अग्रिम जमानत के लिए पहले सत्र न्यायालय जाना जरूरी नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश रद्द किए
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आरोपी को अग्रिम जमानत के लिए पहले सत्र न्यायालय में याचिका दाखिल करने की बाध्यता नहीं है। आरोपी सीधे उच्च न्यायालय का रुख कर सकता है, बशर्ते मामले में ‘विशेष परिस्थितियां’ मौजूद हों जिनका मूल्यांकन संबंधित न्यायाधीश करेंगे। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो आदेश रद्द कर मामले नए सिरे से सुनवाई के लिए वापस भेजे और कहा कि उच्च न्यायालय को पहले यह जांच करनी चाहिए थी कि क्या ऐसी विशेष परिस्थितियां वास्तव में थीं।

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला देते हुए स्पष्ट किया है कि किसी आरोपी के लिए अग्रिम जमानत की याचिका दाखिल करने से पहले सत्र न्यायालय जाना अनिवार्य नहीं है। यानी आरोपी सीधे उच्च न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए याचिका दाखिल कर सकता है, बशर्ते उस मामले में "विशेष परिस्थितियाँ" हों, जिनका आकलन संबंधित न्यायाधीश करेगा।
यह टिप्पणियां न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 482 के तहत दायर अग्रिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कीं। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दो आदेश रद्द कर दिए क्योंकि हाईकोर्ट ने यह जांच नहीं की कि क्या सीधे उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र लागू किया जा सकता है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दो पुराने निर्णयों का हवाला दिया:
- कनुमूरी रघुरामा कृष्णम राजू बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2021)
- अरविंद केजरीवाल बनाम प्रवर्तन निदेशालय (2024)
अदालत ने कहा कि यह संबंधित न्यायाधीश का विवेक होता है कि वे तथ्यों के आधार पर तय करें कि क्या 'विशेष परिस्थितियाँ' मौजूद हैं जो सीधे उच्च न्यायालय में अग्रिम जमानत की याचिका दाखिल करने को उचित ठहराएं।
चूंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस महत्वपूर्ण परीक्षण को नहीं किया, सुप्रीम कोर्ट ने मामले वापस हाईकोर्ट भेज दिए ताकि वह पुनः तथ्यों और कानून के अनुसार याचिकाओं की सुनवाई करे। कोर्ट ने आदेश दिया कि अग्रिम जमानत याचिकाओं पर “यथासंभव शीघ्र” विचार किया जाए क्योंकि यह उस प्रक्रिया का दूसरा दौर है।
यह निर्णय न्यायप्रणाली में अग्रिम जमानत की प्रक्रिया को लेकर स्पष्टता और न्यायिक विवेकाधिकार को मान्यता देता है, जिससे अनावश्यक कोर्ट स्तरों में जाने की बाध्यता नहीं रहेगी।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि अग्रिम जमानत एक असाधारण शक्ति है, जिसे केवल विशेष और असाधारण परिस्थितियों में ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। यह अधिकार अपराध की गंभीरता, सबूतों की प्रकृति और आरोपी की कानूनी जरूरतों के संतुलन पर आधारित होता है।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- अग्रिम जमानत के लिए पहले सत्र न्यायालय जाना जरूरी नहीं।
- उच्च न्यायालय को यह जांच करनी चाहिए कि क्या सीधे उसका अधिकार क्षेत्र लागू हो सकता है।
- 'विशेष परिस्थितियाँ' का मूल्यांकन न्यायाधीश करेंगे।
- सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो आदेश रद्द कर पुनर्विचार के लिए मामले वापस भेजे।
- अग्रिम जमानत असाधारण और विशेष स्थितियों में ही दी जानी चाहिए।
यह फैसला भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत अग्रिम जमानत प्रक्रिया में एक दिशा-निर्देश जैसा है और न्यायपालिका के त्वरित, प्रभावी और न्यायसंगत निर्णय लेने को प्रोत्साहित करता है।
अगर आप चाहें तो मैं इस फैसले के कानूनी पहलुओं, इससे जुड़ी प्रक्रिया की व्याख्या, या सुप्रीम कोर्ट के अन्य हालिया अग्रिम जमानत संबंधी आदेशों पर भी विवरण दे सकता हूँ।
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