भारतीय ज्योतिष शास्त्र: प्राचीन ग्रंथों से आधुनिक जीवन तक की निरंतर प्रासंगिकता

यह लेख भारतीय ज्योतिष शास्त्र के प्रमुख ग्रंथों – सूर्यसिद्धांत, आर्यभटीय, सिद्धांत शिरोमणि और बृहत्संहिता का परिचय देते हुए उसकी वैज्ञानिकता और सांस्कृतिक प्रासंगिकता को उजागर करता है। यह दर्शाता है कि आधुनिक युग में भी पंचांग, विवाह, मुहूर्त, नामकरण और गृह प्रवेश जैसे धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में ज्योतिष की भूमिका अब भी सजीव और प्रभावशाली है।

Jul 25, 2025 - 10:43
Jul 10, 2025 - 14:29
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भारतीय ज्योतिष शास्त्र: प्राचीन ग्रंथों से आधुनिक जीवन तक की निरंतर प्रासंगिकता
भारतीय ज्योतिष शास्त्र: प्राचीन ग्रंथों से आधुनिक जीवन तक

भारत एक ऐसा देश है जहाँ परंपरा और विज्ञान एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक माने जाते हैं। इसका एक श्रेष्ठ उदाहरण है भारतीय ज्योतिष शास्त्र (Indian Astrology)। यह केवल भविष्यवाणी करने की प्रणाली नहीं, बल्कि एक समग्र जीवन-दर्शन है, जिसकी वैज्ञानिक, खगोलीय और सांस्कृतिक जड़ें वैदिक काल तक फैली हुई हैं। सूर्य, चंद्रमा, ग्रह-नक्षत्रों की चाल को समझकर समय, जीवन और घटनाओं की भविष्यवाणी करना इस विद्या की मूल आत्मा है।

वैदिक काल और ज्योतिष का प्रारंभ

भारतीय ज्योतिष की नींव वैदिक साहित्य में रखी गई थी, जहाँ वेदांग ज्योतिष को वेदों के छः अंगों में से एक माना गया। वेदों में समय के विभिन्न मापों नाक्षत्र मास, ऋतु, संवत्सर का उल्लेख मिलता है। वेदांग ज्योतिष का प्रमुख उद्देश्य यज्ञों, पर्वों और ऋतु चक्रों का सही निर्धारण था।

प्रमुख ज्योतिषीय ग्रंथ

भारतीय ज्योतिष को एक संगठित और वैज्ञानिक स्वरूप देने का श्रेय प्राचीन महान गणितज्ञों और खगोलविदों को जाता है। उन्होंने खगोल, गणित और फलित ज्योतिष को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत किया।

1. सूर्यसिद्धांत

 यह ज्योतिष का सबसे प्राचीन और मूल खगोलीय ग्रंथ माना जाता है।

 इसमें ग्रहों की गति, अयनांश, दिन-रात की गणना, ग्रहण आदि की वैज्ञानिक गणनाएँ दी गई हैं।

 यह ग्रंथ सूर्यदेव द्वारा माया नामक ऋषि को दिया गया ज्ञान माना गया है।

2. आर्यभटीय (आर्यभट्ट द्वारा)

 5वीं शताब्दी में लिखित यह ग्रंथ गणित और खगोल का संगम है।

 इसमें π (पाई) का मान, त्रिकोणमिति, ग्रहों की गति, चंद्र-सूर्य ग्रहण की सटीक भविष्यवाणी आदि पर विस्तृत ज्ञान दिया गया है। यह आधुनिक खगोल विज्ञान की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था।

3. सिद्धांत शिरोमणि (भास्कराचार्य द्वारा)

 12वीं शताब्दी की यह रचना चार भागों में विभाजित है लीलावती, बीजगणित, गोलाध्याय और ग्रहगणित। इसमें खगोल, अंकगणित और ज्योतिष के अनेक वैज्ञानिक सूत्र दिए गए हैं।

