कंस्ट्रक्शन साइट से मेडिकल कॉलेज तक: आदिवासी युवक शुभम सबर की संघर्ष गाथा

ओडिशा के खुर्दा जिले के आदिवासी युवक शुभम सबर ने बेंगलुरु की कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी करते हुए भी NEET पास किया। पहली ही कोशिश में मेडिकल कॉलेज में दाखिला पाकर वह अपनी पंचायत का पहला डॉक्टर बनने जा रहे हैं।

Aug 31, 2025 - 22:15
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कंस्ट्रक्शन साइट से मेडिकल कॉलेज तक: आदिवासी युवक शुभम सबर की संघर्ष गाथा
शुभम सबर (इमेज-फाइल फोटो)

NEET पास कर पहली कोशिश में हासिल किया मेडिकल कॉलेज में दाखिला, पंचायत का पहला डॉक्टर बनने का सपना

भुवनेश्वर/बेंगलुरु। जीवन की कठिनाइयों और आर्थिक अभावों के बीच संघर्ष करते हुए ओडिशा के खुर्दा जिले के छोटे से गाँव मुदुलिधियां के शुभम सबर ने वह कर दिखाया, जिसकी हर ग्रामीण परिवार को आस रहती है। तीन महीने पहले तक बेंगलुरु की एक कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी कर रहे शुभम ने जब NEET-UG परीक्षा पास करने की खबर सुनी तो उनके आँसू छलक पड़े।

मैं अपने आँसू नहीं रोक पाया। मैंने माता-पिता से कहा कि मैं डॉक्टर बनूँगा।” – शुभम सबर

शुभम ने अपनी पहली ही कोशिश में एसटी कैटेगरी में 18,212वीं रैंक हासिल की और अब उन्हें बरहामपुर मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल में एमबीबीएस में दाखिला मिल गया है। अपनी पंचायत से वह पहले डॉक्टर होंगे।

 गरीबी के बीच पढ़ाई का सफर

किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले शुभम घर के सबसे बड़े बेटे हैं। माता-पिता के पास थोड़ी-सी जमीन थी और वे कड़ी मेहनत से परिवार का भरण-पोषण करते थे। आर्थिक संकट के बावजूद शुभम ने दसवीं में 84% अंक हासिल किए। शिक्षकों के सुझाव पर वे भुवनेश्वर के बीजेबी कॉलेज में पढ़ने गए और बारहवीं में 64% अंक प्राप्त किए।

यहीं से उन्होंने डॉक्टर बनने का निश्चय किया और बरहामपुर में NEET की कोचिंग शुरू की। परीक्षा देने के बाद वे बेंगलुरु मजदूरी करने चले गए ताकि कोचिंग और एडमिशन खर्च जुटा सकें।

सपनों की उड़ान

अब शुभम का लक्ष्य स्पष्ट है पढ़ाई पूरी कर पंचायत का पहला डॉक्टर बनना और अपनी समुदाय की सेवा करना। उनकी सफलता न सिर्फ मेहनत और संकल्प का परिणाम है, बल्कि यह देश के लाखों संघर्षरत युवाओं के लिए प्रेरणा भी है।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I