हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी: डीएम-एसपी रहें हद में, अदालत की प्रतिष्ठा बनाने-बिगाड़ने का भ्रम न पालें
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीएम और एसपी को चेतावनी दी कि वे अपनी सीमा में रहें और यह भ्रम न पालें कि वे अदालत की प्रतिष्ठा को बना या बिगाड़ सकते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि डीएम जैसे अधिकारियों से निपटने और अपनी गरिमा बनाए रखने के लिए वह उनके आश्वासनों पर निर्भर नहीं है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीएम और एसपी को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि वे अपनी सीमा में रहें और यह भ्रम न पालें कि उनके पास अदालत की प्रतिष्ठा को बनाने या बिगाड़ने की शक्ति है। न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की पीठ ने डीएम फतेहपुर को चेतावनी दी कि उनके शपथ पत्र में इस्तेमाल किए गए शब्दों के लिए उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों न की जाए। साथ ही, कखरेरू थाना प्रभारी को अगली सुनवाई में अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया।
मामला फतेहपुर के कलपुर मजरे बसवा गाँव से जुड़ा है, जहाँ डॉ. कमलेंद्र नाथ दीक्षित ने जनहित याचिका दायर कर सरकारी तालाब की जमीन से ग्राम प्रधान के अतिक्रमण को हटाने की मांग की। याचिका में पुलिस प्रशासन पर याचिका वापस लेने के लिए दबाव बनाने का भी आरोप लगाया गया। कोर्ट ने डीएम और ग्राम प्रधान से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा था।
डीएम ने हलफनामे में आरोपों से इनकार किया, लेकिन उनके शपथ पत्र के पैराग्राफ 17 पर कोर्ट ने नाराजगी जताई। इसमें डीएम ने अदालत को हुई असुविधा के लिए माफी मांगी और आश्वासन दिया कि भविष्य में अदालत की गरिमा बनाए रखने में कोई कोताही नहीं होगी। कोर्ट ने इन शब्दों को आपत्तिजनक माना और कहा कि यह दर्शाता है कि डीएम को लगता है कि वे अदालत की प्रतिष्ठा को प्रभावित कर सकते हैं।
कोर्ट ने डीएम को नया हलफनामा दाखिल कर स्पष्टीकरण देने को कहा कि उनके शब्दों के लिए कार्रवाई क्यों न हो। हैरानी की बात यह कि एसपी फतेहपुर के हलफनामे में भी समान शब्दों का उपयोग किया गया। कोर्ट ने सभी निजी प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया और याचिकाकर्ता को ग्राम सभा व अन्य अधिकारियों के शपथ पत्रों का जवाब दाखिल करने के लिए 6 मई तक का समय दिया।
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