4. बृहत्संहिता (वराहमिहिर द्वारा)

 यह ग्रंथ संहिता ज्योतिष का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण है।

 इसमें मौसम, वर्षा, भूकंप, पशु-पालन, वास्तु, मुहूर्त, और सामाजिक घटनाओं की भविष्यवाणी के सिद्धांत हैं। वराहमिहिर ने वैज्ञानिक दृष्टि और सांस्कृतिक चेतना को समाहित किया।

ज्योतिष का आधुनिक और सामाजिक उपयोग

आज के युग में विज्ञान और तकनीक के प्रसार के बावजूद भारतीय समाज में ज्योतिष की उपयोगिता बनी हुई है। यह एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में न केवल जीवित है, बल्कि व्यवहारिक जीवन का मार्गदर्शन भी करती है।

पंचांग निर्माण:

भारतीय पंचांग आज भी ग्रह-नक्षत्रों की गणना पर आधारित होता है। इससे त्योहारों, एकादशी, संक्रांति, ग्रहण, तिथि आदि का निर्धारण होता है।

विवाह योग और कुंडली मिलान:

लग्न, राशि, गुण मिलान, मंगली दोष, दशा-गोचर के आधार पर विवाह संबंध तय किए जाते हैं।

मुहूर्त चयन:

शुभ कार्यों जैसे गृह प्रवेश, विवाह, यात्रा, नामकरण, व्यापार आरंभ आदि के लिए विशेष मुहूर्तों की गणना की जाती है।

नामकरण संस्कार:

जन्म के समय चंद्रमा की स्थिति और नक्षत्र के अनुसार बच्चे का अक्षर निर्धारित किया जाता है।

ग्रह दोष और निवारण:

राहु-केतु, शनि, चंद्र दोष आदि के प्रभाव से संबंधित उपाय, व्रत, रत्न धारण, दान आदि की परंपरा आज भी जीवित है।

ज्योतिष की वैज्ञानिक और सांस्कृतिक प्रासंगिकता

1. खगोल आधारित गणना:

   ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति, गोचर, और दशा ये सब खगोलीय गणनाओं पर आधारित हैं।

2. समय निर्धारण की शुद्धता:

   ग्रहण, संक्रांति, और त्योहारों की तिथि की सटीकता आज भी पंचांगों द्वारा ही उपलब्ध है।

3. संस्कार और संस्कृति का संरक्षण:

भारतीय जीवनशैली के 16 संस्कारों में ज्योतिष का सीधा संबंध है यह जीवन को नियमबद्ध और संतुलित करने की प्रक्रिया है।

4. मनोवैज्ञानिक सहारा:

जब व्यक्ति संकट या भ्रम की स्थिति में होता है, तो ज्योतिष संभावनाओं और आत्ममंथन के लिए एक दिशा देता है।

आलोचना और विवेक

हालाँकि, आज के दौर में कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा इसे अंधविश्वास का रूप दे दिया गया है, परंतु वास्तविक और शास्त्र-सम्मत ज्योतिष अनुशासन, अध्ययन और तर्क पर आधारित है। समाज को चाहिए कि वह सत्य और व्यावसायिक दिखावे के बीच अंतर समझे। भारतीय ज्योतिष शास्त्र न केवल भारत की प्राचीन वैज्ञानिक धरोहर है, बल्कि यह आज भी सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का आधार है। सूर्यसिद्धांत, आर्यभटीय, सिद्धांत शिरोमणि और बृहत्संहिता जैसे ग्रंथों ने ज्योतिष को गणना, खगोल और सांस्कृतिक चेतना का अद्भुत संगम बनाया है।

आज के युग में आवश्यकता है कि हम इस विद्या को अंधविश्वास से मुक्त करके, इसके वैज्ञानिक और सामाजिक पक्ष को पुनः प्रतिष्ठित करें।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I