उत्तर प्रदेश पुलिस: सुधार की राह पर या साख के संकट में?

यह संपादकीय उत्तर प्रदेश पुलिस प्रशासन की मौजूदा स्थिति, तकनीकी व प्रशासनिक सुधारों, मनबढ़ अधिकारियों की कार्यप्रणाली, कानून-व्यवस्था की चुनौतियों और जनता के घटते विश्वास पर गहन प्रकाश डालता है। फॉरेंसिक तकनीक, साइबर पुलिस थानों और प्रशिक्षण पहलों जैसी सकारात्मक पहलुओं के साथ-साथ, पुलिसिया मनमानी, जवाबदेही की कमी जैसे चिंताजनक पहलुओं का संतुलित मूल्यांकन किया गया है। लेख यह भी स्पष्ट करता है कि जब तक पुलिस बल की मानसिकता और जवाबदेही की संस्कृति नहीं बदलेगी, तब तक सुधार अधूरा ही रहेगा।

Jul 20, 2025 - 06:04
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उत्तर प्रदेश पुलिस: सुधार की राह पर या साख के संकट में?
उत्तर प्रदेश पुलिस: सुधार की राह पर या साख के संकट में?

उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य, प्रशासनिक दृष्टिकोण से भी एक जटिल भूगोल है। यहाँ की कानून-व्यवस्था न केवल आम जनता की सुरक्षा से जुड़ी है, बल्कि यह राज्य की राजनीतिक छवि और विकास की गति को भी प्रभावित करती है। बीते कुछ वर्षों में राज्य पुलिस ने तकनीकी और प्रशासनिक स्तर पर अनेक परिवर्तन देखे हैं, पर क्या ये बदलाव जमीनी स्तर पर असरदार साबित हो पाए हैं? यह सवाल अब पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है।

मौजूदा स्थिति और चुनौतियाँ

उत्तर प्रदेश में पुलिस प्रशासन की मौजूदा स्थिति को देखते हुए एक दोहरी तस्वीर सामने आती है। एक ओर तकनीकी आधुनिकीकरण, साइबर क्राइम से निपटने की तैयारी और अपराधियों पर कार्रवाई में कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियाँ देखी गई हैं, तो दूसरी ओर मनबढ़ अधिकारियों की प्रवृत्ति, भ्रष्टाचार, और जनता का घटता विश्वास गंभीर चिंता के विषय बने हुए हैं।

प्रदेश के विभिन्न जिलों से हाल ही में सामने आए घटनाक्रम गोरखपुर में हिरासत में हुई संदिग्ध मौत, सहारनपुर में दलित परिवार पर अत्यधिक बल प्रयोग, लखनऊ में महिला से बदसलूकी का वीडियो जैसी हजारों घटनाएँ सोशल मीडिया पर वायरल हैं – इन घटनाओं ने पुलिस की संवेदनहीनता और जवाबदेही पर उत्तर प्रदेश पुलिस पर बड़े सवाल खड़े किए हैं।

तकनीकी और प्रशासनिक सुधार

राज्य सरकार ने हाल के वर्षों में पुलिस बल को आधुनिक बनाने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं:

साइबर थाने (Cyber Police Stations) की स्थापना लखनऊ, नोएडा, वाराणसी समेत 18 जिलों में की गई है, ताकि डिजिटल अपराधों की त्वरित जाँच हो सके।

मोबाइल फॉरेंसिक यूनिट्स (Mobile Forensic Units) को जिलास्तर पर तैनात किया गया है जिससे घटनास्थलों की वैज्ञानिक जाँच संभव हो रही है।

नई फॉरेंसिक लैबोरेटरी की स्थापना लखनऊ और कानपुर में हुई है, जिससे विवेचना की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। इसके अलावा, पुलिस प्रशासन में IPS और PPS अधिकारियों के तबादले नियमित रूप से किए जा रहे हैं, ताकि भ्रष्टाचार, राजनीतिक हस्तक्षेप और कार्य में निष्क्रियता को रोका जा सके। फिर भी, तबादले अक्सर राजनीतिक संतुलन साधने का साधन बनकर रह जाते हैं, जिससे इनका प्रभाव सीमित रह जाता है।

मनबढ़ अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई

राज्य में कुछ पुलिसकर्मी और अधिकारी मनमानी व क्रूरता की छवि गढ़ते दिखाई देते हैं। सरकार ने हाल में कुछ मामलों में सख्त रुख अपनाया है:

