जब न्याय माँगना गुनाह बना दिया जाए: हाईकोर्ट की दो टूक – 'यह न्यायपालिका पर हमला है'

जौनपुर जिले में एक 90 वर्षीय दलित पूर्व सैनिक द्वारा ग्रामसभा की भूमि पर कब्जे के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर कार्रवाई की बजाय, पुलिस द्वारा उन्हें, उनके RTI कार्यकर्ता पोते और अधिवक्ता को धमकाया गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसे न्यायिक स्वतंत्रता पर हमला मानते हुए दोषी पुलिसकर्मियों को निलंबित कर, FIR दर्ज करने और ADG (गृह) को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया। कोर्ट ने स्पष्ट कहा - "यह प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए घातक है और कठोर दंड की माँग करती है।"

Jul 14, 2025 - 07:40
Jul 14, 2025 - 07:46
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जब न्याय माँगना गुनाह बना दिया जाए: हाईकोर्ट की दो टूक – 'यह न्यायपालिका पर हमला है'
न्यायालय की शरण में जाने पर पुलिस धमकाने लगे, तो संविधान की आत्मा घायल होती है

न्यायालय की शरण में जाने पर पुलिस धमकाने लगे, तो संविधान की आत्मा घायल होती है

भारतीय लोकतंत्र का आधारभूत सिद्धांत है - 'न्याय सभी के लिए समान', किंतु जब किसी पूर्व सैनिक, दलित RTI कार्यकर्ता, और अधिवक्ता को मात्र इसलिए धमकी दी जाए क्योंकि उन्होंने न्याय की गुहार लगाई, तो यह सिर्फ व्यक्ति पर नहीं, बल्कि न्यायिक स्वतंत्रता और संविधान पर हमला है।

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जनपद में घटी यह घटना केवल एक याचिका से शुरू हुई थी, लेकिन अब यह राष्ट्रीय स्तर पर लोकतंत्र और विधिक संरचना की परीक्षा बन चुकी है।

मूल प्रसंग: ग्रामसभा की ज़मीन, PIL और न्याय की पुकार

ग्राम बड़ागांव, थाना मुँगराबादशाहपुर, जिला जौनपुर के निवासी गौरीशंकर सरोज, 90 वर्षीय सेवानिवृत्त सैनिक हैं। उन्होंने देखा कि गांव की ग्रामसभा की ज़मीन पर भूमाफियाओं द्वारा कब्जा किया जा रहा है। उन्होंने अपने पोते रजनीश सरोज के माध्यम से RTI दाखिल कर दस्तावेज़ जुटाए और इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका (PIL No. 1118/2025) दायर की। परंतु, इस कानूनी पहल का सामना उन्होंने सम्मान या न्याय से नहीं, बल्कि धमकी, दबाव, रिश्वतखोरी, और पुलिसिया उत्पीड़न के रूप में किया।

8 जुलाई 2025: जब न्यायालय ने पुलिस की मंशा पर उठाया सवाल

हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर की एकल पीठ के समक्ष वादी और उनके पोते व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए और न्यायाधीश के समक्ष पूरे घटनाक्रम को बताया।

वादी गौरीशंकर सरोज का बयान:

"17 मई को दो पुलिसकर्मी घर आए। कहा गया – PIL वापस लो, नहीं तो अंजाम भुगतना पड़ेगा। मेरे पोते को गाड़ी में डालकर ले गए और ₹2000 लेकर छोड़ा।"

रजनीश सरोज का बयान:

"मैं B.Sc. द्वितीय वर्ष का छात्र हूँ। पुलिस ने मुझे अपहरण कर लिया, मुझ पर दबाव डाला गया।"

इस पर कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि  यह राज्य की शक्ति का गंभीर दुरुपयोग है।

कोर्ट ने माना कि SP जौनपुर द्वारा प्रस्तुत की गई प्रारंभिक जाँच रिपोर्ट 'पक्षपातपूर्ण और औपचारिकता मात्र' थी। आदेश दिया गया कि SP स्वयं पुनः जाँच करें और व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करें।

