कोलकाता में गांधी जयंती पर ‘गांधी और हमारा समय’ विषय पर राष्ट्रीय परिचर्चा

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, हरिजन सेवक संघ और पूर्व कोलकाता गांधी स्मारक समिति द्वारा एक परिचर्चा आयोजित हुई। परिचर्चा में वक्ताओं ने कहा कि गांधी केवल इतिहास नहीं बल्कि आज और भविष्य की दिशा दिखाने वाली जीवित चेतना हैं। उपभोक्तावाद, हिंसा और असमानता के दौर में गांधी की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है।

Oct 4, 2025 - 00:09
Oct 4, 2025 - 00:11
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कोलकाता में गांधी जयंती पर ‘गांधी और हमारा समय’ विषय पर राष्ट्रीय परिचर्चा
राष्ट्रीय परिचर्चा में उपस्थित वक्तागण

कोलकाता, 2 अक्तूबर 2025 महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, क्षेत्रीय केंद्र कोलकाता, हरिजन सेवक संघ और पूर्व कोलकाता गांधी स्मारक समिति के संयुक्त तत्वावधान में महात्मा गांधी की 156वीं जयंती पर ऐतिहासिक बेलेघाटा गांधी भवन में आयोजित कार्यक्रम में गांधीजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण, सर्वधर्म प्रार्थना और विश्वविद्यालय के कुलगीत से एक राष्ट्रीय परिचर्चा का आयोजन हुआ, जिसका मुख्य विषय था ‘गांधी और हमारा समय’।

कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका डॉ. चित्रा माली ने किया। उन्होंने स्वागत भाषण में कहा कि आज जब समाज हिंसा, उपभोक्तावाद और नैतिक पतन के दौर से गुजर रहा है, ऐसे समय में गांधी को याद करना और उनके विचारों को वर्तमान से जोड़ना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने आगे कहा कि गांधी के महात्मा के रूप में प्रतिष्ठित होने के बाद किसानों और ग्रामीण जनता में उनके प्रति आस्था भावनात्मक और आध्यात्मिक स्तर पर गहराता गया। गांधी के जीवन से कई किंवदंतियां जुड़ती गईं, जैसे वे जिस इलाके में जाते थे वहाँ वर्षा और अच्छी फसल होती थी, या गांधी की बात न मानने वाले लोगों के साथ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ घटती थीं।

गांधी की परंपरा और मूल्य पर अपना वक्तव्य रखते हुए अखिल भारतीय प्राकृतिक चिकित्सा परिषद के महासचिव डॉ. नरेंद्र प्रताप सिंह ने गांधी को उस परंपरा का उत्तराधिकारी बताया, जिसमें बुद्ध, कृष्ण, विवेकानंद और पतंजलि आते हैं। गांधी ने पतंजलि के पाँच यम अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को अपने जीवन का आधार बनाया। गांधी के लिए स्वाध्याय केवल पढ़ाई या डिग्री नहीं था, बल्कि आत्म-चेतना और आत्मसाधना की प्रक्रिया थी। विश्वविद्यालय के गांधी एवं शांति अध्ययन के स्नातकोत्तर के छात्र सुशील कुमार ने कहा कि आज जब समाज उपभोक्तावाद और प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में लगा हुआ है। वैश्विक स्तर पर युद्ध, हिंसा, जलवायु संकट और असमानता जैसी चुनौतियाँ बढ़ रही हैं। ऐसे समय में गांधी का चिंतन हमें याद दिलाता है कि राजनीति का लक्ष्य सेवा है सत्ता नहीं। समाज का आधार समानता और सहयोग है। अर्थव्यवस्था का उद्देश्य शोषण नहीं न्यायपूर्ण विवरण है और गांधी की दृष्टि में राजनीति सेवा और समाज सुधार का माध्यम था, न कि सत्ता प्राप्ति का साधन। अगले वक्ता आकाश गुप्ता ने कहा कि आज जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), सूचना का संकट, तीव्र उपभोक्तावाद और युद्ध जैसे खतरे हैं, तब गांधी के सिद्धांत हमारे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं। 

