उमा से टुनटुन तक: सुर से सिनेमा और हँसी तक का असाधारण सफ़र
उमा देवी, जिन्होंने अपनी पहचान पहले एक पार्श्वगायिका के रूप में बनाई और बाद में 'टुनटुन' बनकर हिंदी सिनेमा की पहली महिला हास्य कलाकार कहलाईं, उनका जीवन एक भावनात्मक, प्रेरणादायक और बहुआयामी कहानी है।

उमा देवी, जिन्होंने अपनी पहचान पहले एक पार्श्वगायिका के रूप में बनाई और बाद में 'टुनटुन' बनकर हिंदी सिनेमा की पहली महिला हास्य कलाकार कहलाईं, उनका जीवन एक भावनात्मक, प्रेरणादायक और बहुआयामी कहानी है। ‘अफसाना लिख रही हूँ दिल-ए-बेकरार का’ जैसे अमर गीत से लेकर दिलीप कुमार की फिल्मों में हास्य का पर्याय बन जाने तक, टुनटुन ने सिनेमा को केवल हँसी ही नहीं दी, बल्कि संघर्ष, प्रेम, मातृत्व और कला का असाधारण स्वरूप भी दिखाया।
पूरा नाम: उमा देवी खत्री
प्रसिद्ध नाम: टुनटुन
जन्म: 11 जुलाई 1923, अयोध्या (फैज़ाबाद), उत्तर प्रदेश
निधन: 24 नवंबर 2003, मुंबई
पहचान: गायिका, हास्य अभिनेत्री, हिंदी सिनेमा की पहली महिला कॉमेडियन
गायिका के रूप में शुरुआत:
- 1947 में नौशाद की फिल्म ‘दर्द’ में गाया – “अफसाना लिख रही हूँ दिल-ए-बेकरार का”
- 45 से अधिक गाने गाए — मुख्यतः 1940-50 के दशक में
- संगीतकार नौशाद, अल्ला रक्खा, राजेश्वर राव जैसे दिग्गजों के साथ काम किया
- ‘चंद्रकला’, ‘दिल्लगी’, ‘बाबुल’ जैसी फिल्मों में गायक के रूप में पहचान
टुनटुन का हास्य अभिनेत्री के रूप में अवतार:
- दिलीप कुमार ने उन्हें पहला कॉमिक रोल दिया और नाम दिया - टुनटुन
- ‘बाबुल’ (1950) से हास्य अभिनय की शुरुआत
- टुनटुन की पहचान बनी उनकी मासूमियत, देहभाषा और चुटीली संवाद अदायगी
- 200+ फिल्मों में कॉमिक रोल किए, 1950 से लेकर 1980 तक लगातार सक्रिय
- उनके सहयोगी कलाकारों में रहे: महमूद, भगवान दादा, मुकरी, जॉनी वॉकर, राजेंद्रनाथ आदि
- विशेष उल्लेखनीय फिल्में:
- आरपार
- मिस्टर एंड मिसेज़ 55
- प्यासा
- नमक हलाल
- कुली
- बीवी ओ बीवी
- क़ुरबानी
- सत्यम शिवम सुंदरम
- उपकार, शराफत, पहचान
व्यक्तिगत जीवन और संघर्ष:
- बचपन में माता-पिता की हत्या, भाई भी लापता
- रिश्तेदारों के घर नौकरानी जैसी स्थिति में जीवन
- दिल्ली में अकेलेपन के दौर में अख़्तर अब्बास काज़ी से सहारा मिला, बाद में दोनों ने विवाह किया
- Partition के समय अकेली पड़ गईं, फिर बंबई आकर गायकी और अभिनय में करियर बनाया
- 1992 में पति की मृत्यु के बाद एकांतवास
- 24 नवंबर 2003 को 80 वर्ष की उम्र में निधन - सिनेमा की सबसे हँसती आवाज़ खामोश हो गई
विरासत:
टुनटुन सिर्फ मोटी महिला का किरदार नहीं थीं, वो एक संघर्षशील कलाकार, प्रेम की प्रतीक, और हिंदी सिनेमा की पहली हास्य नायिका थीं। उनकी कहानी गायन से हास्य अभिनय तक, संघर्ष से आत्मनिर्भरता तक, हर भारतीय स्त्री के हौसले की कहानी है।
"हँसी का भी वजन होता है – और टुनटुन उसे बड़े गरिमामय अंदाज़ में उठाती थीं।"
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