पुलिस अधीक्षक की रिपोर्ट: आरोप पुष्ट, FIR दर्ज, सस्पेंशन की कार्रवाई

11 जुलाई 2025 को SP जौनपुर डॉ. कौस्तुभ ने हाईकोर्ट में रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें उल्लेख था:

 सिपाही पंकज मौर्य व नितीश गौड़ को निलंबित किया गया।

 थाना प्रभारी दिलीप कुमार सिंह को भी निलंबित किया गया।

 लेखपाल विजय शंकर के विरुद्ध डीएम को पत्राचार।

 FIR No. 0175/2025, थाना मुँगराबादशाहपुर में दर्ज की गई धाराएँ:

   BNS 61(1), 352, 351(2)

   PC Act 7 (भ्रष्टाचार)

   SC/ST Act 3(2)(va)

यह कार्रवाई स्वागत योग्य थी - परंतु कहानी यहीं नहीं रुकी।

11 जुलाई 2025: अब अधिवक्ता को डराने की कोशिश, न्यायपालिका पर सीधा हमला- वादी पक्ष के अधिवक्ता विष्णु कांत तिवारी ने कोर्ट को बताया कि 9 जुलाई की रात पुलिस उनके घर पहुँची। SHO ने फोन कर पूछा – “आप जौनपुर क्यों गए? थाने आइए नहीं तो मजबूर होंगे।

यह सुनकर हाईकोर्ट स्तब्ध रह गया। न्यायालय ने कहा: यह वकील की स्वतंत्रता पर हमला है और इस प्रवृत्ति को सख्ती से रोका जाना चाहिए। यह न्यायपालिका की रीढ़ पर सीधा प्रहार है।

कोर्ट का आदेश (11 जुलाई 2025):

 पुलिस को वकील या उनके परिवार से संपर्क करने पर पूर्ण प्रतिबंध।

 ADG (गृह), उत्तर प्रदेश शासन को पार्टी बनाया गया।

 SP और ADG को 15 जुलाई तक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का आदेश।

 आदेश की प्रति CJM लखनऊ और CJM जौनपुर के माध्यम से संबंधित पक्षों को तात्कालिक रूप से पहुँचाने का निर्देश।

संविधान, न्यायिक स्वतंत्रता और नागरिक सुरक्षा पर एक साथ वार

इस पूरे प्रकरण में चार प्रमुख स्तंभों को निशाना बनाया गया:

1. पूर्व सैनिक जिन्होंने राष्ट्र की सेवा की, उन्हें वृद्धावस्था में धमकाया गया।

2. दलित नागरिक सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग, जिनके अधिकारों को कुचला गया।

3. RTI कार्यकर्ता जो पारदर्शिता और सत्य के लिए लड़े।

4. अधिवक्ता न्यायिक प्रणाली की रक्षा करने वाले, जिन्हें ही डराया गया।

यह अकेला मामला नहीं, बल्कि एक गहरी प्रवृत्ति का उदाहरण है, जिसमें जनहित याचिकाओं को रोकने के लिए राजकीय शक्ति का दुरुपयोग, पुलिसिया दबाव, और लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है।

अब क्या?

 क्या आरोपित पुलिसकर्मियों पर गिरफ्तारी होगी?

 क्या शासन ADG स्तर से जवाबदेही तय करेगा?

 क्या अधिवक्ता विष्णु कांत तिवारी जैसे वकीलों की सुरक्षा के लिए राज्य नीति बनेगी?

 क्या PIL वापस लेने का दबाव डालने वाले अधिकारियों को सेवा से बर्खास्त किया जाएगा?

संपादकीय टिप्पणी:

भारत का संविधान कहता है कि 'न्याय हर नागरिक का अधिकार है', किंतु जब न्याय माँगना ही जोखिम भरा साहस बन जाए, तो लोकतंत्र को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। इलाहाबाद हाईकोर्ट के 8 व 11 जुलाई 2025 के आदेश, पुलिस के खिलाफ एक चेतावनी मात्र नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र की रक्षा के लिए एक परचम हैं।

हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि "न्याय माँगने वाला कभी डरकर पीछे न हटे।"

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I