + मानविकी जैसे संयोजन सहज होंगे, ग्रामीण और शहरी संस्थानों के बीच गुणवत्ता-अंतर कम होगा, छात्रों को डिग्री से अधिक दक्षता मिलेगी। यह सुधार भारत के युवाओं को केवल नौकरी-खोजी नहीं, बल्कि ज्ञान-निर्माता और नवोन्मेषक बनाएगा।

भ्रष्टाचार और विलंब पर प्रहार

शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार अकसर नीतिगत अस्पष्टता और बहु-स्वीकृति प्रक्रियाओं से जन्म लेता है। एकल खिड़की प्रणाली से: अनुमोदन में समय की बचत होगी, मानवीय विवेकाधिकार (discretion) सीमित होगा, डिजिटल और डेटा-आधारित मूल्यांकन बढ़ेगा, यह ‘ईज ऑफ डूइंग एजुकेशन’ की दिशा में एक बड़ा कदम है।

 संतुलन और परिपक्वता का उदाहरण

यह विधेयक इस मायने में भी उल्लेखनीय है कि सरकार ने मेडिकल और विधि शिक्षा को फिलहाल इसके दायरे से बाहर रखा है। यह दर्शाता है कि सुधार जल्दबाज़ी में नहीं, बल्कि क्षेत्रीय आवश्यकताओं को समझते हुए किए जा रहे हैं। इसी तरह फंडिंग को अभी मंत्रालयों के अधीन रखना और भविष्य में आयोग को सौंपने की संभावना, नीति-निर्माण में परिपक्वता का परिचायक है।

विपक्ष बनाम विजन

जहाँ एक ओर विपक्ष यथास्थिति बनाए रखने की राजनीति करता रहा, वहीं मोदी सरकार ने शिक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में भी साहसिक निर्णय लेने से पीछे नहीं हटी। GER में वृद्धि, नए विश्वविद्यालय, शोध अनुदान में बढ़ोतरी और वैश्विक साझेदारियाँ, ये सभी बताते हैं कि यह सुधार केवल भाषणों तक सीमित नहीं है।

ज्ञान से राष्ट्र-निर्माण

विकसित भारत शिक्षा अधिक्षण विधेयक यह स्पष्ट करता है कि सरकार शिक्षा को तात्कालिक राजनीतिक लाभ का विषय नहीं, बल्कि पीढ़ियों का भविष्य मानती है। यह विधेयक भारत को: ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था, वैश्विक शिक्षा केंद्र, नवाचार और शोध का अग्रणी देश बनाने की आधारशिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश स्पष्ट है, शिक्षा सुधार का अर्थ नियंत्रण नहीं, विश्वास है; और विश्वास से ही विकसित भारत का निर्माण होगा।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I