संवेदनाओं की ज़मीन पर खिले सितारे: आमिर खान की दिल छू लेने वाली वापसी
‘सितारे ज़मीन पर’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक अनुभव है जो दर्शक को भीतर तक झकझोर देता है। यह फिल्म न्यूरोडायवर्जेंट (Neurodivergent) युवाओं की दुनिया को सामने लाती है, उनकी सीमाओं से अधिक उनकी क्षमताओं को, और समाज के पूर्वाग्रहों से अधिक मानवता की संभावनाओं को।

न्यूरोडायवर्जेंट युवाओं की दुनिया को छूने वाली एक भावनात्मक प्रस्तुति
‘सितारे ज़मीन पर’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक अनुभव है जो दर्शक को भीतर तक झकझोर देता है। यह फिल्म न्यूरोडायवर्जेंट (Neurodivergent) युवाओं की दुनिया को सामने लाती है, उनकी सीमाओं से अधिक उनकी क्षमताओं को, और समाज के पूर्वाग्रहों से अधिक मानवता की संभावनाओं को।
गुलशन अरोड़ा का किरदार, एक अहंकारी और स्वार्थी कोच, जो धीरे-धीरे अपने खिलाड़ियों के जरिए एक संवेदनशील इंसान में बदल जाता है, फिल्म की आत्मा बनकर उभरता है।
कहानी और निर्देशन:
निर्देशक आर.एस. प्रसन्ना ने एक कठिन विषय को सरलता और मानवीय गहराई के साथ प्रस्तुत किया है। यह एक शोधपूर्ण रूपांतरण है जो न सिर्फ प्रेरणा देता है, बल्कि आत्मनिरीक्षण की ओर भी ले जाता है।
मुख्य पात्र:
गुलशन अरोड़ा (कोच): एक ठंडे और अहंकारी इंसान से एक कोमल और सहानुभूति रखने वाले मार्गदर्शक की अद्भुत यात्रा।
आमिर खान और जेनेलिया देशमुख का अभिनय स्वाभाविक और मार्मिक है।
बच्चों और सह-कलाकारों की प्रस्तुति प्राकृतिक और गहराई लिए हुए है।
भावनात्मक दृश्य:
जब कोच खिलाड़ियों की कमजोरियों को समझते हुए उन्हें अपनाता है
जब टीम जीतने के बजाय स्वीकार किए जाने की लड़ाई जीतती है
हर दृश्य दर्शक के दिल को छूता है और आँखों को नम करता है
संगीत:
फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी इसका संगीत है। यह कहानी के भावों का साथ नहीं दे पाता और भावनात्मक तीव्रता को गहराने की बजाय फीका छोड़ जाता है।
फिल्म का संदेश:
‘सितारे ज़मीन पर’ हमें यह सिखाती है कि असल कोचिंग जीतने की नहीं, समझने की कला है। यह फिल्म उन बच्चों और युवाओं को आवाज़ देती है जिन्हें समाज अक्सर अलग मानकर दरकिनार कर देता है।
रेटिंग: (4/5)
(+ अभिनय, कहानी, भावनात्मक प्रभाव | – संगीत का औसत स्तर)
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