फूलन देवी: एक त्रासदी की सच्ची कहानी
फूलन देवी की कहानी न तो पूरी तरह नायिका की है, न खलनायिका की। वह एक ऐसी औरत थीं, जिसने जिंदगी भर अन्याय सहे और उसका जवाब अपने तरीके से दिया। उनके गुनाहों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन उनके दर्द को भी समझना जरूरी है। वह न तो "बैंडिट क्वीन" थीं, न रॉबिन हुड—वह एक इंसान थीं, जिसे हालात ने तोड़ा, फिर बनाया। उनकी कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि समाज की कमियां कितने जिंदगियों को बर्बाद कर सकती हैं।

13 अप्रैल 2025 को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक जनसभा में कहा कि फूलन देवी के साथ जो अत्याचार हुआ वह दुनिया के इतिहास में किसी अन्य महिला के साथ इतना अन्याय और अपमान नहीं हुआ। तो आईए हम देखें कि फूलन देवी के साथ क्या अन्याय और अत्याचार हुए और किन लोगों ने वह अत्याचार किए बिना किसी लाल, नीले चश्मा लगाए हम इसे देखते हैं-
गंगा के किनारे बसे उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में एक छोटा-सा गांव है, गोरहा का पुरवा। यहीं 10 अगस्त 1963 को एक मल्लाह (निषाद) परिवार में फूलन देवी का जन्म हुआ। उनके पिता, देवी दीन, एक गरीब मछुआरे थे, जिनके पास थोड़ी-सी जमीन थी। फूलन का बचपन गरीबी, सामाजिक भेदभाव और पारिवारिक विवादों की छाया में बीता। यह कहानी उस लड़की की है, जो हालात के थपेड़ों से लड़ती हुई डकैत बनी, और फिर एक ऐसी शख्सियत, जिसे कोई नायिका मानता है, तो कोई अपराधी।
शुरुआती जख्म: परिवार और जमीन का विवाद
फूलन जब छोटी थीं, तब उनके परिवार की जिंदगी एक पारिवारिक विवाद ने उलझा दी। उनके चाचा और चचेरे भाई मायाराम ने उनकी पिता की जमीन पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया। फूलन, जो तब महज 9-10 साल की थीं, ने इस अन्याय को देखा और समझा। कहते हैं, उनकी मां ने उन्हें बताया कि ताकतवर लोग कमजोरों की जमीन हड़प लेते हैं। फूलन का गुस्सा फूट पड़ा। कुछ स्थानीय कहानियों के अनुसार, उन्होंने अपने चचेरे भाई पर हमला भी किया, लेकिन क्योंकि वह बच्ची थीं, कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई। यह छोटी-सी घटना उनके बागी स्वभाव का पहला संकेत थी।
बाल विवाह और ससुराल का दर्द
11 साल की उम्र में फूलन की जिंदगी ने एक और कठोर मोड़ लिया। उनके पिता ने उनकी शादी पुत्तीलाल मल्लाह नामक व्यक्ति से कर दी, जो उनसे उम्र में कहीं ज्यादा बड़ा था। यह शादी सामाजिक प्रथा का हिस्सा थी, लेकिन फूलन के लिए यह एक जेल बन गई। पुत्तीलाल ने उनके साथ शारीरिक और यौन शोषण किया। नन्ही फूलन के लिए यह दर्द असहनीय था। आखिरकार, वह तंग आकर ससुराल छोड़ मायके लौट आईं।
मायके में भी राहत नहीं थी। परिवार और गांव वालों ने उनकी वापसी को अच्छा नहीं माना। कुछ समय बाद, उनके चचेरे भाई और रिश्तेदारों ने दबाव डाला कि वह ससुराल लौटें। जब फूलन वहां पहुंचीं, तो उन्हें पता चला कि पुत्तीलाल ने दूसरी शादी कर ली है। नई पत्नी और पुत्तीलाल ने मिलकर फूलन को अपमानित किया और घर से भगा दिया। फूलन फिर मायके लौटीं, लेकिन अब उनके अपने ही उनके खिलाफ हो गए।
सामाजिक बहिष्कार और जेल
गांव में फूलन की स्थिति बद से बदतर होती गई। उनके चचेरे भाई मायाराम ने उन पर चोरी का झूठा इल्जाम लगाया, जिसके चलते वह जेल चली गईं। यह उनके जीवन का एक और काला अध्याय था। जेल से छूटने में गांव के कुछ ठाकुरों ने मदद की, शायद इसलिए कि एक लड़की का जेल में होना गांव की इज्जत के लिए ठीक नहीं माना गया। लेकिन इस मदद ने फूलन को कोई सुकून नहीं दिया। वह समाज और परिवार की नजरों में एक "बिगड़ी हुई" लड़की बन चुकी थीं।
