अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस: क्या वैश्विक न्याय सचमुच सर्वजन के लिए है?
अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस (17 जुलाई) वैश्विक न्याय के उस आदर्श की याद दिलाता है, जहाँ युद्ध अपराध, नरसंहार और मानवता के विरुद्ध अपराधों के लिए अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) जैसी संस्थाएँ उत्तरदायित्व तय करती हैं। इसकी स्थापना नुरेमबर्ग ट्रायल, रवांडा और यूगोस्लाविया के त्रासद अनुभवों के बाद हुई थी। परंतु आज यह सवाल गहराता जा रहा है कि क्या यह न्याय प्रणाली वास्तव में सभी के लिए निष्पक्ष है, या केवल कमज़ोर और विकासशील देशों के लिए कठोर है? ICC की भूमिका, उसकी सीमाएँ और राजनीतिक शक्तियों का प्रभाव इसे विवादों के घेरे में लाता है। यह दिवस हमें याद दिलाता है कि जब तक न्याय सबके लिए समान नहीं होगा, तब तक "वैश्विक न्याय" केवल एक नैतिक आदर्श बना रहेगा।

17 जुलाई को प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस न केवल मानवाधिकारों के संरक्षण का प्रतीक है, बल्कि यह न्याय के सार्वभौमिक आदर्श की गूंज भी है, वह न्याय जो सीमाओं, राष्ट्रहितों और राजनीति से परे जाकर पीड़ितों के पक्ष में खड़ा हो। यह दिवस अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) की स्थापना (17 जुलाई 1998, रोम संविधि) की स्मृति में मनाया जाता है, जो इतिहास की कुछ सबसे भयावह घटनाओं के बाद वैश्विक न्याय व्यवस्था की आवश्यकता को लेकर उपजा था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: जब मानवता ने न्याय की पुकार की
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद नुरेमबर्ग ट्रायल्स ने यह दिखाया कि राष्ट्र के शीर्षस्थ नेता भी युद्ध अपराधों के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं। इसी भावना ने आगे चलकर रवांडा जनसंहार (1994) और पूर्व यूगोस्लाविया में जातीय हिंसा जैसे मानवता विरोधी अपराधों के बाद अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय की अवधारणा को मजबूती दी। अंततः, रोम में 120 देशों की सहमति से 1998 में ICC की स्थापना हुई, जो 2002 से सक्रिय रूप में कार्य कर रही है।
उद्देश्य और अधिकार-क्षेत्र
ICC को ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार प्राप्त है जहाँ युद्ध अपराध, मानवता के विरुद्ध अपराध, नरसंहार, और आक्रामकता जैसे गंभीर अपराध हुए हों और संबंधित राज्य न्याय करने में असमर्थ या अनिच्छुक हों। यह कोर्ट किसी एक राष्ट्र की नहीं, बल्कि मानवता की प्रतिनिधि संस्था के रूप में स्थापित हुई।
वर्तमान प्रासंगिकता और सीमाएँ
आज जब विश्व में अनेक क्षेत्र जैसे सीरिया, सूडान, म्यांमार, गाज़ा, यमन आदि हिंसा और युद्ध के केंद्र बने हुए हैं, वहाँ ICC की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। लेकिन विडंबना यह है कि जिन शक्तिशाली देशों से अंतरराष्ट्रीय न्याय की सर्वाधिक अपेक्षा होती है, जैसे अमेरिका, रूस, चीन वे या तो रोम संविधि पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं हैं, या ICC के अधिकार क्षेत्र को नहीं मानते। इससे एक गंभीर प्रश्न खड़ा होता है, क्या न्याय की वैश्विक व्यवस्था केवल कमज़ोर और विकासशील देशों के लिए है?
न्याय बनाम वैश्विक राजनीति: एक असहज यथार्थ
ICC की आलोचना अक्सर यह कहकर होती है कि यह अफ्रीकी देशों पर disproportionate ध्यान देती है, जबकि पश्चिमी देशों या वैश्विक महाशक्तियों के कृत्य अछूते रहते हैं। उदाहरणस्वरूप, इराक युद्ध, ग्वांतानामो बे या गाज़ा पर आक्रमण जैसे मामलों में ICC की निष्क्रियता पर प्रश्नचिह्न लगे हैं। ऐसे में ICC के राजनीतिक स्वतंत्रता और न्यायिक निष्पक्षता पर गहरे संदेह उत्पन्न होते हैं।
विकासशील देशों के लिए क्या यह न्याय मंच है या नियंत्रण का साधन?
अनेक विकासशील राष्ट्रों के लिए ICC दोधारी तलवार है। एक ओर यह उन्हें घरेलू न्याय की सीमाओं से ऊपर जाकर मानवाधिकार के उल्लंघन पर अंतरराष्ट्रीय मंच देता है, वहीं दूसरी ओर यह खतरा भी मौजूद रहता है कि इस मंच का उपयोग सामरिक और राजनीतिक दबाव बनाने के लिए किया जा सकता है।
क्या यह न्याय सबके लिए है?
अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस हमें इस मूल प्रश्न से जूझने पर विवश करता है:
"क्या वैश्विक न्याय व्यवस्था सचमुच सर्वजन के लिए है, या यह केवल सामरिक और राजनीतिक समीकरणों का उपकरण बन चुकी है?"
जब तक न्याय की धाराएँ सब पर समान रूप से लागू नहीं होतीं, चाहे वह महाशक्ति हो या संघर्षरत जनजातीय समूह, तब तक अंतरराष्ट्रीय न्याय अधूरा और पक्षपाती ही रहेगा।
अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस न केवल ICC की स्मृति का दिन है, बल्कि यह वैश्विक न्याय की सामूहिक अंतरात्मा की परीक्षा भी है। यदि यह न्याय व्यवस्था सर्वसमावेशी, निष्पक्ष और निर्भीक नहीं बनती, तो यह दिवस केवल औपचारिकता बनकर रह जाएगा।
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