लाल बाबा कॉलेज के प्राचार्य डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि आज के सोशल मीडिया और छोटे-छोटे ‘रील संस्कृति’ के जमाने में गांधी के विचारों को स्थाई बनाए रखने की चुनौती और भी बढ़ गई है। इसके लिए शिक्षा और विवेकपूर्ण संवाद ही सबसे प्रभावी साधन हैं। 

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, क्षेत्रीय केंद्र कोलकाता के प्रभारी डॉ. अमित राय ने कहा,  "गांधी कोई स्मारक नहीं, बल्कि एक जीवन शैली हैं। यदि प्रेम और अहिंसा को जीवन से निकाल दिया जाए तो जीना असंभव है। इसका मतलब है कि गांधी हर व्यक्ति के भीतर जीवित हैं। हमें केवल उस चेतना को पहचानने और जीने की जरूरत है। गांधी को केवल प्रतिमा या ऐतिहासिक व्यक्तित्व तक सीमित नहीं किया जा सकता, बल्कि उन्हें आज अपने अंदर के आलोचनात्मक विवेक और मानवीय संवेदनाओं में पहचानने की जरूरत है। उन्होंने आगे कहा कि गांधी की सबसे बड़ी उपलब्धि यही थी कि उन्होंने किसानों, मजदूरों और आम आदमी को भी स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ा। इससे आज़ादी का संघर्ष सीमित अभिजन या हिंसक साधनों के बजाय व्यापक अहिंसक आंदोलन बना।"

परिचर्चा में समापन वक्तव्य देते हुए हरिजन सेवक संघ और पूर्व कोलकाता गांधी स्मारक समिति के अध्यक्ष डॉ. शंकर कुमार सान्याल ने कहा कि गांधी का महत्व केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया ने उन्हें मान्यता दी है। गांधी का जीवन ही उनका सबसे बड़ा संदेश था – सादगी और सत्य के पथ पर चलना।

गांधी का कहना था कि जब करोड़ों भारतीय गरीब हैं, तब वे खुद विलासिता का जीवन नहीं जी सकते। उनका उद्देश्य किसी को हराना नहीं था, बल्कि सत्य को स्वीकार कराना था। डॉ. सान्याल ने इसी क्रम में बताया कि 18 से 21 नवंबर 2025 को दिल्ली में ‘गांधियन यूथ कॉन्फ्रेंस’ आयोजित होगा, जिसमें देशभर से लगभग 500 युवा शामिल होंगे। सम्मेलन का उद्घाटन राष्ट्रपति करेंगे और समापन प्रधानमंत्री करेंगे। इसमें गांधी के जीवन, उनके विचार और आज के संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता पर चर्चा होगी। उन्होंने विश्वविद्यालय के प्रभारी डॉ. अमित राय से विश्वविद्यालयों के 4-5 छात्र प्रतिनिधियों को आयोजन में सहभागिता करने के लिए नाम देने का सुझाव दिया है, ताकि युवा पीढ़ी गांधी के आदर्शों से प्रेरित हो सके।

इस कार्यक्रम से यह संदेश दिया गया कि गांधी केवल भारतीय इतिहास तक सीमित नहीं हैं, बल्कि एक वैश्विक चेतना हैं, जिन्हें नए युग में पुनः जीने और समझने की आवश्यकता है।

कार्यक्रम का समापन गांधी जी के प्रिय भजन  ‘वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ परायी जाणे रे’  के सामूहिक गान से हुआ। 

इस अवसर पर उपस्थित विशिष्ट अतिथियों में शामिल थे अमलानज्योति साहा, पश्चिम बंगाल सामाजिक सेवा के विशेष सचिव एवं पदेन निदेशक (कार्यकारी), पुरातत्व एवं संग्रहालय निदेशालय, आई एंड सीए विभाग, पश्चिम बंगाल सरकार, प्रोफेसर डॉ. माणिक भट्टाचार्य, कलकत्ता प्रेस क्लब और समिति के कार्यकारी अध्यक्ष स्नेहासिस सूर, कोलकाता नगर निगम की पार्षद अलकनंदा दास, पापरी सरकार, जयंत नाथ, चंचल दास, शंकर जाना, विश्वविद्यालय के अनुभाग अधिकारी डॉ. आलोक सिंह, सहायक सुकेन शिकारी, विश्वविद्यालय के छात्र एवं अन्य लोग उपस्थित थे।

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