विद्यार्थी मंच की नई पहल: कलम के सिपाही प्रेमचंद पर परिचर्चा

प्रेमचंद की 145वीं जयंती पर ‘विद्यार्थी मंच’ द्वारा आयोजित परिचर्चा ‘कलम के सिपाही’ में विभिन्न कॉलेजों और विद्यालयों के छात्र-छात्राओं ने प्रेमचंद के साहित्य पर विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में विद्वानों और रचनाकारों ने प्रेमचंद के यथार्थवाद, स्त्री-संवेदना और सामाजिक दृष्टि पर चर्चा की। चित्रकला व कविता के माध्यम से भी उन्हें रचनात्मक श्रद्धांजलि दी गई। वक्ताओं ने प्रेमचंद की पुस्तकों को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लिया, जिससे यह आयोजन साहित्यिक चेतना का एक प्रेरक प्रयास सिद्ध हुआ।

Jul 29, 2025 - 16:00
Jul 29, 2025 - 19:53
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विद्यार्थी मंच की नई पहल: कलम के सिपाही प्रेमचंद पर परिचर्चा
परिचर्चा में उपस्थित छात्र-छात्राएँ व अन्य

प्रेमचंद के 145वीं जन्म मास पर 27 जुलाई 2025 को विद्यार्थियों के नए कदम ने एक परिचर्चा का आयोजन किया, इस आयोजन में शहर के प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय, कल्याणी विश्वविद्यालय, सेंट पॉल कॉलेज, बंगवासी कॉलेज, खुदीराम बोस कॉलेज, अग्रसेन कॉलेज, लालबाबा कॉलेज, सावित्री गर्ल्स कॉलेज, राजा राममोहन राय कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन, जनता आदर्श विद्यालय, खामरपाड़ा जागृति हिंदी विद्या मंदिर, विजडम इंस्टिट्यूट के छात्र-छात्राओं ने प्रेमचंद साहित्य के विविध पक्षों पर अपने तैयार पर्चे पढ़े। इस आयोजन की संयोजक प्रेसिडेंसी  विश्वविद्यालय की छात्राएँ अक्षिता शशि साव और प्रतीक्षा मुखर्जी थीं। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन एवं प्रेमचंद की तस्वीर पर माल्यार्पण के साथ हुई। इस अवसर पर खड़गपुर कॉलेज के प्राक्तन प्राध्यापक डॉ. पंकज साहा, विद्यासागर विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. संजय जायसवाल, मिदनापुर कॉलेज के प्राध्यापक डॉ. रणजीत सिन्हा, बंगोवासी कॉलेज के प्राध्यापक डॉ. विनय मिश्रा, सेंट पॉल कॉलेज के परमजीत पंडित, समीक्षक व विचारक मृत्युंजय श्रीवास्तव एवं कथाकार व गज़लकार सेराज खान बातिश उपस्थित थे। सभी वरिष्ठ एवं सुधी विद्वानों ने अपना सारगर्भित एवं संक्षिप्त वक्तव्य रखा।   

उद्घाटन वक्तव्य में ‘विद्यार्थी मंच’ की अध्यक्ष और 'मुक्तांचल' पत्रिका की संपादक डॉ. मीरा सिन्हा ने ने कहा कि प्रेमचंद का लेखन देश और काल की सीमाओं को तोड़ता हुआ युगांतकारी प्रभाव की ताकत रखता है, उसके पाठ को पढ़ना अत्यंत आवश्यक है। हम उनकी किताबों को पढ़ें वगैर उनके अमूल्य धरोहर तक नहीं पहुँच सकते जो उनकी भाषा और अभिव्यक्ति शैली में शामिल है। प्रेमचंद के किताबों को पढ़ना सभी विद्यार्थियों के लिए जरूरी है तभी हम परिचर्चा एवं संवाद को सफल बना पाएँगे।

छात्र सत्र: जब नई पीढ़ी ने प्रेमचंद को जिया

कार्यक्रम की सबसे बड़ी विशेषता थी विद्यार्थियों की भागीदारी। अनेक छात्र-छात्राओं ने प्रेमचंद के साहित्यिक पहलुओं पर अपने विचार प्रस्तुत किए:

