"डिक्शनरी चाहिए आपको!" अली खान महमूदाबाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने SIT को लगाई फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने अशोक विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की फेसबुक पोस्ट पर जाँच कर रही विशेष जाँच टीम (SIT) को जमकर फटकार लगाई है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल बागची की पीठ ने स्पष्ट किया कि SIT अपनी सीमाएं लांघ रही है और जाँच केवल दो FIRs तक सीमित रहनी चाहिए। कोर्ट ने SIT को चार हफ्तों में जाँच पूरी करने और महमूदाबाद को दोबारा तलब न करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने SIT की गलत व्याख्या पर टिप्पणी करते हुए कहा, "आपको डिक्शनरी की जरूरत है।" कोर्ट ने महमूदाबाद को गिरफ्तार न करने की अंतरिम राहत भी जारी रखी।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अशोका विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के फेसबुक पोस्ट को लेकर दर्ज दो एफआईआर की जाँच कर रही विशेष जाँच टीम (SIT) पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि टीम अपनी निर्धारित सीमाओं से बाहर जाकर अनावश्यक जाँच कर रही है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि SIT को केवल उन दो फेसबुक पोस्टों तक ही अपनी जाँच सीमित रखनी होगी, जिनके संबंध में FIR दर्ज की गई है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल बागची की पीठ ने जब ASG (अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल) एसवी राजू ने SIT को जाँच पूरी करने के लिए दो महीने का समय देने की माँग की, तो कोर्ट ने इसे अस्वीकार करते हुए तीखी टिप्पणी की - "आपको महमूदाबाद की ज़रूरत नहीं... आपको डिक्शनरी की ज़रूरत है!"
यह टिप्पणी SIT द्वारा महमूदाबाद की पोस्ट के अर्थ को लेकर की गई गलत व्याख्या पर आधारित थी। न्यायालय का कहना था कि पोस्ट की भाषा की व्याख्या गलत दिशा में की जा रही है, जबकि वह युद्ध और आतंकवाद के विरोध में है और एक लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति है।
क्या है मामला?
अली खान महमूदाबाद ने ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ और आतंकवाद के विरुद्ध भारत के सैन्य अभियान पर फेसबुक पोस्ट लिखी थी, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की आलोचना की और साथ ही भारत में हो रही भीड़ हिंसा पर चिंता जताई थी। उन्होंने यह भी कहा था कि जो सम्मान कर्नल सोफिया कुरैशी को मिला है, वह जमीनी स्तर पर भी दिखना चाहिए। उनके इस पोस्ट पर दो एफआईआर दर्ज की गईं-
1. पहली FIR: शिकायतकर्ता योगेश जथेरी ने BNS की धारा 196 (घृणा फैलाना), 197 (राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध कथन), 152 (संप्रभुता को खतरा), और 299 (ग़ैर इरादतन हत्या) के तहत केस दर्ज कराया।
2. दूसरी FIR: हरियाणा महिला आयोग की चेयरपर्सन रेनू भाटिया ने BNS की धारा 353 (सार्वजनिक उपद्रव), 79 (मर्यादा का अपमान), और पुनः धारा 152 के तहत शिकायत दर्ज कराई।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप और टिप्पणियाँ
अली खान महमूदाबाद की गिरफ़्तारी के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर FIR रद्द करने की माँग की। कोर्ट ने 19 मई को उन्हें अंतरिम ज़मानत दी और SIT गठित कर दी ताकि हरियाणा पुलिस की पक्षपातपूर्ण जाँच से बचा जा सके।
कोर्ट ने कहा-
SIT केवल उन्हीं दो पोस्टों की जाँच करे जिन पर FIR दर्ज हुई है।
महमूदाबाद को दोबारा तलब करने की जरूरत नहीं है।
वे किसी भी विषय पर पोस्ट या लेख लिखने के लिए स्वतंत्र हैं, बशर्ते वह विषय न्यायालय में लंबित न हो।
SIT को 4 हफ्तों में जाँच पूरी करनी होगी।
अदालत में क्या-क्या हुआ?
ASG SV Raju: उन्होंने SIT को जाँच पूरी करने के लिए दो महीने का समय माँगा और कहा कि महमूदाबाद को भविष्य में फिर से तलब किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत: "आपको महमूदाबाद की नहीं, डिक्शनरी की ज़रूरत है।"
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल: महमूदाबाद की ओर से पेश हुए और कहा, "यह बयान सबसे अधिक देशभक्तिपूर्ण है।" "SIT एक अवैध 'रोविंग इंक्वायरी' (अधिकार से बाहर की जाँच) कर रही है।"
न्यायालय का निष्कर्ष और आदेश
1. जाँच की सीमा तय: सिर्फ दो पोस्ट, सिर्फ उनके शब्दों और भाषा पर आधारित जाँच।
2. दोबारा समन नहीं: महमूदाबाद को फिर से बुलाने की आवश्यकता नहीं।
3. स्वतंत्र अभिव्यक्ति: सोशल मीडिया या लेखन पर कोई रोक नहीं, बस कोर्ट से जुड़े मामलों पर टिप्पणी न करें।
4. अंतरिम संरक्षण जारी: गिरफ्तारी से अंतरिम राहत बनी रहेगी।
यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?
स्वतंत्र अभिव्यक्ति की रक्षा: कोर्ट ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि किसी व्यक्ति के विचारों को लेकर राज्य दमन नहीं कर सकता, जब तक वे संविधान के विरुद्ध स्पष्ट रूप से अपराध नहीं बनते।
जाँच एजेंसियों पर लगाम: SIT जैसी संस्थाएं अपनी सीमाओं में रहकर काम करें, यह निर्देश लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।
सांविधानिक मूल्यों की पुष्टि: कोर्ट ने यह भी दोहराया कि आलोचना और असहमति लोकतंत्र की आत्मा है, और उसे देशद्रोह या आपराधिक इरादे से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
What's Your Reaction?






