नेपाल का युवा आंदोलन: सोशल मीडिया बैन से उठी लोकतंत्र की पुकार

नेपाल में सोशल मीडिया प्रतिबंध और भ्रष्टाचार के खिलाफ़ युवाओं का आक्रोश सड़कों पर उतर आया है। बेरोजगारी, महंगाई और राजनीतिक अस्थिरता ने आंदोलन को और तेज़ कर दिया है। क्या नेपाल का लोकतंत्र इस अग्निपरीक्षा से गुजर पाएगा?

Sep 10, 2025 - 14:25
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नेपाल का युवा आंदोलन: सोशल मीडिया बैन से उठी लोकतंत्र की पुकार
नेपाल का युवा आंदोलन

नेपाल का युवा आंदोलन : लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा

नेपाल की सड़कों पर इन दिनों उमड़ती भीड़, जलते हुए टायर और गूंजते नारे सिर्फ किसी एक सरकारी नीति के खिलाफ़ प्रदर्शन नहीं हैं। यह उस पीढ़ी की बेचैनी का विस्फोट है, जिसने लोकतंत्र को सपना बनाकर जिया, लेकिन उसे वास्तविकता में छलावा पाया। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध इसका तात्कालिक कारण अवश्य है, किंतु आंदोलन की जड़ें कहीं गहरी हैं- भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई और लगातार बदलती सरकारों से उपजी असुरक्षा।

 नागरिक स्वतंत्रता और डिजिटल युग की चेतना

फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्मों पर पाबंदी ने युवाओं को सीधे उनके अस्तित्व और पहचान पर प्रहार जैसा महसूस कराया। यह वही पीढ़ी है जो लोकतंत्र को केवल मतदान तक सीमित नहीं मानती, बल्कि उसे अभिव्यक्ति, संवाद और भागीदारी का अधिकार मानती है। डिजिटल युग की यह चेतना अब सड़कों पर उतरकर अपनी जगह मांग रही है।

भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता का दंश

नेपाल की राजनीति पिछले दो दशकों से सत्ता-संघर्ष में उलझी रही है। बार-बार सरकार बदलना, नीतिगत निरंतरता का अभाव और नेताओं का आत्मकेंद्रित व्यवहार आम जनता में गहरे असंतोष का कारण बना। जब पारंपरिक दल नेपाली कांग्रेस, माओवादी और कम्युनिस्ट सभी जनता की आकांक्षाओं को दरकिनार कर अपने स्वार्थों में डूबे रहे, तब यह स्वाभाविक था कि युवाओं का विश्वास व्यवस्था से उठे।

आर्थिक संकट और पलायन की विवशता

नेपाल का युवा न सिर्फ़ बेरोज़गारी और महंगाई से त्रस्त है, बल्कि उसे अवसर की तलाश में बड़े पैमाने पर विदेश पलायन करना पड़ रहा है। अपने ही देश में संभावनाएँ न देख पाना राष्ट्रीय अस्मिता के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यही असंतोष आंदोलन को और व्यापक बनाता है।

 राजशाही की वापसी की गूँज

दिलचस्प यह है कि इस आंदोलन में लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की माँग के साथ-साथ राजशाही की वापसी की आवाज़ भी सुनाई दे रही है। इसका सीधा अर्थ यह है कि जनता और विशेषकर युवा, स्थिरता और सुशासन की तलाश में किसी भी विकल्प को अपनाने को तैयार हैं, यदि यह विकल्प अतीत की ओर लौटने का हो। यह लोकतांत्रिक राजनीति के लिए गहरी चेतावनी है।

 हिंसा और अविश्वास की परिणति

संसद, राष्ट्रपति भवन और नेताओं के आवास तक पर हमले, दर्जनों मौतें और सैकड़ों घायल होना बताता है कि आंदोलन ने एक खतरनाक मोड़ ले लिया है। यह केवल सरकार विरोध नहीं, बल्कि पूरे राजनीतिक ढाँचे के प्रति अविश्वास का प्रदर्शन है।

आगे का रास्ता

नेपाल के लिए यह आंदोलन लोकतंत्र की अग्निपरीक्षा है। यदि सरकार और राजनीतिक दल समय रहते युवाओं की बात नहीं सुनते, पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाते, तो यह असंतोष और गहरा संकट बन सकता है।

आज आवश्यकता है

1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान और सोशल मीडिया प्रतिबंध की तत्काल समीक्षा।

2. भ्रष्टाचार-नियंत्रण की ठोस रणनीति और पारदर्शी शासन व्यवस्था।

3. आर्थिक पुनर्निर्माण की नीति, जिसमें युवाओं को अवसर और स्वरोज़गार के विकल्प दिए जाएँ।

4. राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए दलों में संवाद और नीतिगत निरंतरता।

नेपाल का यह आंदोलन केवल एक पड़ोसी देश की राजनीतिक हलचल नहीं है, बल्कि पूरी दक्षिण एशिया के लोकतंत्रों के लिए सबक है। लोकतंत्र केवल चुनावी अनुष्ठान नहीं होता; यह नागरिकों की भागीदारी, विश्वास और अवसरों पर आधारित होता है। यदि युवाओं की आवाज़ को अनसुना किया जाएगा, तो लोकतंत्र की नींव कमजोर होगी। नेपाल की गलियों में उठती यह पुकार वस्तुतः एक नई पीढ़ी की घोषणा है, हम चुप नहीं रहेंगे।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I