पुलिस की वर्दी नागरिकों पर हमला करने का लाइसेंस नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपी अधिकारियों ने आधिकारिक क्षमता से बाहर काम किया और उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।

Apr 28, 2025 - 21:55
Apr 28, 2025 - 22:10
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पुलिस की वर्दी नागरिकों पर हमला करने का लाइसेंस नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
हिरासत में हिंसा

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक डॉक्टर और उसके साथियों के साथ मारपीट, दुर्व्यवहार और गैरकानूनी हिरासत के आरोपी चार पुलिसकर्मियों को राहत देने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि पुलिस की वर्दी गैरकानूनी कृत्यों के लिए ढाल नहीं है और आरोपियों ने आधिकारिक कर्तव्यों से बाहर काम किया, इसलिए उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की जरूरत नहीं है।

न्यायमूर्ति राजबीर सिंह ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 528 के तहत दायर याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 197 के तहत सरकारी कर्मचारियों को तभी संरक्षण मिलता है, जब कृत्य उनके आधिकारिक कर्तव्यों से संबंधित हों।

अदालत ने कहा, “पुलिस की वर्दी नागरिकों पर हमले का लाइसेंस नहीं है।

आरोपी सब-इंस्पेक्टर अनिमेष कुमार और कांस्टेबल कुलदीप यादव, सुधीर व दुष्यंत ने भारतीय दंड संहिता की धाराओं 323 (स्वेच्छा से चोट), 342 (गलत हिरासत) और 394 (लूट के दौरान चोट) के तहत दर्ज मामले को रद्द करने की माँग की थी। यह मामला 28 जून 2022 की घटना से जुड़ा है, जब शिकायतकर्ता डॉक्टर अपने कर्मचारियों के साथ कानपुर से लौट रहे थे। आरोप है कि उनकी गाड़ी पुलिस की कार से टकरा गई, जिसके बाद पुलिसकर्मियों ने उनके वाहन को रोका, उन्हें घसीटकर बाहर निकाला, मारपीट की, सोने की चेन और नकदी छीनी, और उन्हें डेढ़ घंटे तक सरायमीरा पुलिस चौकी में गैरकानूनी हिरासत में रखा। चिकित्सा जाँच और चोट की रिपोर्ट ने इन आरोपों की पुष्टि की।

आरोपियों ने दावा किया कि वे गश्त पर थे और शिकायतकर्ता को लापरवाही से गाड़ी चलाने की चेतावनी देने के बाद यह शिकायत प्रतिशोध में दर्ज की गई। उन्होंने सीआरपीसी की धारा 197 के तहत बिना मंजूरी के मुकदमे को अवैध बताया। हालांकि, अदालत ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि कोई सबूत नहीं है कि आरोपी उस समय अधिकृत गश्त पर थे। कोई डायरी प्रविष्टि भी पेश नहीं की गई।

न्यायमूर्ति सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय के 'ओम प्रकाश यादव बनाम निरंजन कुमार उपाध्याय' मामले का हवाला देते हुए कहा कि धारा 197 का संरक्षण तभी लागू होता है, जब कृत्य और आधिकारिक कर्तव्य में उचित संबंध हो। अदालत ने पाया कि नागरिकों पर हमला, उनकी संपत्ति को नुकसान और गैरकानूनी हिरासत आधिकारिक कर्तव्य का हिस्सा नहीं हो सकते।

अदालत ने शिकायतकर्ता की गवाही, गवाहों के बयान और मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर प्रथम दृष्टया मामला बनने की पुष्टि की। इसलिए, आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की याचिका खारिज कर दी गई।

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