रहमान: स्क्रीन का शालीन सितारा जिसे समय ने कम याद किया, पर दिलों ने कभी नहीं भूला
रहमान, हिंदी सिनेमा के उन दुर्लभ अभिनेताओं में से एक थे, जिनकी शालीनता, गंभीरता और कलात्मक संवेदना ने उन्हें भीड़ से अलग खड़ा किया। 'प्यासा', 'चौदहवीं का चाँद', 'साहिब बीवी और गुलाम' जैसी क्लासिक फिल्मों में उनका अभिनय एक गूंज की तरह है, जो आज भी सिनेप्रेमियों के दिल में टिमटिमाता है।

रहमान, हिंदी सिनेमा के उन दुर्लभ अभिनेताओं में से एक थे, जिनकी शालीनता, गंभीरता और कलात्मक संवेदना ने उन्हें भीड़ से अलग खड़ा किया। 'प्यासा', 'चौदहवीं का चाँद', 'साहिब बीवी और गुलाम' जैसी क्लासिक फिल्मों में उनका अभिनय एक गूंज की तरह है, जो आज भी सिनेप्रेमियों के दिल में टिमटिमाता है। वह कभी चिल्लाए नहीं, कभी छाए नहीं, पर हर फ्रेम में चमके ज़रूर। दुर्भाग्यवश, उन्हें वो व्यापक ख्याति नहीं मिली जिसके वे सचमुच अधिकारी थे।
पूरा नाम: सैयद रहमान खान
जन्म: 23 जून 1921, लाहौर (अब पाकिस्तान)
निधन: 5 नवंबर 1984, मुंबई
पहचान: चरित्र अभिनेता, सौम्यता और गरिमापूर्ण संवाद शैली के लिए प्रसिद्ध
मुख्य फिल्में और अभिनय की विशेषताएँ:
क्लासिक किरदार:
- ‘प्यासा’ (1957): गुरु दत्त के साथ समाज और संवेदना के बीच खड़ा एक अहम किरदार
- ‘चौदहवीं का चांद’ (1960): नरम, नफासत से भरा अभिनय
- ‘साहिब बीवी और गुलाम’ (1962): सामाजिक विडंबना और रिश्तों की उलझनों में उलझा एक आत्मसंघर्षशील पात्र
- ‘वक्त’ (1965): बहु-कलाकार फिल्म में गहराई से उभरी उनकी गंभीर मौजूदगी
- ‘ग़ज़ल’, ‘धर्मपुत्र’, ‘दिल दिया दर्द लिया’, ‘इंतकाम’ आदि में उनके संयमित और संतुलित अभिनय की छाप स्पष्ट दिखती है
विशेषता:
- रहमान कभी प्रकाश-प्रिय नहीं थे, परंतु हर दृश्य में उनकी गंभीर गरिमा दर्शकों का ध्यान खींचती थी
- स्वर, गति और मौन के संतुलन में वे अभिनय के 'क्लासिकल स्कूल' के प्रतीक थे
- उन्होंने हिंदी सिनेमा में मुस्लिम नवाबी सभ्यता और तहज़ीब को परदे पर जीवंत किया
सम्मान और उपेक्षा का द्वंद्व:
- रहमान का करियर चार दशकों से अधिक लंबा रहा
- फिर भी उन्हें हिंदी सिनेमा ने कभी व्यापक अवॉर्ड्स या स्टारडम नहीं दिया, जो उनके योगदान के अनुरूप हो
- वे अपने समय के "Understated Genius" माने जाते हैं
विरासत:
रहमान एक ऐसे कलाकार हैं जो कम बोले गए, पर गहराई से महसूस किए गए।
वह हमारी सिने-संस्कृति के एक मूक संगीत की तरह हैं जो हर बार देखने पर नए अर्थ देते हैं।
रहमान को देखना, सिनेमा में तहज़ीब और सादगी को महसूस करना है।
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