सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: पंजाब में 1,000 से अधिक सहायक प्राध्यापकों की नियुक्तियाँ रद्द, यूजीसी मानकों के उल्लंघन पर कड़ी फटकार
भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी किए जाते हैं। यदि कोई राज्य सरकार इन दिशा-निर्देशों की अवहेलना करते हुए नियुक्तियाँ करती है, तो यह न केवल शैक्षिक संस्थानों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है, बल्कि संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) का भी उल्लंघन होता है।

भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी किए जाते हैं। यदि कोई राज्य सरकार इन दिशा-निर्देशों की अवहेलना करते हुए नियुक्तियाँ करती है, तो यह न केवल शैक्षिक संस्थानों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है, बल्कि संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) का भी उल्लंघन होता है। ऐसे ही एक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार द्वारा की गई 1,158 सहायक प्राध्यापक और पुस्तकालयाध्यक्षों की नियुक्तियों को रद्द कर दिया है, यह कहते हुए कि यह प्रक्रिया संवैधानिक और यूजीसी नियमों के विरुद्ध है।
घटना का क्रम:
जनवरी 2021 में पंजाब सरकार ने 931 सहायक प्राध्यापक और 50 पुस्तकालयाध्यक्ष पदों की नियुक्तियों हेतु पंजाब लोक सेवा आयोग (PPSC) को अधिकृत किया था।
बाद में, नए कॉलेजों की स्थापना के चलते 160 और सहायक प्राध्यापकों तथा 17 पुस्तकालयाध्यक्षों के पद और स्वीकृत किए गए।
सितंबर–अक्तूबर 2021 में सरकार बदलने के बाद, नई सरकार ने PPSC को दरकिनार कर, दो विभागीय चयन समितियों के माध्यम से सभी 1,158 पद भरने का निर्णय लिया।
चयन प्रक्रिया केवल बहुविकल्पीय प्रश्नों वाली एकल लिखित परीक्षा पर आधारित थी। साक्षात्कार, अकादमिक रिकॉर्ड, शोध कार्य आदि यूजीसी द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया।
न्यायिक प्रक्रिया का विवरण:
अगस्त 2022 में, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की एकल पीठ ने इस चयन प्रक्रिया को असंवैधानिक बताते हुए पूरी नियुक्ति रद्द कर दी।
इसके खिलाफ राज्य सरकार और चयनित अभ्यर्थियों ने खंडपीठ में अपील की।
सितंबर 2024 में खंडपीठ ने एकल पीठ का निर्णय पलटते हुए चयन प्रक्रिया को वैध करार दे दिया।
इससे आहत होकर याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुँचे।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और टिप्पणियाँ:
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने इस मामले में स्पष्ट शब्दों में कहा: "यह चयन प्रक्रिया न केवल यूजीसी के नियमों का उल्लंघन है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का भी हनन करती है।"
"यूजीसी विनियम अनिवार्य प्रकृति के हैं, विशेषकर उन विश्वविद्यालयों और कॉलेजों पर जो यूजीसी से वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं।"
"राज्य द्वारा प्रक्रिया में अत्यधिक जल्दबाज़ी और बिना कोई ठोस कारण के मानकों से विचलन, मनमाना और राजनीति से प्रेरित था।"
"राज्य यह नहीं कह सकता कि यह एक नीति निर्णय था और इससे मनमानेपन को छुपाया जा सकता है।"
कोर्ट ने यह भी दोहराया कि किसी भी चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता, निष्पक्षता और योग्यता का पालन अनिवार्य है, और यह राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है।
न्यायालय का निर्देश:
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की खंडपीठ के फैसले को रद्द करते हुए एकल पीठ का निर्णय बहाल किया और निर्देश दिया कि पंजाब सरकार UGC के 2018 नियमों के अनुसार नयी चयन प्रक्रिया शुरू करे।
कानूनी प्रतिनिधित्व:
याचिकाकर्ताओं की ओर से:
वरिष्ठ अधिवक्ता: निधेश गुप्ता, राजू रामचंद्रन, प्रीतेश कपूर, रेखा पल्लि
सहायक अधिवक्ता: चृतार्थ पल्लि, आंचल जैन, करन देववन, अदिति गुप्ता
प्रतिवादी (चयनित अभ्यर्थियों) की ओर से:
वरिष्ठ अधिवक्ता: कपिल सिब्बल, राकेश द्विवेदी, पी.एस. पतवालिया
पंजाब राज्य की ओर से:
अतिरिक्त महाधिवक्ता: शदान फरासत
उपमहाधिवक्ता: विवेक जैन
अन्य अधिवक्ता: सिद्दांत शर्मा, विक्रांत पचनंदा, अवनित अवस्थी, मुकुल कात्याल, अमरजीत सिंह, तल्हा अब्दुल रहमान, एम. शाज़ खान, मोहित डी. राम, रजुल श्रीवास्तव, नयन गुप्ता आदि।
यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका द्वारा शैक्षणिक संस्थानों में पारदर्शी और योग्यता आधारित नियुक्तियों की अनिवार्यता को दोहराता है। इससे यह स्पष्ट संदेश जाता है कि संवैधानिक मूल्य और नियामक संस्थाओं के मानदंड सर्वोपरि हैं, और राज्य सरकारें अपनी सुविधा या राजनीतिक कारणों से उन्हें अनदेखा नहीं कर सकतीं।
What's Your Reaction?