बीहड़ का रास्ता: डकैती की शुरुआत
फूलन की जिंदगी तब पूरी तरह बदल गई, जब डकैतों का एक गैंग उनके गांव में घुसा। बाबू गुर्जर, एक डकैत, ने फूलन को अगवा कर लिया और उनके साथ बलात्कार किया। इस गैंग में विक्रम मल्लाह नाम का एक डकैत भी था, जो बाद में फूलन का साथी बना। विक्रम ने बाबू गुर्जर की हत्या कर गैंग की कमान संभाली। कुछ स्रोतों के अनुसार, विक्रम और फूलन का रिश्ता प्यार में बदला, और फूलन बीहड़ की दुनिया में उतर गईं।
विक्रम के साथ फूलन ने अपने अतीत का बदला लेना शुरू किया। वह अपने पति पुत्तीलाल के गांव गईं और उसे सार्वजनिक रूप से अपमानित किया। कुछ कहानियों में कहा जाता है कि उन्होंने पुत्तीलाल को बुरी तरह पीटा, लेकिन अन्य हत्याओं का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। फूलन अब एक डकैत बन चुकी थीं, और उनका नाम इलाके में फैलने लगा।
बेहमई कांड: बदले की आग
विक्रम मल्लाह के साथ फूलन की जिंदगी कुछ समय तक चली, लेकिन जल्द ही एक और त्रासदी ने उन्हें तोड़ दिया। ठाकुर भाइयों, श्रीराम और लालाराम, ने विक्रम की हत्या कर दी। फूलन को बेहमई गांव में बंधक बनाया गया, जहां उनके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ। यह उनके जीवन का सबसे दर्दनाक पल था। अपमान और गुस्से से भरी फूलन ने बदला लेने की ठानी।
14 फरवरी 1981 को फूलन अपने गैंग के साथ बेहमई गांव लौटीं। उन्होंने गांव के 22 ठाकुर पुरुषों को लाइन में खड़ा कर गोली मार दी। यह घटना, जिसे बेहमई कांड के नाम से जाना जाता है, भारतीय इतिहास में एक काला अध्याय बन गई। फूलन ने इसे अपने साथ हुए अन्याय का बदला बताया। हालांकि, कुछ स्थानीय कहानियों में यह भी कहा जाता है कि इस हमले में निर्दोष लोग भी मारे गए, लेकिन इनमें से कई दावे सत्यापित नहीं हैं।
आत्मसमर्पण और नया जीवन
बेहमई कांड के बाद फूलन का नाम पूरे देश में फैल गया। पुलिस और सरकार उनके पीछे पड़ गई। दो साल तक बीहड़ में छुपने के बाद, 1983 में फूलन ने मध्य प्रदेश में आत्मसमर्पण कर दिया। उन्हें 11 साल तक जेल में रखा गया, लेकिन उन पर कोई बड़ा आरोप सिद्ध नहीं हुआ। 1994 में उनकी रिहाई हुई।
जेल से निकलने के बाद फूलन ने एक नया जीवन शुरू किया। 1996 में वह समाजवादी पार्टी से सांसद बनीं और गरीबों व दलितों के लिए आवाज उठाईं। लेकिन उनकी कहानी का अंत भी दुखद था। 25 जुलाई 2001 को दिल्ली में उनकी हत्या कर दी गई।
कौन था जिम्मेदार?
फूलन की जिंदगी पर नजर डालें, तो कई लोग उनके दर्द के लिए जिम्मेदार नजर आते हैं:
- उनके पिता: जिन्होंने बाल विवाह करवाया, जिसने फूलन को शोषण की आग में झोंक दिया।
- उनके चाचा और चचेरे भाई: जिन्होंने जमीन हड़पी और उन्हें जेल भिजवाया।
- उनका पति: जिसने उनके साथ क्रूरता की।
- डकैत बाबू गुर्जर: जिसने उन्हें अपहरण और बलात्कार का शिकार बनाया।
- बेहमई के ठाकुर: जिन्होंने सामूहिक बलात्कार जैसे जघन्य अपराध को अंजाम दिया।
- विक्रम मल्लाह: जिसने उन्हें डकैती की दुनिया में ले गया, हालांकि उनका रिश्ता बाद में बदल गया।
क्या सिर्फ उच्च जातियां जिम्मेदार थीं? नहीं। फूलन के दर्द में उनके अपने परिवार, समुदाय और समाज की कुरीतियों का भी बराबर हाथ था। बेहमई कांड को ऊंची जातियों के खिलाफ बदले से जोड़ा गया, लेकिन यह पूरी सच्चाई नहीं है। गरीबी, लैंगिक भेदभाव, और सामाजिक असमानता ने फूलन को उस रास्ते पर धकेला, जहां से वापसी मुश्किल थी।
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