नकदी के बदले नौकरी घोटाला: कलकत्ता हाईकोर्ट ने वजीफा योजना पर लगाई रोक
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल सरकार की उस योजना पर रोक लगा दी, जिसके तहत 2016 के बर्खास्त ग्रुप C और D गैर-शिक्षण कर्मचारियों को वजीफा देने की योजना बनाई गई थी। इन कर्मचारियों की नियुक्तियाँ कलकत्ता उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट द्वारा धोखाधड़ी पूर्ण घोषित की जा चुकी थीं।

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल सरकार की उस योजना पर रोक लगा दी, जिसके तहत 2016 के बर्खास्त ग्रुप C और D गैर-शिक्षण कर्मचारियों को वजीफा देने की योजना बनाई गई थी।
इन कर्मचारियों की नियुक्तियाँ कलकत्ता उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट द्वारा धोखाधड़ी पूर्ण घोषित की जा चुकी थीं।
अदालत ने कहा कि "ऐसी नियुक्तियों को यदि धोखा साबित हो चुका है, तो उनके लाभार्थियों को सरकारी खजाने से सहायता नहीं मिल सकती।"
घटना का संदर्भ:
2016 में पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (WBSSC) द्वारा की गई लगभग 24,000 शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों की नियुक्तियों को 2024 में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था। इन नियुक्तियों में OMR शीट के गलत मूल्यांकन, अनुचित लाभ और भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध हुए। सुप्रीम कोर्ट ने 3 अप्रैल 2025 को इस निर्णय को बरकरार रखा।
वजीफा योजना पर रोक:
राज्य सरकार ने एक योजना- 'पश्चिम बंगाल आजीविका सामाजिक सुरक्षा अंतरिम योजना, 2025' के अंतर्गत इन बर्खास्त कर्मचारियों को ₹20,000 से ₹25,000 प्रतिमाह वजीफा देने की घोषणा की थी।
लेकिन न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा की एकल पीठ ने इस पर रोक लगाते हुए कहा: “धोखाधड़ी सिद्ध हो चुकी है, तो लाभार्थियों को बिना कोई काम किए सरकारी कोष से पैसा देना न्यायसंगत नहीं।”
रोक की अवधि:
अदालत ने 26 सितंबर 2025 तक या अगले आदेश तक के लिए वजीफा योजना पर अंतरिम रोक लगाई है।
पक्षकार और तर्क:
राज्य सरकार: ने मानवीय आधार पर आजीविका देने की दलील दी।
याचिकाकर्ता: योजना को अनुचित और पक्षपातपूर्ण करार देते हुए कहा कि नौकरी गंवाने वाले सभी या योग्य लेकिन नियुक्त न हुए अभ्यर्थियों को लाभ क्यों नहीं मिला?
प्रमुख अधिवक्ता:
याचिकाकर्ताओं की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता विकास रंजन भट्टाचार्य एवं अन्य
राज्य की ओर से: महाधिवक्ता किशोर दत्ता सहित कई वरिष्ठ वकील उपस्थित
यह मामला दिखाता है कि नियुक्तियों में पारदर्शिता की कमी किस हद तक प्रशासन और न्यायपालिका को उलझा सकती है। साथ ही, यह निर्णय बताता है कि ‘धोखाधड़ी’ के लाभार्थियों को ‘मानवीयता’ के नाम पर सरकारी संरक्षण नहीं दिया जा सकता। यह घटना प्रशासनिक जवाबदेही और चयन प्रक्रिया में सुधार की गहरी आवश्यकता को रेखांकित करती है।
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