BNSS की धारा 35 के नोटिस व्हात्सप्प पर नहीं, केवल शारीरिक रूप से दिए जाएं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि BNSS की धारा 35 के तहत पुलिस द्वारा जारी नोटिस केवल भौतिक (शारीरिक) रूप से ही दिए जा सकते हैं, व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से नहीं। कोर्ट ने कहा कि ऐसे नोटिस व्यक्ति की आज़ादी को प्रभावित करते हैं, इसलिए सेवा की विधि विधिक प्रक्रिया और अनुच्छेद 21 के अनुरूप होनी चाहिए।

Jul 31, 2025 - 10:26
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BNSS की धारा 35 के नोटिस व्हात्सप्प  पर नहीं, केवल शारीरिक रूप से दिए जाएं: सुप्रीम कोर्ट
व्हात्सप्प

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 35 के तहत पुलिस द्वारा जारी नोटिस केवल भौतिक (शारीरिक) रूप से ही दिए जाने चाहिए। व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से सेवा वैध नहीं मानी जाएगी, क्योंकि इसका सीधा संबंध व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से है। कोर्ट ने हरियाणा सरकार की यह दलील खारिज कर दी कि संसाधनों की बचत के लिए ई-नोटिस की अनुमति दी जाए।

फैसले की पृष्ठभूमि:

सुप्रीम कोर्ट ने 16 जुलाई 2025 को दिए गए निर्णय में हरियाणा राज्य की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने BNSS की धारा 35 के नोटिस को व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भेजने की अनुमति मांगी थी।

कोर्ट की टिप्पणी:

कोर्ट ने कहा कि धारा 35 के नोटिस का उल्लंघन गिरफ्तारी में बदल सकता है, इसलिए यह नोटिस केवल भौतिक रूप से ही दिया जाना चाहिए, ताकि व्यक्ति की आज़ादी (Article 21) की रक्षा हो सके।

 न्यायिक बनाम कार्यकारी प्रक्रिया:

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कोर्ट द्वारा जारी समन एक न्यायिक कार्य है, जबकि पुलिस द्वारा जारी नोटिस एक कार्यकारी कार्य है। दोनों के लिए प्रक्रिया एक समान नहीं हो सकती।

हरियाणा की दलीलें अस्वीकृत:

हरियाणा सरकार ने BNSS की धारा 64(2), 71 और 530 का हवाला देते हुए ई-सेवा की अनुमति मांगी, पर कोर्ट ने कहा कि ये धाराएं केवल न्यायालयीन कार्यवाहियों पर लागू होती हैं, जांच पर नहीं।

अमिकस क्यूरी सिद्धार्थ लूथरा का तर्क:

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने तर्क दिया कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के लिए नोटिस की सेवा व्यक्तिगत और शारीरिक रूप से ही होनी चाहिए, जिसे कोर्ट ने स्वीकार किया।

 विधायी मंशा का सम्मान:

कोर्ट ने कहा कि जहां BNSS इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की अनुमति देता है (जैसे धारा 94, 193), वहां यह स्पष्ट रूप से उल्लेखित है। धारा 35 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए इसे जोड़ना विधेयक की भावना के विपरीत होगा।

यह निर्णय भारत में डिजिटलीकरण बनाम संवैधानिक अधिकार की बहस में एक संतुलन स्थापित करता है। सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्ति की स्वतंत्रता को सर्वोपरि मानते हुए यह संदेश दिया कि तकनीक की सुविधा व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की कीमत पर नहीं हो सकती।

 

 

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I