अमरोहा में पुलिसिया अपहरण और उगाही का सनसनीखेज आरोप: दरोगा व अन्य पर FIR दर्ज

अमरोहा के गजरौला में पुलिस पर फर्जी बलात्कार केस की धमकी देकर अपहरण और 1.25 लाख रुपये की उगाही का आरोप। FIR दर्ज, निष्पक्ष जाँच की माँग।

Dec 15, 2025 - 12:40
Dec 15, 2025 - 12:53
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अमरोहा में पुलिसिया अपहरण और उगाही का सनसनीखेज आरोप: दरोगा व अन्य पर FIR दर्ज
दरोगा व अन्य पर FIR दर्ज

अमरोहा में ‘कानून के नाम पर अपहरण’ का आरोप: फर्जी बलात्कार केस की धमकी देकर पुलिस पर 1.25 लाख की उगाही का गंभीर मामला दर्ज

अमरोहा (उत्तर प्रदेश): उत्तर प्रदेश के अमरोहा जनपद से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने पुलिस तंत्र की विश्वसनीयता पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। गजरौला थाना क्षेत्र में दर्ज एफआईआर संख्या 0640/2025 में एक नागरिक ने सीधे तौर पर पुलिस अधिकारियों पर अपहरण, जबरन वसूली, जान से मारने की धमकी और फर्जी मुकदमे में फँसाने की साजिश का आरोप लगाया है। मामले में भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 308(5), 308(7) एवं 127(2) के अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज की गई है, जो इस घटना की गंभीरता को स्वयं रेखांकित करती है।

क्या है पूरा मामला?

एफआईआर के अनुसार, पीड़ित नईम अहमद (निवासी-ग्राम सलेमपुर सालर उर्फ हाजीपुर, थाना एचौड़ा कम्बोह, जनपद सम्भल) को 11 दिसंबर 2025 को एक अज्ञात व्यक्ति ने फोन कर निर्माणाधीन पुलिस लाइन के सामने प्लॉट दिखाने के बहाने बुलाया। पीड़ित का कहना है कि उन्होंने फोन करने वाले पर विश्वास किया और दोपहर लगभग 1:30 बजे अपने परिचित अहसान अहमद के साथ बताए गए स्थान पर पहुंचे।

यहीं से कथित रूप से एक पूर्व नियोजित साजिश का आरंभ हुआ।

जबरन कार में डालकर अपहरण का आरोप

पीड़ित के अनुसार, मौके पर एक उपनिरीक्षक नितिन कुमार, एक वर्दीधारी कांस्टेबल, एक सादे कपड़ों में कांस्टेबल, और एक अज्ञात महिला मौजूद थी।

आरोप है कि इन सभी ने मिलकर पीड़ित को जबरन एक कार (संख्या UP-21 B 2645) में बैठा लिया। कार में बैठते ही उसे बताया गया कि एक अनुसूचित जाति की महिला आप पर बलात्कार का आरोप लगा रही है।” पीड़ित ने स्वयं को निर्दोष बताते हुए आरोपों से इनकार किया। इसके बाद कथित रूप से एक महिला को बुलाया गया, जिसे वही पीड़िता बताया गया। जब पीड़ित ने महिला से पहचान स्पष्ट करने के लिए नकाब हटाने को कहा, तो वह महिला बिना पहचान उजागर किए वहाँ से चली गई।

एनकाउंटर की धमकी और मानसिक यातना

एफआईआर में आरोप है कि इसके बाद पुलिसकर्मी पीड़ित को गजरौला क्षेत्र के ही एक कमरे में ले गए, जहाँ उसे फर्जी मुकदमे में फँसाने, एनकाउंटर कर देने, और जीवन समाप्त कर देने की धमकियाँ दी गईं। पीड़ित का कहना है कि उसे मजबूर किया गया कि वह अपने परिवार वालों को फोन कर वही बोले जो पुलिसकर्मी कहें।

5 लाख की माँग, 1.25 लाख में ‘सौदा’

पीड़ित के अनुसार, पुलिसकर्मियों ने पहले उसके पिता से 5 लाख रुपये मंगाने को कहा। जान के खतरे को देखते हुए उसने अपने पिता से फोन पर वही बात दोहराई।

जब पिता ने इतनी बड़ी रकम देने में असमर्थता जताई, तो कथित रूप से रकम घटाकर 1 लाख 25 हजार रुपये कर दी गई। एफआईआर में उल्लेख है कि पिता ने 25,000 रुपये घर से, और 1 लाख रुपये जोया निवासी डॉक्टर नाजिम से उधार लेकर, अहसान अहमद और अनवर के साथ गजरौला पहुंचकर पुलिसकर्मियों को सौंपे।

आरोप है कि रकम लेने के बाद पुलिस ने चेतावनी दी, अगर कहीं शिकायत की या गाँव में चर्चा की, तो तुम्हारे खिलाफ मुकदमा कायम करा देंगे।”

जबरन हस्ताक्षर और रिहाई

पीड़ित का आरोप है कि उसे एक कागज पर बिना पढ़ने दिए जबरन हस्ताक्षर कराए गए और शाम लगभग 7:30 बजे छोड़ दिया गया। उसे यह भी नहीं बताया गया कि उस कागज पर क्या लिखा है।

ट्रू-कॉलर, टोल प्लाज़ा और डिजिटल साक्ष्य

एफआईआर में कई अहम तकनीकी साक्ष्यों का उल्लेख किया गया है, जैसे फोन कॉल पर ट्रू-कॉलर में ‘कांस्टेबल लक्ष्मण’ नाम दिखना, कार का टोल टैक्स अतरासी से गुजरना, जहाँ सीसीटीवी रिकॉर्डिंग उपलब्ध होने की बात कही गई है।

ये तथ्य मामले को केवल आरोप तक सीमित नहीं रखते, बल्कि जाँच योग्य डिजिटल साक्ष्य भी प्रस्तुत करते हैं।

कानून बनाम कानून के रक्षक: इस प्रकरण ने एक बार फिर उस संवेदनशील प्रश्न को जन्म दिया है-

यदि आरोप पुलिस पर हों, तो निष्पक्ष जाँच कौन करेगा?

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि इस मामले में स्वतंत्र एजेंसी या वरिष्ठ स्तर की निगरानी में जाँच नहीं हुई, तो पीड़ित को न्याय मिलना कठिन हो सकता है।

कानूनी और सामाजिक प्रभाव

यह मामला निम्न गंभीर मुद्दों को उजागर करता है:

  • फर्जी मुकदमों का भय
  • एससी/एसटी कानूनों के नाम पर कथित दुरुपयोग का आरोप
  • पुलिस हिरासत से बाहर भी कथित ‘कस्टोडियल कंट्रोल’
  • आम नागरिक की सुरक्षा और भरोसे का संकट

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