 वर्ष 2024 में अमेठी और अयोध्या में दो इंस्पेक्टरों को निलंबित किया गया क्योंकि वे हत्या के मामलों की विवेचना में घोर लापरवाही बरत रहे थे।

 एंटी करप्शन विंग द्वारा पिछले दो वर्षों में करीब 180 पुलिसकर्मियों के खिलाफ जाँच शुरू की गई है, जिन पर रिश्वत, अवैध वसूली और पक्षपात के आरोप लगे थे।

 बिहारीलाल मीणा समिति की सिफारिश पर थानों में CCTV अनिवार्यता लागू की गई, जिससे हिरासत में पूछताछ के दौरान पारदर्शिता बनी रह सके।

हालाँकि, यह प्रयास अभी बिखरे हुए और कुछ हद तक प्रतिक्रिया-आधारित हैं, जिन्हें एक स्पष्ट और दीर्घकालिक नीति में बदला जाना आवश्यक है।

प्रशिक्षण, नीतियाँ और सुधार की पहलें

उत्तर प्रदेश सरकार ने पुलिस सुधारों को लेकर कई योजनाएँ लागू की हैं:

‘पुलिस मित्र योजना’ के तहत समुदाय और पुलिस के बीच संवाद बढ़ाने की कोशिश की गई है।

 ‘सॉफ्ट स्किल ट्रेनिंग’, जिसमें थानेदारों को जनसंपर्क, संवेदनशीलता और महिला सुरक्षा पर प्रशिक्षित किया जा रहा है।

 जनसुनवाई ऐप और ऑनलाइन FIR जैसी पहलें नागरिकों को सीधे प्रशासन से जोड़ने का प्रयास हैं।

इन पहलों के माध्यम से कुछ बदलाव जरूर आए हैं, लेकिन प्रशिक्षण की गुणवत्ता, निष्पक्ष कार्रवाई और जवाबदेही तय करने की संरचना अब भी काफी कमजोर है। खासकर ग्रामीण इलाकों में थानों का बर्ताव औपनिवेशिक मानसिकता जैसा बना हुआ है।

जनता का विश्वास और पुलिस की साख

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में पुलिस पर लगे मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है। दूसरी ओर, अपराधों के विरुद्ध पुलिस की कार्रवाई दर में भी गिरावट देखी गई। इन आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि जनता और पुलिस के बीच की विश्वास की खाई गहरी होती जा रही है।

क्या है सुधार की राह?

1. समानांतर निगरानी तंत्र – पुलिस की कार्यप्रणाली की निगरानी के लिए स्वतंत्र नागरिक आयोग की आवश्यकता है जो शिकायतों का पारदर्शी निपटारा करे।

2. मानवाधिकार शिक्षा – प्रत्येक स्तर पर पुलिस बल को संवेदनशील बनाने के लिए मानवाधिकार आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम अनिवार्य हों।

3. राजनीतिक हस्तक्षेप पर नियंत्रण – तबादलों और पदस्थापन को पूरी तरह पारदर्शी और योग्यता आधारित बनाने की जरूरत है।

4. प्रदर्शन आधारित मूल्यांकन – पुलिसकर्मियों की पदोन्नति और पुरस्करण के लिए जनता की प्रतिक्रिया को भी एक मानदंड बनाना चाहिए।

उत्तर प्रदेश पुलिस आज एक चौराहे पर खड़ी है – जहाँ एक ओर तकनीकी प्रगति और नीतिगत सुधारों की पहल है, वहीं दूसरी ओर वास्तविक सुधार को रोकने वाली सिस्टम की जड़ता, राजनीतिक हस्तक्षेप और भीतरघात भी विद्यमान है। यदि राज्य सरकार और पुलिस नेतृत्व वास्तव में परिवर्तन लाना चाहते हैं, तो उन्हें सिर्फ तकनीकी सजावट नहीं, बल्कि मानसिकता और कार्यसंस्कृति में भी आमूलचूल बदलाव लाना होगा।

पुलिस का असली मूल्य उसकी न्यायप्रियता और संवेदनशीलता में निहित है, अगर वह नहीं बदली, तो कोई तकनीक, कोई नीति, और कोई तबादला पुलिस की साख को नहीं बचा सकेगा।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I