कोलकाता में नागार्जुन जयंती पर ‘साहित्य संवाद’: कविता बनी प्रतिरोध की आवाज
भारतीय भाषा परिषद और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार, 28 जून 2025 को कोलकाता स्थित भारतीय भाषा परिषद भवन में 'साहित्य संवाद' का आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम प्रसिद्ध जनकवि बाबा नागार्जुन की जयंती को समर्पित था।

कोलकाता, 28 जून 2025: भारतीय भाषा परिषद एवं सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन के संयुक्त तत्वावधान में जनकवि बाबा नागार्जुन की जयंती के अवसर पर आयोजित ‘साहित्य संवाद’ कार्यक्रम ने कोलकाता को काव्य-प्रतिरोध और साहित्यिक संवेदनशीलता के मंच में बदल दिया। यह आयोजन भारतीय भाषा परिषद में 28 जून की दोपहर 2:00 बजे शुरू हुआ, जिसमें हिंदी कविता के सशक्त हस्ताक्षरों और युवा रचनाकारों ने हिस्सा लिया।
मुख्य आकर्षण: आमंत्रित कवियों का काव्यपाठ
कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण रहे नील कमल, मनीषा गुप्ता, और सूर्य देव रॉय, जिन्होंने समकालीन समाज, स्त्री विमर्श, प्रेम और प्रतिरोध जैसे विषयों पर केंद्रित कविताएँ पढ़ीं।
सूर्य देव रॉय ने पढ़ी अपनी प्रतिनिधि कविताएँ: छली हुई स्त्री, इश्क तुमसे, शायद प्रेम करने लगा हूँ, भूख बुचिया की, इन दिनों, पत्र, सवाल जैसी कविताओं में प्रेम के विखंडन, स्त्री की अस्मिता और सामाजिक द्वंद्व का प्रभावशाली चित्रण था।
मनीषा गुप्ता की कविताएँ रहीं केंद्र में: स्त्री नदी है, देवीपुर की औरतें, सौहार्द, जब तुम लौटोगे, केंचुल, अपराध, सफेद कबूतर में महिलाओं के दैनिक संघर्ष, सामाजिक संरचना और मानसिक द्वंद्वों को बेहद संवेदनशीलता से उकेरा गया।
नील कमल ने प्रस्तुत कीं ये सशक्त कविताएँ: ढीठ हैं लाशें, विनेश फोगाट और साक्षी मलिक के लिए, फाल्गुन के रंग से लिखी कविता, रेल पटरी से उतर जाएगी, यहाँ क्यों तैरती हैं सपनों की लाशें, कविताओं में सत्ता और व्यवस्था के प्रति गहन प्रतिरोध की भावना दिखाई दी।
कवि परिचय सत्र: युवा स्वर
कंचन भगत, अनुपमा वर्मा, और फरहान अज़ीज़ ने ‘कवि परिचय’ खंड में अपनी प्रभावशाली रचनाएँ प्रस्तुत कीं, जो नई पीढ़ी की आवाज और सोच को उजागर करती हैं। उनकी कविताओं में भाषा, स्वर और साहस का संपूर्ण समागम देखने को मिला।
कवियों से संवाद: साहित्य का जीवंत विमर्श
कार्यक्रम में उपस्थित युवाओं एवं साहित्यप्रेमियों इबरार ख़ान, रूपेश कुमार यादव, संजना जायसवाल, लिली साह, अपराजिता वाल्मीकि, आशुतोष राउत, फरहान अज़ीज़ आदि ने कवियों से रचना प्रक्रिया, समाज में कविता की भूमिका और चुनौतियों पर संवाद किया। यह सत्र बेहद जीवंत और प्रेरणादायक रहा।
समीक्षा: कविता से समाज की पड़ताल
प्रियंकर पालीवाल ने कहा: “कविताएँ हमें समाज के प्रति संवेदनशील बनाती हैं। नील कमल की कविताएं हमारे भीतर तक प्रवेश कर जाती हैं। सूर्य देव रॉय की कविताएं प्रतिरोध का नया मुहावरा रचती हैं।”
गीता दूबे ने कहा: “आज के युवाओं में चुप्पी, संघर्ष और उम्मीद के बीच कविता एक औज़ार है। उन्हें भाषा और विषय के चयन में बेबाकी रखनी चाहिए।”
संयोजन और अध्यक्षीय वक्तव्य
कार्यक्रम का संयोजन और संचालन डॉ. संजय जायसवाल ने किया। उन्होंने कहा: “जब सत्ता के दरवाज़े बंद हों, तब कविता सवाल बनकर सामने आती है। यह संवाद कविता के ज़रिए समाज में प्रतिरोध और परिवर्तन की आवाज़ है।”
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. शंभुनाथ (निदेशक, भारतीय भाषा परिषद) ने कहा: “कविता में जितनी ज्यादा हिस्सेदारी होगी, वह उतनी ही अधिक जीवंत होगी। लोकतंत्र भी तभी जीवित रहता है जब उसमें सबकी हिस्सेदारी हो।”
मृत्युंजय श्रीवास्तव (उपाध्यक्ष, सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन) ने इसे 'मिशन का एक महत्वाकांक्षी साहित्यिक प्रयास' बताया और कहा कि पश्चिम बंगाल से हिंदी कविता की एक नई पीढ़ी तैयार हो रही है। कार्यक्रम का समापन मंजु श्रीवास्तव के औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।
उपस्थित प्रमुख साहित्यप्रेमी
दिनेश साव, डॉ. राजेश मिश्रा, डॉ. सुनील शर्मा, अनिता राय, सुरेश शा, डॉ. इतु सिंह, प्रदीप धानुक, नमिता जैन, संजय दास, मुकेश पंडित, विकास जायसवाल, जितेंद्र जितांशु, मधु साव, चंदन भगत, प्रभाकर साव, विनोद यादव, पद्माकर व्यास, प्रगति दूबे, अनुराधा भगत, हिमाद्री मिश्रा, सेराज़ खान बातिश, अनिल शाह आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
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