इतिहास के लिए समर्पण: कृष्णकाली मंडल स्मृति व्याख्यान में पुरातत्व और समन्वय की गूँज
दक्षिण 24 परगना के क्षेत्रीय इतिहास और पुरातत्व को समर्पित विद्वान कृष्णकाली मंडल की स्मृति में बंगाल पुरातत्व अनुसंधान केंद्र द्वारा दूसरा वार्षिक स्मृति व्याख्यान आयोजित किया गया। व्याख्यान का विषय था ‘बंगाल के इस्लामी स्थापत्य में समन्वयवादी धारा: सुल्तानी से औपनिवेशिक काल तक’। इस अवसर पर दो महत्वपूर्ण प्रकाशनों का विमोचन भी हुआ। कार्यक्रम में इतिहास और पुरातत्व के कई प्रमुख शोधकर्ता व अध्येता उपस्थित रहे।

कोलकाता, 28 जुलाई। इतिहास और पुरातत्व के क्षेत्र में कार्यरत प्रतिष्ठित संस्था बंगाल पुरातत्व अनुसंधान केंद्र ने अपने दूसरे वार्षिक 'कृष्णकाली मंडल स्मृति व्याख्यान' का आयोजन सफलता पूर्वक संपन्न किया। यह आयोजन इतिहास के संरक्षण और क्षेत्रीय अध्ययन को बढ़ावा देने की दिशा में एक प्रेरणादायक पहल रहा।
कार्यक्रम का मुख्य व्याख्यान प्रख्यात इतिहासकार इंद्रजीत चौधरी ने दिया, जिसका विषय था: ‘बंगाल के इस्लामी स्थापत्य में समन्वयवादी धारा: सुल्तानी से औपनिवेशिक काल’।
इस व्याख्यान में बंगाल की स्थापत्य परंपरा में विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों और धार्मिक सह-अस्तित्व के प्रमाणों की चर्चा की गई। वक्ता ने स्थानीय स्थापत्य में छिपे संवाद और सहिष्णुता के ऐतिहासिक स्वरूप को उकेरा।
प्रकाशन विमोचन:
रंगनकांति जाना द्वारा लिखित ‘पुराकीर्ति के आलोक में दक्षिण 24 परगना के मानव संस्कृति की धारा’ नामक शोधपरक स्मारक पुस्तक का विमोचन किया गया, जो क्षेत्रीय इतिहास के अध्ययन में मील का पत्थर मानी जा रही है।
साथ ही, ‘रक्तमृतिका’ नामक वार्षिक पत्रिका के तीसरे वर्ष के पहले अंक का विमोचन हुआ, जिसे तथागत सेन और राजीव बनर्जी ने संपादित किया है।
कार्यक्रम के अन्य पहलू:
अध्यक्षता की प्रोफेसर रूपेंद्र कुमार चटर्जी ने, जिन्होंने स्मृति-व्याख्यान की प्रासंगिकता पर विस्तार से विचार रखे।
एक विचारोत्तेजक प्रश्नोत्तर सत्र आयोजित हुआ जिसमें प्रतिभागियों ने पुरातत्व, संस्कृति और संरक्षण पर विचार साझा किए।
उपस्थित गणमान्य व्यक्ति:
कार्यक्रम में अनूप मोतीलाल, गौतम बसुमल्ली, अमिताभ कारकुन, सुतनु घोष जैसे पुरातत्व एवं इतिहास प्रेमियों की गरिमामयी उपस्थिति रही।
संयोजन और भविष्य की योजना:
आयोजन के संयोजक तथागत सेन और संपादक राजीव बनर्जी ने बताया कि अब से राज्य के विभिन्न जिलों के पुरातत्व पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जाएगा, ताकि स्थानीय इतिहास का सटीक दस्तावेजीकरण किया जा सके।
कृष्णकाली मंडल जैसे इतिहास प्रेमी व्यक्तित्वों की स्मृति में ऐसे आयोजन इतिहास को जन-संवाद से जोड़ते हैं और वर्तमान में अतीत की प्रासंगिकता को समझने का अवसर प्रदान करते हैं। बंगाल पुरातत्व अनुसंधान केंद्र का यह प्रयास क्षेत्रीय ज्ञान परंपराओं के पुनराविष्कार की दिशा में एक सशक्त पहल है।
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