मुंबई कोर्ट ने ₹2.57 करोड़ की धोखाधड़ी में आरोपी वकील को जमानत देने से किया इनकार
बॉम्बे हाईकोर्ट के फर्जी आदेशों से ठगी, आरोपी का पूर्व आपराधिक इतिहास भी सामने आया

मुंबई की एक सत्र अदालत में हाल ही में एक अभूतपूर्व मामला सामने आया, जिसमें एक वकील ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फर्जी आदेशों का सहारा लेकर अपनी ही मुवक्किल से ₹2.57 करोड़ की ठगी कर ली। मामला केवल आर्थिक अपराध नहीं था, बल्कि इससे न्यायिक प्रणाली की शुचिता और विश्वसनीयता पर भी गहरा प्रश्नचिन्ह लगा।
मामला क्या है:
2022 में उर्मिला तलयारखान नामक एक महिला ने विनय कुमार अशोक खाटू नामक वकील को रायगढ़ जिले से संबंधित अपने दीवानी व संपत्ति विवादों में प्रतिनिधित्व हेतु नियुक्त किया था।
जब उन्हें पता चला कि 2018 में उनकी अपील अनुपस्थिति के कारण खारिज हो चुकी थी, तो खाटू ने उन्हें बताया कि दूसरी अपील दाखिल की जा सकती है और वह “अनुकूल आदेश” दिलवा देगा।
17 अक्तूबर व 12 दिसंबर 2022 को खाटू ने कथित तौर पर दो फर्जी न्यायिक आदेश प्रस्तुत किए जो बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एस. के. शिंदे द्वारा पारित बताए गए। इनमें कहा गया था कि निचली अदालत का आदेश स्थगित कर दिया गया है।
इन आदेशों को वास्तविक मानकर तलयारखान ने खाटू और उसके सहयोगियों को ₹2.57 करोड़ की राशि RTGS के माध्यम से हस्तांतरित कर दी।
कैसे खुली पोल:
जब खाटू ने पीड़िता के अलग हुए पति से जुड़े एक अन्य विवाद में कार्यवाही में रुचि नहीं दिखाई, तो तलयारखान ने दूसरी कानूनी राय ली। इस समीक्षा के दौरान यह सामने आया कि दिए गए आदेशों की अदालत में कोई प्रविष्टि नहीं है, न ही वे कभी लिस्ट हुए।
न्यायालय की सुनवाई:
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वी. जी. रघुवंशी ने इस मामले की सुनवाई करते हुए जमानत याचिका को सख्ती से खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा:
"एक प्रैक्टिसिंग वकील, जो न्यायिक प्रक्रिया से अच्छी तरह परिचित है, इस तरह की फर्जीवाड़े की योजना बनाता है, तो यह गंभीर सामाजिक और न्यायिक खतरा है।"
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि आरोपी के विरुद्ध पूर्व में दिल्ली और केरल में आईएएस अधिकारी बनकर छल करने के दो मामले दर्ज हैं, और इस प्रकार उसका आपराधिक इतिहास उसे जमानत के लिए अयोग्य बनाता है।
अभियोजन और बचाव पक्ष के तर्क:
बचाव पक्ष (आरोपी के वकील):
एफआईआर में देरी हुई है।
आरोप अस्पष्ट हैं।
₹2.57 करोड़ पेशेवर फीस के तौर पर दी गई राशि है।
आरोप पत्र दाखिल हो चुका है, अब हिरासत की आवश्यकता नहीं।
अभियोजन पक्ष (राज्य की ओर से):
आरोपी ने धारा 409 (आपराधिक विश्वासघात) और धारा 467 (मूल्यवान दस्तावेज की जालसाजी) जैसे गंभीर अपराध किए हैं।
अदालत ने पाया कि आरोपी ने अपनी भरोसेमंद स्थिति का दुरुपयोग किया और ऐसा अपराध किया, जिससे सबूतों से छेड़छाड़ की आशंका है।
शिकायतकर्ता के ड्राइवर की गवाही से पुष्टि होती है कि आदेश खाटू ने स्वयं सौंपे।
अदालत का निष्कर्ष:
न्यायालय ने कहा कि यदि इस परिस्थिति में आरोपी को जमानत दी जाती है, तो यह “समाज में नकारात्मक संदेश देगा” और अन्य वकीलों को भी अपराध करने का मनोबल मिल सकता है। एक अनुभवी वकील होते हुए भी इस तरह की गतिविधियों में शामिल होना न केवल नैतिक पतन है बल्कि न्याय व्यवस्था पर विश्वास की हत्या है।
पेश हुए अधिवक्ता:
खाटू की ओर से: अधिवक्ता अनिकेत निकम, कौशल्या पाटिल, स्मिता सोनावणे, वैशाली राजकर्णे (पुष्पा गनेडीवाला एंड कंपनी द्वारा निर्देशित)
राज्य की ओर से: सहायक लोक अभियोजक अजीत चव्हाण
शिकायतकर्ता की ओर से: अधिवक्ता रमिज़ शेख व रिज़वान मर्चेंट
कानूनी प्रावधान:
IPC धारा 409: आपराधिक विश्वासघात
IPC धारा 467: मूल्यवान प्रतिभूतियों व दस्तावेजों की जालसाजी
धारा 468, 471: धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी व नकली दस्तावेज़ों का उपयोग
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