‘बरखुरदार!’ – प्राण: पर्दे का खौफ, असल ज़िंदगी का सम्मान

हिंदी सिनेमा के ‘विलेन ऑफ द मिलेनियम’ प्राण ने अपने संवाद, अंदाज़ और आँखों की तीखी अदायगी से ऐसा खौफ रचा कि लोगों ने अपने बच्चों का नाम 'प्राण' रखना छोड़ दिया था। लेकिन पर्दे का यह खलनायक, निजी जीवन में एक शालीन, खेलप्रेमी और सिनेमा के सच्चे सेवक थे।

Jul 22, 2025 - 15:12
Jul 15, 2025 - 20:22
 0
‘बरखुरदार!’ – प्राण: पर्दे का खौफ, असल ज़िंदगी का सम्मान
प्राण कृष्ण सिकंद

हिंदी सिनेमा के ‘विलेन ऑफ द मिलेनियम’ प्राण ने अपने संवाद, अंदाज़ और आँखों की तीखी अदायगी से ऐसा खौफ रचा कि लोगों ने अपने बच्चों का नाम 'प्राण' रखना छोड़ दिया था। लेकिन पर्दे का यह खलनायक, निजी जीवन में एक शालीन, खेलप्रेमी और सिनेमा के सच्चे सेवक थे। 60 सालों तक 350+ फिल्मों में सक्रिय रहकर उन्होंने नायक से ज्यादा असरदार खलनायकों की परंपरा को मजबूत किया। फिल्म जंजीर में अमिताभ बच्चन को लॉन्च कराने से लेकर, सदी के सर्वश्रेष्ठ खलनायक माने जाने तक, प्राण की कहानी भारतीय सिनेमा का एक गौरवशाली अध्याय है।

पूरा नाम: प्राण कृष्ण सिकंद

जन्म: 12 फरवरी 1920, दिल्ली

निधन: 12 जुलाई 2013, मुंबई

पहचान: अभिनेता, संवाद-अदायगी के उस्ताद, खलनायक की पुनर्परिभाषा करने वाला कलाकार

फिल्मी करियर की झलक:

 करियर की शुरुआत 1940 की पंजाबी फिल्म 'यमला जट' से की।

 60 से अधिक वर्षों तक सक्रिय, 350 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय।

 1950–70 के दशक में खलनायक की ऐसी पहचान बनाई जो नायक से भी अधिक लोकप्रिय थी।

 जंजीर, बॉबी, उपकार, पूरब और पश्चिम, डॉन, अमर अकबर एंथनी, करज, कसौटी, शराबी, रोटी कपड़ा और मकान जैसी यादगार फिल्मों में निभाए रोल।

संवाद और अंदाज़:

‘बरखुरदार!’ इस संवाद को उन्होंने कालजयी बना दिया। उनकी चाल, सिगरेट का अंदाज़, चश्मा पहनने की स्टाइल और संवाद अदायगी हिंदी सिनेमा में खलनायकी की पाठशाला बन गई।

कमाई और लोकप्रियता:

 1960-70 के दशक में 5–10 लाख रुपये प्रति फिल्म लेते थे। उस दौर में यह रकम सुपरस्टार स्तर की मानी जाती थी।

 केवल राजेश खन्ना और शशि कपूर को उनसे अधिक पारिश्रमिक मिलता था।

 दर्शकों की नफरत, उनके किरदार की सफलता का प्रमाण बन गई।

सम्मान और पुरस्कार:

 फिल्मफेयर अवॉर्ड (सहायक अभिनेता): 3 बार

 फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड (1997)

 पद्म भूषण (2001)

 सिनेमा के 100 सालों में ‘विलेन ऑफ द मिलेनियम’ का सम्मान

खेल प्रेमी:

 1950 के दशक में अपनी खुद की फुटबॉल टीम बनाई थी।

 फिल्मों के बाहर, एक सक्रिय और अनुशासित खेलप्रेमी के रूप में भी पहचाने जाते थे।

प्रभाव और विरासत:

 जंजीर में अमिताभ बच्चन का नाम प्रकाश मेहरा को प्राण ने ही सुझाया था। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि एक अभिनेता कैसे खलनायक बनकर भी नायक जैसी श्रद्धा प्राप्त कर सकता है। खुद कहते थे:मैं अगले जन्म में भी प्राण ही बनना चाहूँगा।”

 

 

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

न्यूज डेस्क जगाना हमारा लक्ष्य है, जागना आपका कर्तव्य