वान्या लाल ने 'बेटियों की संवेदना' पर प्रेमचंद की दृष्टि को रेखांकित किया।

फरहान परवीन ने प्रेमचंद की धर्म विषयक संवेदनाओं की मानवीय व्याख्या की।

पूनम कुमारी ने ग्रामीण भारत के चित्रण में प्रेमचंद के योगदान को सराहा।

युवराज राय ने सेवा सदन की स्त्रियाँ समाज के बनाए हुए चरित्र की परिभाषा को नहीं स्वीकारतीं।

प्रिंस मिश्रा ने प्रेमचंद के हर पात्र एक सामाजिक प्रतिरोध का वाहक बन जाते हैं।

संजू शर्मा ने प्रेमचंद की स्त्रियाँ चुप हैं, परंतु उनका मौन समाज की सबसे तीव्र आलोचना है।

स्वराज पांडेय ने भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि ज्ञापित करते हुए कहा कि प्रेमचंद के स्वप्न में समाज की बेचैनी, औरत की चुप्पी और किसान की भूख थी।

रोशनी, तनीषा शर्मा, सृष्टि रजक, राब्या श्रीवास्तव आदि ने सेवासदन, निर्मला, ईदगाह, कर्बला, बूढी काकी जैसी रचनाओं पर सशक्त प्रस्तुति दी।

चित्रकला और कविता से प्रेमचंद को नया आयाम

छात्र सुमित शाह, सुष्मिता मंडल, नयना पाठक द्वारा बनाई गई चित्रकृति और अंशु झा की कविता ‘कलम के सिपाही’ ने प्रेमचंद को रंगों और रचनात्मकता के माध्यम से स्मरण किया।

समापन संदेश: प्रेमचंद को पुस्तकों से घर तक लाना होगा

कार्यक्रम के अंत में वक्ताओं ने आग्रह किया कि प्रेमचंद को पुस्तकालयों से निकालकर घर-घर और मन-मन तक पहुँचाना होगा। उनके विचारों को सोशल मीडिया और डिजिटल माध्यम से भी जन-जन तक ले जाने का संकल्प लिया गया। यह आयोजन प्रेमचंद को एक लेखक से अधिक एक विचारधारा, एक आंदोलन, और एक नैतिक दृष्टिकोण के रूप में देखने का प्रयास था। प्रेमचंद जयंती  के अंतर्गत आयोजित यह परिचर्चा न केवल एक लेखक को स्मरण करने का उपक्रम था, बल्कि एक पीढ़ी को विचार, संवेदना और सामाजिक उत्तरदायित्व की ओर पुनः उन्मुख करने का प्रयास था। यह आयोजन प्रेमचंद के विचारों को जीवन, साहित्य और समाज में जीवंत बनाए रखने की दिशा में विद्यार्थियों द्वारा किया गया एक प्रेरक कदम सिद्ध हुआ। इसमें बच्चों से लेकर वरिष्ठ विद्वानों तक ने यह प्रमाणित किया कि प्रेमचंद की विचारधारा, भाषा, संवेदना, और यथार्थवाद को आत्मसात करने की प्रक्रिया आज भी हमारे समय के लिए सबसे ज़रूरी है।

कार्यक्रम में मंजु श्रीवास्तव, विवेक लाल, सुशील कुमार पाण्डेय, विनीता सिंह लाल, प्रकाश कुमार त्रिपाठी, अनूप यादव, बलराम साव, उपदेश दरजी, त्रिनेत्रकांत त्रिपाठी, आकांक्षा दुबे, रोज़ी खातून, फरहत परवीन, रोशनी खातून, रुपाली सिंह, शिक्षा दुबे, प्रिया श्रीवास्तव, रानी शर्मा, जाह्नवी कुमारी, बिनोद रजक, बिन्नी मिश्रा, कालू तमांग, विशाल रावत एवं अन्य लोगों की सक्रिय भूमिका रही। आयोजन के अंत में विनोद यादव द्वारा प्रस्तुत आत्मीय धन्यवाद ज्ञापन में साहित्यिक आत्म-संवाद की प्रतिध्वनि स्पष्ट सुनाई दी।

अध्यन, अध्यापन से जुड़े लोगों को प्रेमचंद के किताबों को पढ़ना जरूरी।” यही रहा पूरे समारोह का केंद्रीय स्वर।

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