लखनऊ के वकील परमानंद गुप्ता को 29 फर्जी मुकदमों में आजीवन कारावास, ₹5.10 लाख जुर्माना

लखनऊ की विशेष एससी/एसटी अदालत ने अधिवक्ता परमानंद गुप्ता को अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ 29 फर्जी मुकदमे दर्ज कराने के मामले में दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। अदालत ने पाया कि गुप्ता ने दलित महिला पूजा रावत की पहचान का दुरुपयोग करते हुए यह मुकदमे संपत्ति विवाद में व्यक्तिगत बदले की भावना से दर्ज कराए थे। पीड़िता के बयानों, मेडिकल जांच और मोबाइल लोकेशन डेटा के आधार पर अदालत ने यह साबित किया कि मुकदमे झूठे थे। अदालत ने परमानंद गुप्ता पर ₹5.10 लाख का जुर्माना भी लगाया तथा उनके बार काउंसिल से वकील का अभ्यास बंद करने की सिफारिश की। अदालत ने पीड़िता पूजा रावत को बरी कर दी है लेकिन चेतावनी दी कि एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग किया गया तो सख्त कार्रवाई होगी। यह फैसला न्यायपालिका में कानून के दुरुपयोग पर कड़ी कार्रवाई का उदाहरण है और समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।

Aug 23, 2025 - 09:40
Aug 23, 2025 - 09:43
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लखनऊ के वकील परमानंद गुप्ता को 29 फर्जी मुकदमों में आजीवन कारावास, ₹5.10 लाख जुर्माना
लखनऊ के वकील परमानंद गुप्ता को झूठे SC/ST एवं बलात्कार मामलों में जेल

लखनऊ की विशेष एससी/एसटी अदालत ने 19 अगस्त 2025 को अधिवक्ता परमानंद गुप्ता को झूठे मुकदमे दर्ज कराने के मामले में दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। अदालत ने उनके खिलाफ केस दर्ज कराने की साजिश और कानून का दुरुपयोग करने को गंभीर अपराध माना और साथ ही ₹5.10 लाख का जुर्माना भी लगाया है।

झूठे मुकदमों का नेटवर्क और आरोप

परमानंद गुप्ता ने दलित महिला पूजा रावत की पहचान का दुरुपयोग करते हुए कुल 29 झूठे मुकदमे दर्ज कराए थे। इनमें से 18 मुकदमे उन्होंने सीधे अपने नाम से और 11 मुकदमे पूजा रावत की ओर से दर्ज कराए थे। इन मामलों में ज्यादातर आरोप लोगों को फंसाने के लिए झूठे रेप और एससी/एसटी एक्ट के तहत गंभीर धाराएँ  थीं। विशेष लोक अभियोजक अरविंद मिश्रा ने बताया कि ये मुकदमे संपत्ति विवाद से जुड़े थे, जिनका मकसद प्रतिद्वंद्वियों को दबाना था।

मुकदमे में सामने आए तथ्य

  • पूजा रावत, जो परमानंद की पत्नी के ब्यूटी पार्लर में काम करती थी, को मजबूर करके उसके पहचान दस्तावेजों का इस्तेमाल झूठे केस दर्ज कराने में किया गया।
  • जाँच में पाया गया कि पूजा ने अदालत में दिए गए अपने अधिकांश बयानों को दबाव और भेदभाव के तहत दिया था।
  • मेडिकल जाँच और फोन रिकॉर्ड ने कहा कि कथित घटना स्थल पर पीड़िता मौजूद नहीं थी।
  • संपत्ति विवाद का मामला भी आरोपित था, जहां परमानंद की पत्नी संगीता गुप्ता का नाम था।
  • अदालत ने पूजा रावत को बरी करते हुए भविष्य में SC/ST एक्ट के दुरुपयोग परकड़ी चेतावनी दी।

अदालत का कड़ा रुख

विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने कहा, "वकील परमानंद गुप्ता जैसे लोग कानून का दुरुपयोग कर न्यायपालिका की विश्वसनीयता को खोखला कर रहे हैं। ऐसे अपराधियों को कड़ी सजा देना जरूरी है ताकि न्यायपालिका में जनता का विश्वास बना रहे।"

अदालत ने जिला मजिस्ट्रेट को आदेश दिया है कि पूजा को दी गई किसी भी राहत की राशि की वसूली की जाए एवं झूठे मुकदमों में मुआवजा रोकने का भी निर्देश दिया। साथ ही पुलिस को ऐसे मामलों की जाँच में सख्ती बरतने और नए एफआईआर में पहले की शिकायतों को ध्यान में रखने को कहा गया है ताकि सिस्टम में सीरियल फाइलरों की प्रवृति को रोका जा सके।

न्यायपालिका की जीत

यह फैसला न केवल एक वकील के द्वारा कानून का दुरुपयोग करने पर कड़ी कार्रवाई है, बल्कि अनुसूचित जाति व कमजोर वर्ग की महिलाओं के अधिकारों और न्याय की रक्षा के लिए भी एक महत्वपूर्ण विजय मानी जाएगी। इस मामले ने यह दिखाया कि झूठे मुकदमे दर्ज कराने वालों के खिलाफ कानून सख्त कर जनता के विश्वास को बनाए रखा जा सकता है।

परमानंद गुप्ता फिलहाल जेल में हैं और उनकी इस सजा से न्यायपालिका ने स्पष्ट संदेश दिया है कि कानून का दुरुपयोग करने वाले किसी भी रूप में बख्शे नहीं जाएँगे।

यह मामला भारतीय न्याय प्रणाली में कानून के स्वच्छ आचरण और समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक मिसाल बन गया है। न्यायपालिका ने इस केस में बड़ी संवेदनशीलता दिखाते हुए तथ्यों के आधार पर दोषियों को दंडित किया है ताकि भविष्य में इस तरह के कानून के दुरुपयोग को रोका जा सके।

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