निठारी कांड में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: पंढेर और कोली की बरी पर सीबीआई और यूपी सरकार की अपील खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने निठारी हत्याकांड में मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली की बरी के खिलाफ सीबीआई और यूपी सरकार की अपील खारिज कर दी, जिससे इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रहा। कोर्ट ने सबूतों की कमी और "संदेह का लाभ" के आधार पर यह निर्णय दिया, जिससे पीड़ित परिवारों में गहरा असंतोष है।

2006 के बहुचर्चित निठारी हत्याकांड में सुप्रीम कोर्ट ने मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली को बरी करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। कोर्ट ने 30 जुलाई 2025 को सुनाए गए निर्णय में सीबीआई और उत्तर प्रदेश सरकार की विशेष अपील को खारिज कर दिया। यह फैसला मुख्य रूप से ‘संदेह का लाभ’ और जांच में गंभीर खामियों पर आधारित है। पीड़ित परिवारों ने इसे न्याय से विश्वास उठने वाला फैसला बताया है।
पृष्ठभूमि:
2006 में नोएडा के निठारी गांव में बच्चों सहित कई लोगों की रहस्यमय हत्या, बलात्कार और मानव अंग मिलने की सनसनीखेज घटनाएं सामने आई थीं।
इसके बाद मोनिंदर सिंह पंढेर और उसका नौकर सुरेंद्र कोली गिरफ्तार किए गए।
न्यायिक प्रक्रिया:
ट्रायल कोर्ट ने दोनों को कई मामलों में दोषी ठहराते हुए मृत्युदंड सुनाया था।
परंतु, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 16 अक्तूबर 2023 को अभियोजन की विफलता और सबूतों की कमी के आधार पर दोनों को दोषमुक्त कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
30 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखते हुए सीबीआई और उत्तर प्रदेश सरकार की अपील को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने माना कि "संदेह का लाभ" आरोपी को मिलना चाहिए और साक्ष्य अपर्याप्त हैं।
पीड़ितों का पक्ष:
पीड़ित परिवारों ने फैसले पर गहरी निराशा जताई है। उनका कहना है कि यह निर्णय न्याय प्रणाली में उनके भरोसे को कमजोर करता है।
निठारी कांड भारतीय न्याय व्यवस्था की जटिलताओं, जांच एजेंसियों की सीमाओं और 'संदेह का लाभ' जैसे सिद्धांतों की व्यावहारिक चुनौती को रेखांकित करता है। यह निर्णय जहाँ कानूनी प्रक्रिया की शुद्धता पर जोर देता है, वहीं पीड़ित परिवारों के लिए एक लंबे संघर्ष की समाप्ति नहीं, बल्कि एक गहरी पीड़ा का कारण भी है।
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