हर किसी का अपना नार्मल होता है: 'सितारे ज़मीन पर' एक संवेदनशील दृष्टिकोण
'सितारे ज़मीन पर' केवल एक फिल्म नहीं, एक संदेश है - न्यूरोडायवर्जेंट युवाओं के जीवन को, उनकी चुनौतियों और क्षमताओं को समाज के सामने लाने का ईमानदार प्रयास।

न्यूरोडायवर्जेंट युवाओं की दुनिया को समझने का एक मानवीय प्रयास
'सितारे ज़मीन पर' केवल एक फिल्म नहीं, एक संदेश है - न्यूरोडायवर्जेंट युवाओं के जीवन को, उनकी चुनौतियों और क्षमताओं को समाज के सामने लाने का ईमानदार प्रयास।
यह फिल्म 2018 में आई स्पैनिश फिल्म Champions (Campeones) का भारतीय रूपांतरण है।
फिल्म यह स्पष्ट करती है कि "हर व्यक्ति का अपना नार्मल होता है", और किसी को उसकी सोच, चाल-ढाल या व्यवहार से ‘असामान्य’ या ‘पागल’ कह देना न केवल अमानवीय है, बल्कि अन्यायपूर्ण भी।
कहानी की झलक:
गुलशन अरोड़ा (आमिर खान) एक स्वार्थी और अहँकारी बास्केटबॉल कोच हैं, जिन्हें एक कोर्ट सज़ा के तहत विशेष बच्चों को तीन महीने प्रशिक्षण देने की ज़िम्मेदारी मिलती है।
शुरुआत में वे इसे ‘सजा’ मानते हैं, लेकिन धीरे-धीरे वे समझने लगते हैं कि असल में उन्हें खुद को प्रशिक्षित करना है - धैर्य, संवेदना और स्वीकार्यता के लिए।
यहीं से फिल्म गहराई और आत्मिक परिवर्तन की ओर बढ़ती है।
अभिनय और किरदार:
आमिर खान ने गुलशन अरोड़ा के किरदार में अपने अभिनय की परिपक्वता दिखाई है - वे सख्त कोच से आत्ममंथन करते इंसान में रूपांतरित होते हैं।
जेनेलिया डिसूजा एक स्थिर और भावपूर्ण पत्नी की भूमिका में सशक्त सहायक बनती हैं।
बच्चों का अभिनय फिल्म की आत्मा है - सहज, सच्चा और प्रेरणादायक।
संदेश और भावनाएँ:
फिल्म हमें सिखाती है कि ‘मत भुलो कि सबका विकास रेखीय नहीं होता’।
हर बच्चा, हर युवा अपने ढंग से सीखता है, समझने की कोशिश करना ही असली मानवता है।
गुलशन का बदलाव फिल्म का सबसे सुंदर पहलू है, जब वह खुद को इन बच्चों की नज़रों से देखना शुरू करता है।
संगीत और तकनीकी पक्ष:
फिल्म का संगीत थोड़ा औसत है और कुछ दृश्यों में भावनाओं को पूरी तरह पकड़ नहीं पाता।
परंतु छायांकन और लोकेशन से एक प्रामाणिकता झलकती है।
रेटिंग: (4/5)
(– संगीत थोड़ा कमजोर | + अभिनय, संदेश और मानवीय गहराई)
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