व्हाट्सएप चैट भी सबूत: एमपी हाईकोर्ट ने तोड़ी गोपनीयता की दलील

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि पारिवारिक अदालतें (फैमिली कोर्ट) व्हाट्सएप चैट को सबूत के तौर पर स्वीकार कर सकती हैं, भले ही यह साक्ष्य गोपनीयता (प्राइवेसी) के अधिकार का उल्लंघन करके प्राप्त किया गया हो।

Jun 22, 2025 - 05:57
Jun 22, 2025 - 06:00
 0
व्हाट्सएप चैट भी सबूत: एमपी हाईकोर्ट ने तोड़ी गोपनीयता की दलील
मध्यप्रदेश हाई कोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ ने एक ऐसे मामले में अपना निर्णय सुनाया, जिसमें पति ने पत्नी के व्हाट्सएप चैट को, उसकी जानकारी के बिना एक स्पेशल ऐप के जरिए एक्सेस करके, तलाक के मामले में सबूत के रूप में पेश किया था। पत्नी ने इसका विरोध किया और कहा कि इस तरह से प्राप्त सबूत उसकी गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं और इन्हें अदालत में स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

अदालत की टिप्पणी

न्यायमूर्ति आशीष श्रोती की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गोपनीयता का अधिकार निरपेक्ष नहीं है। जब दो मौलिक अधिकारों गोपनीयता के अधिकार और निष्पक्ष सुनवाई (फेयर ट्रायल) के अधिकार के बीच टकराव होता है, तो गोपनीयता का अधिकार निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के आगे झुक सकता है।

अदालत ने कहा कि परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 14 के तहत अदालत को यह अधिकार है कि वह ऐसा साक्ष्य ग्रहण कर सकती है, जो विवाद को सुलझाने में मददगार हो, भले ही वह साक्ष्य भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत स्वीकार्य न हो। इस तरह, अदालत ने व्हाट्सएप चैट को सबूत के रूप में स्वीकार करने का निर्णय दिया।

अन्य महत्वपूर्ण बिंदु

  • निष्पक्ष सुनवाई को प्राथमिकता: अदालत ने स्पष्ट किया कि जनहित और निष्पक्ष सुनवाई के लिए साक्ष्य की प्रासंगिकता अधिक महत्वपूर्ण है, भले ही उसे गोपनीयता के उल्लंघन से प्राप्त किया गया हो।
  • साक्ष्य की प्रामाणिकता: अदालत ने यह भी कहा कि साक्ष्य की प्रामाणिकता (ऑथेंटिकेशन) और संबंधितता (रिलेवंस) सुनिश्चित होनी चाहिए।
  • पारिवारिक विवादों में लचीलापन: अदालत ने कहा कि पारिवारिक विवादों में साक्ष्य के नियमों में लचीलापन होना चाहिए, ताकि विवाद का प्रभावी समाधान हो सके।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के इस निर्णय से स्पष्ट है कि पारिवारिक अदालतें व्हाट्सएप चैट को सबूत के रूप में स्वीकार कर सकती हैं, भले ही उन्हें गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन करके प्राप्त किया गया हो, बशर्ते कि साक्ष्य प्रासंगिक और प्रामाणिक हो। इसमें निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को गोपनीयता के अधिकार से अधिक महत्व दिया गया है।

यह निर्णय पारिवारिक विवादों में डिजिटल साक्ष्य के उपयोग को लेकर एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करता है।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I