नकदी के बदले नौकरी घोटाला: पश्चिम बंगाल की भर्ती प्रणाली पर भ्रष्टाचार का कलंक

पश्चिम बंगाल में 2016 की स्कूल भर्ती प्रक्रिया में सामने आए नकदी के बदले नौकरी घोटाले ने राज्य की नियुक्ति प्रणाली की पारदर्शिता और नैतिकता पर गहरे सवाल खड़े किए हैं। इसमें 24,000 से अधिक शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों की नियुक्तियों को कलकत्ता उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट द्वारा धोखाधड़ी पूर्ण मानते हुए रद्द कर दिया गया। राज्य सरकार की ओर से बर्खास्त कर्मचारियों को वजीफा देने की योजना पर भी उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी। यह घोटाला सिर्फ एक कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि संस्थागत नैतिक पतन और भ्रष्ट चयन संस्कृति का आईना है, जिसे जड़ से सुधारने की आवश्यकता है।

Jun 22, 2025 - 07:26
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नकदी के बदले नौकरी घोटाला: पश्चिम बंगाल की भर्ती प्रणाली पर भ्रष्टाचार का कलंक
ममता बनर्जी, सुप्रीम कोर्ट, शिक्षक भर्ती घोटाला

पश्चिम बंगाल में शिक्षा विभाग से जुड़ा नकदी के बदले नौकरी घोटाला केवल राज्य की भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर ही सवाल नहीं खड़े करता है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र में व्यवस्था की विश्वसनीयता को भी गहरे संकट में डालता है। यह मामला वर्षों से न्यायिक और राजनीतिक विमर्श का विषय बना हुआ है, और इसके दुष्परिणाम आज भी हजारों उम्मीदवारों और कर्मचारियों के जीवन को प्रभावित कर रहे हैं।

पृष्ठभूमि: 2016 की नियुक्तियाँ और विवाद

2016 में पश्चिम बंगाल विद्यालय सेवा आयोग (WBSSC) द्वारा लगभग 24,000 शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों पर भर्ती की गई थी। इन नियुक्तियों के लिए 23 लाख से अधिक अभ्यर्थियों ने परीक्षा दी थी। परंतु शीघ्र ही यह उजागर हुआ कि भर्ती प्रक्रिया में OMR शीट के गलत मूल्यांकन, फर्जी दस्तावेज़, और आर्थिक लेन-देन जैसे गंभीर अनियमितताएँ हुईं।

न्यायिक कार्रवाई: हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक

·         अप्रैल 2024 में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने भर्ती को धोखाधड़ी पूर्ण बताते हुए पूरी प्रक्रिया को रद्द कर दिया।

·         3 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस निर्णय को बरकरार रखा, यह कहते हुए कि चयन प्रक्रिया में गम्भीर अनियमितताएँ थीं।

·         सरकार की समीक्षा याचिका अब भी शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित है।

वजीफा योजना पर विवाद

राज्य सरकार ने 'पश्चिम बंगाल आजीविका सामाजिक सुरक्षा अंतरिम योजना, 2025' के तहत उन बर्खास्त कर्मचारियों को ₹20,000–₹25,000 प्रतिमाह वजीफा देने की घोषणा की, जिन्हें नौकरी से हटाया गया था। परंतु कलकत्ता उच्च न्यायालय ने 14 जून 2025 को इस योजना पर अंतरिम रोक लगा दी। न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा ने कहा: 'जब सर्वोच्च न्यायालय यह ठहरा चुका है कि नियुक्ति धोखाधड़ी का परिणाम थी, तो ऐसे लाभार्थियों को बिना कोई कार्य किए सरकारी कोष से पैसा देना अस्वीकार्य है।'

याचिकाएँ और तर्क

तीन याचिकाओं के माध्यम से योजना को अदालत में चुनौती दी गई, जिनमें:

·         वे बर्खास्त कर्मचारी शामिल थे जिन्हें योजना से बाहर रखा गया।

·         वे अभ्यर्थी जिन्होंने परीक्षा दी पर चयन नहीं हुआ।

राज्य सरकार ने मानवीय आधार पर वजीफा को जायज़ बताया, परंतु याचिकाकर्ताओं ने इसे 'धोखाधड़ी के संरक्षण' का प्रयास कहा।

राजनीतिक और नैतिक विमर्श

यह घोटाला केवल तकनीकी या प्रशासनिक विफलता नहीं है, यह एक संस्थागत नैतिक पतन का उदाहरण है। जब नौकरियाँ 'काबिलियत' की बजाय 'नकदी' के बदले मिलें, तो शिक्षा और शासन दोनों की आत्मा मरती है। यह न केवल चयनित और अचयनित उम्मीदवारों के साथ अन्याय है, बल्कि पूरे समाज के साथ धोखा है।

प्रमुख प्रश्न:

1.     क्या भ्रष्ट तरीकों से चयनित लोगों को आजीविका का हक है?

2.     क्या सरकार कोर्ट के फैसलों को मानने के बजाय राजनीतिक समाधान खोज रही है?

3.     क्या इससे एक खतरनाक उदाहरण स्थापित नहीं होता?

समाधान की दिशा में:

·         भर्ती प्रक्रियाओं की स्वतंत्र ऑडिट प्रणाली विकसित की जाए।

·         परीक्षा संस्थाओं में तकनीकी निगरानी तंत्र हो, जो हर चरण को रिकॉर्ड करे।

·         भ्रष्टाचार में शामिल अधिकारियों और राजनेताओं की जवाबदेही तय की जाए।

·         बर्खास्त कर्मचारियों के स्थान पर योग्य और प्रतीक्षारत उम्मीदवारों को नियुक्ति दी जाए।

पश्चिम बंगाल का यह भर्ती घोटाला केवल एक राज्य की समस्या नहीं, यह देश की भर्ती संस्कृति पर हमला है। अब समय आ गया है कि हम 'अवसर की समानता' को केवल संविधान की किताब में नहीं, बल्कि भर्ती कक्ष की वास्तविकता में भी सुनिश्चित करें। जब तक शासन व्यवस्था न्यायिक आदेशों के अनुपालन और नैतिक निर्णयों में स्पष्टता नहीं दिखाएगी, तब तक यह संदेश जाता रहेगा कि भ्रष्टाचार को सज़ा नहीं, सहानुभूति मिलती है

अब भी यदि यह सोच न बदली, तो भविष्य में योग्यताएँ शर्मिंदा होती रहेंगी, और नकदव्यवस्था को चुनौती देने वाला हर उम्मीदवार खुद को ठगा हुआ महसूस करेगा।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I