क्षेत्रीय केंद्र कोलकाता में हिंदी दिवस परिचर्चा : सह-अस्तित्व, संवाद और समावेशिता पर जोर
कोलकाता, 15 सितंबर 2025। हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित परिचर्चा में प्राध्यापकों और विद्यार्थियों ने हिंदी की वर्तमान स्थिति, भविष्य और सह-अस्तित्व की भूमिका पर विचार रखा। वक्ताओं ने कहा कि हिंदी केवल दिवस विशेष तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन और व्यवहार की सहज भाषा बने।

कोलकाता, 15 सितंबर 2025। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के क्षेत्रीय केंद्र कोलकाता में आज हिंदी दिवस के अवसर पर एक विचारपूर्ण परिचर्चा का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम केंद्र प्रभारी डॉ. अमित राय के निर्देशन में आईसीटी कक्ष में आयोजित हुआ, जिसमें प्राध्यापकगण, विद्यार्थियों ने सक्रिय भागीदारी की।
परिचर्चा का आरंभ प्राध्यापक डॉ. अभिलाष के वक्तव्य से हुआ। उन्होंने कहा कि हिंदी दिवस केवल एक अनुष्ठानिक दिवस नहीं है, बल्कि हिंदी को जीने और आत्मसात करने का अवसर है। उन्होंने जोर दिया कि हिंदी की मजबूती तभी संभव है जब हम उसे अपने दैनंदिन जीवन और प्रशासनिक कार्यों में अपनाएँ।
गांधी एवं शांति अध्ययन, स्नातकोत्तर के विद्यार्थी सुशील कुमार ने परिचर्चा में इस बात पर बल दिया कि हिंदी का विकास अन्य भारतीय भाषाओं के साथ सहयोग और संवाद से ही संभव है। इसलिए हिंदी को सह-अस्तित्व और परस्पर आदान-प्रदान की भाषा के रूप में विकसित करना आवश्यक है।
प्राध्यापक डॉ. चित्रा माली ने हिंदी की वर्तमान स्थिति और भविष्य पर विस्तृत विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि हिंदी को केवल दिवस विशेष तक सीमित कर देना उचित नहीं है। हिंदी हमारी संवेदना की भाषा है, इसे औपचारिक आयोजन का एजेंडा न बनाकर जीवन और व्यवहार की सहज भाषा के रूप में देखना चाहिए।
डॉ. माली ने स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद हिंदी को राजभाषा घोषित करने की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और 1965 के भाषा-विवाद का संदर्भ देते हुए स्पष्ट किया कि जब भी किसी भाषा को अनिवार्य रूप से लागू किया जाता है, तब समस्या पैदा होती है। उन्होंने दक्षिण भारत के संदर्भ में कहा कि यद्यपि वहाँ हिंदी-विरोध के आंदोलन हुए, फिर भी हिंदी प्रचार समितियों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान ने संचार का पुल बनाया। डॉ. माली ने आगे कहा कि हिंदी का प्रचार-प्रसार तभी प्रभावी होगा जब हम इसे सहज और लचीला बनाएँ। हिंदी में अन्य भाषाओं बांग्ला, मराठी, तमिल, तेलुगु के शब्दों को आत्मसात करके हम इसे और समृद्ध कर सकते हैं। हिंदी के प्रति लोगों का स्वाभाविक लगाव तब और बढ़ेगा जब इसे संवेदना और संप्रेषण की भाषा के रूप में प्रस्तुत करेंगे।
विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय केंद्र, कोलकाता के प्रभारी डॉ. अमित राय ने अपने वक्तव्य में विश्व हिंदी सम्मेलन और राजभाषा पखवाड़े जैसे आयोजनों के आलोचनात्मक मूल्यांकन करने की बात कही, जिससे ऐसे आयोजन केवल मात्र औपचारिकता न बनकर रह जाएँ, बल्कि वास्तविक प्रभाव डालें। आगे उन्होंने जोर देकर कहा कि हिंदी को संस्कृतनिष्ठ या कृत्रिम बनाने की बजाय एक समावेशी, सहज और आधुनिक भाषा के रूप में विकसित किया जाए।
परिचर्चा का समापन इस निष्कर्ष के साथ हुआ कि हिंदी दिवस केवल स्मरण का दिन नहीं बल्कि भाषा, संस्कृति और राष्ट्रीय एकता के पुनर्मूल्यांकन का अवसर है। हिंदी आज डिजिटल युग में वैश्विक स्तर पर उभरती शक्ति है, लेकिन उसकी असली मजबूती तभी संभव है जब वह अन्य भारतीय भाषाओं के साथ सह-अस्तित्व में विकसित हो। परिचर्चा की सफलता में डॉ. आलोक कुमार, सुखेन, सुषमा का सहयोग रहा।
What's Your Reaction?






