सुप्रीम कोर्ट ने रामनाथ मिश्रा को दी ज़मानत, इलाहाबाद हाईकोर्ट पर 43 स्थगनों के लिए नाराज़गी

सुप्रीम कोर्ट ने रामनाथ मिश्रा को तीन साल से अधिक हिरासत के बाद ज़मानत दी। हाईकोर्ट द्वारा 43 बार सुनवाई टालने पर जताई कड़ी नाराज़गी।

Aug 27, 2025 - 10:54
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सुप्रीम कोर्ट ने रामनाथ मिश्रा को दी ज़मानत, इलाहाबाद हाईकोर्ट पर 43 स्थगनों के लिए नाराज़गी
उच्च न्यायालय इलाहाबाद और सर्वोच्च न्यायालय

नई दिल्ली, 25 अगस्त 2025 सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम आदेश में रामनाथ मिश्रा @ रमनाथ मिश्रा को ज़मानत देने का निर्देश दिया। अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) से जुड़े मामलों में इतनी बार स्थगन (Adjournment) गंभीर चिंता का विषय है।

पीठ की टिप्पणी

चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया बी.आर. गवई और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की पीठ ने कहा: हम बार-बार कह चुके हैं कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों को अदालतों को अत्यंत तेजी से निपटाना चाहिए। हाईकोर्ट से अपेक्षा नहीं की जाती कि वह ऐसे मामलों को लंबित रखे और बार-बार तारीख़ पर तारीख़ देकर कोई ठोस कदम न उठाए।

 सह-आरोपी का संदर्भ

पीठ ने यह भी याद दिलाया कि इसी मामले में मई 2025 में एक सह-आरोपी को ज़मानत दी गई थी, क्योंकि तब हाईकोर्ट ने उसकी ज़मानत अर्जी 27 बार स्थगित की थी। सुप्रीम कोर्ट ने तब भी चेतावनी दी थी कि हाईकोर्ट इस तरह की याचिकाओं को अनिश्चितकाल तक लंबित न रखें।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामला इससे भी अधिक गंभीर है।

 ज़मानत आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी को पहले ही साढ़े तीन साल से अधिक हिरासत में रखा जा चुका है। इसलिए उसे ज़मानत दी जाती है। आदेश इन मामलों पर लागू होगा:

 स्पेशल केस नंबर 02/2022 (FIR RC0072020A0004 of 2020)

 स्पेशल केस नंबर 01/2023 (FIR RC0072020A0005 of 2020)

 RC0072022A0006 of 2022

ज़मानत की शर्तें संबंधित ट्रायल कोर्ट के समक्ष पूरी करनी होंगी। अब सह-आरोपी समेत दोनों को ज़मानत मिल चुकी है।

अदालत में पक्षकार

 याचिकाकर्ता की ओर से: वरिष्ठ अधिवक्ता यशराज सिंह देओरा, अधिवक्ता हर्षवर्धन झा, युगंधरा पवार झा, अमन पाठक और प्रीयेेश मोहन श्रीवास्तव।

 सीबीआई की ओर से: अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.डी. संजय, अधिवक्ता मुकेश कुमार मारोरिया, अक्षय अमृतांशु, प्रनीत प्रणव और माधव सिन्हल।

 निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़े मामलों को अदालतों को प्राथमिकता के साथ निपटाना चाहिए। साथ ही कहा कि लंबे समय तक ज़मानत अर्जियों को लंबित रखना संविधान द्वारा प्रदत्त स्वतंत्रता के अधिकार को कमजोर करता है।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I