Fake SC/ST Case: महिला को 3 साल की सजा | लखनऊ कोर्ट का बड़ा फैसला

लखनऊ की एससी/एसटी एक्ट अदालत ने फर्जी मुकदमा दर्ज कराने की दोषी महिला को तीन साल की जेल की सजा सुनाई। कोर्ट ने जिलाधिकारी को आदेश दिया कि एफआईआर मात्र पर राहत राशि न दी जाए।

Nov 1, 2025 - 07:41
Nov 1, 2025 - 07:51
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Fake SC/ST Case: महिला को 3 साल की सजा | लखनऊ कोर्ट का बड़ा फैसला
फर्जी एससी/एसटी एक्ट मुकदमा करने पर महिला को 3 साल की सजा

लखनऊ की एससी/एसटी एक्ट की विशेष अदालत ने फर्जी मुकदमा दर्ज कराने की दोषी महिला ममता को तीन वर्ष के कारावास की सजा सुनाई है। महिला ने विपक्षी किसान नेताओं के खिलाफ लूट व एससी/एसटी एक्ट के तहत झूठा मामला दर्ज कराया था। विवेचना में मामला असत्य साबित हुआ। अदालत ने जिलाधिकारी को आदेश दिया है कि यदि महिला को राहत राशि दी गई हो तो उसे तत्काल वापस लिया जाए। साथ ही यह भी निर्देश दिया गया कि भविष्य में एफआईआर के आधार पर राहत राशि न दी जाए, बल्कि केवल तब दी जाए जब मामला प्रथम दृष्टया सिद्ध हो।

क्या है मामला?

लखनऊ, 1 नवम्बर। एससी/एसटी एक्ट का झूठा केस दर्ज कराने पर राजधानी लखनऊ की एक महिला को तीन वर्ष की सजा भुगतनी पड़ेगी। विशेष एससी/एसटी न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी की अदालत ने अभियुक्ता ममता को दोषी करार देते हुए तीन साल का कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई है।

अभियोजन के अनुसार, ममता ने थाना माल क्षेत्र में किसान नेता अर्जुन सिंह, विनोद कुमार और केशन के खिलाफ लूट और एससी/एसटी एक्ट का मुकदमा दर्ज कराया था। जाँच के दौरान पुलिस को पता चला कि यह पूरा मामला भाकियू (लोकतांत्रिक) गुट के तहसील अध्यक्ष विष्णु पाल के कहने पर दर्ज कराया गया था।

दरअसल, विष्णु पाल और अन्य के खिलाफ अर्जुन सिंह गुट की महिला कार्यकर्ता आरती ने पहले से ही दहेज उत्पीड़न और जान से मारने की धमकी का केस दर्ज किया था। उसी रंजिश में ममता ने प्रतिशोध स्वरूप यह फर्जी मुकदमा दर्ज कराया। स्वतंत्र गवाहों के बयान और साक्ष्यों से यह साबित हुआ कि पूरी घटना मनगढ़ंत और द्वेषवश थी।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि “झूठे मुकदमे न केवल कानून की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं, बल्कि निर्दोष लोगों के जीवन को भी प्रभावित करते हैं।”

विशेष न्यायाधीश ने एससी/एसटी अत्याचार निवारण नियमावली 1995 की व्याख्या करते हुए जिलाधिकारी लखनऊ को निर्देश दिया है कि भविष्य में केवल एफआईआर दर्ज होने मात्र पर राहत राशि न दी जाए। राहत की संपूर्ण राशि तभी दी जाए जब जाँच के बाद आरोपपत्र दाखिल हो जाए और मामला प्रथम दृष्टया सिद्ध हो।

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