आगरा पुलिस: FIR के आदेश के बाद भी 6 माह तक कार्रवाई शून्य

आगरा पुलिस आयुक्त के स्पष्ट आदेश के बावजूद संज्ञेय अपराध की FIR दर्ज नहीं। 6 माह, 9 रिमाइंडर, फिर भी जाँच रिपोर्ट नहीं।

Dec 15, 2025 - 17:58
Dec 15, 2025 - 18:35
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आगरा पुलिस: FIR के आदेश के बाद भी 6 माह तक कार्रवाई शून्य
आगरा पुलिस आयुक्त के आदेशों की अवहेलना

संज्ञेय अपराध की FIR के स्पष्ट आदेश के बावजूद 6 माह तक कार्रवाई शून्य, 9 रिमाइंडर भी बेअसर

आगरा | विशेष खोजी रिपोर्ट: उत्तर प्रदेश के आगरा पुलिस कमिश्नरेट से सामने आया यह मामला केवल एक नागरिक की शिकायत नहीं, बल्कि पुलिस तंत्र की जवाबदेही, संवैधानिक दायित्व और कानून के शासन (Rule of Law) पर गंभीर सवाल खड़े करता है। यहाँ पुलिस आयुक्त द्वारा जारी लिखित आदेश को न केवल नज़रअंदाज़ किया गया, बल्कि छह माह तक उसे लागू ही नहीं किया गया।

मामले की पृष्ठभूमि

रामनगर, नई आबादी शाहगंज, आगरा निवासी श्री ललित सिंह ने संज्ञेय अपराध घटित होने के ठोस तथ्यों व साक्ष्यों के साथ पुलिस आयुक्त, कमिश्नरेट आगरा को प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया था। शिकायत का मुख्य उद्देश्य था संज्ञेय अपराध की FIR दर्ज कराना, जबकि संबंधित जाँच अधिकारी द्वारा पुष्टि होने के बावजूद FIR दर्ज नहीं की गई थी। इस शिकायत को गंभीर मानते हुए पुलिस आयुक्त, आगरा ने दिनांक 11 अप्रैल 2025 को पत्रांक आर/सीपी-150/2025 (प्रा पत्र-21) के माध्यम से अपर पुलिस आयुक्त को स्पष्ट निर्देश जारी किए।

पुलिस आयुक्त का स्पष्ट आदेश

आदेश में कहा गया कि प्रार्थना पत्र एवं ACP लोहामंडी की जाँच आख्या का गहन परीक्षण किया जाए, यदि मामला सिविल प्रकृति का हो तो आवेदक को न्यायालय जाने हेतु अवगत कराया जाए, और यदि मामला अपराधिक (संज्ञेय) पाया जाए तो नियमानुसार FIR दर्ज की जाए, साथ ही की गई कृत कार्यवाही से आवेदक को अवगत कराया जाए। यह आदेश न तो मौखिक था, न अस्पष्ट, बल्कि लिखित, दिनांकित और कार्यालयीय पत्र के रूप में जारी हुआ।

6 माह की प्रशासनिक चुप्पी

दस्तावेज़ों के अनुसार, आदेश जारी होने के छह माह बाद तक न कोई प्रगति आख्या, न जाँच रिपोर्ट, न FIR, न ही किसी प्रकार की सूचना आवेदक को प्रदान की गई। यह स्थिति तब है जब मामला संज्ञेय अपराध से जुड़ा हुआ है, जहाँ कानूनन FIR दर्ज करना पुलिस का दायित्व है, विवेकाधीन विकल्प नहीं।

9 रिमाइंडर, फिर भी कार्रवाई नहीं

ललित सिंह द्वारा पुलिस आयुक्त कार्यालय को ईमेल, व्यक्तिगत मुलाकात, लिखित रिमाइंडर के माध्यम से बार-बार अवगत कराया गया।

दिनांकवार रिमाइंडर: 17-05-2025, 20-05-2025, 14-06-2025, 20-06-2025, 03-07-2025, 13-07-2025, 22-07-2025, 18-08-2025 (आठवाँ रिमाइंडर), 04-11-2025 (नवम रिमाइंडर) इसके बावजूद अपर पुलिस आयुक्त कार्यालय की ओर से कोई उत्तर या कार्रवाई सामने नहीं आई।

कानून क्या कहता है?

कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट (ललिता कुमारी बनाम राज्य, 2013) के फैसले में स्पष्ट है कि संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर FIR दर्ज करना अनिवार्य है। पुलिस सिटीजन चार्टर के तहत FIR दर्ज करना नागरिक का अधिकार है। यह अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 से जुड़ा है। ऐसे में FIR न लिखना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाता है।

आदेशों की अवहेलना: अनुशासनहीनता या संरक्षण?

प्रश्न यह उठता है कि क्या अपर पुलिस आयुक्त कार्यालय पुलिस आयुक्त के आदेशों को गंभीरता से नहीं ले रहा? या फिर जानबूझकर जाँच को लंबित रखकर किसी को संरक्षण दिया जा रहा है? क्या यह प्रशासनिक निष्क्रियता है या संगठित लापरवाही? आवेदक का आरोप है कि यह पूरा प्रकरण ‘अपराधियों को बचाने के लिए की गई जानबूझकर देरी’ को दर्शाता है।

उच्च स्तर तक शिकायत

मामले की प्रतिलिपि भेजी जा चुकी है-

 मुख्यमंत्री कार्यालय, लखनऊ

 मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश

 डीजीपी कार्यालय, लखनऊ

 राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली

जिससे यह मामला अब केवल स्थानीय नहीं, बल्कि राज्य स्तरीय जवाबदेही का विषय बन गया है।

बड़ा सवाल

जब पुलिस आयुक्त के आदेश भी ज़मीनी स्तर पर लागू न हों, तो आम नागरिक न्याय के लिए कहाँ जाए?

यह मामला आगरा पुलिस की कार्यप्रणाली ही नहीं, बल्कि पूरे पुलिस प्रशासन की जवाबदेही प्रणाली पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

 

 

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