जौनपुर पुलिस पर हाईकोर्ट की सख्त कार्रवाई: एसएचओ और दारोगा निलंबित, समूचे प्रदेश के लिए आचरण संहिता तय करने को कहा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनहित याचिका संख्या 1118/2025 की सुनवाई में अभूतपूर्व सख्ती दिखाते हुए जौनपुर के थाना मुंगरा बादशाहपुर के पुलिसकर्मियों की भूमिका पर कठोर टिप्पणियां की हैं। 92 वर्षीय याचिकाकर्ता और उनके पोते को धमकाने और रिश्वत लेने के गंभीर आरोपों के बाद एसएचओ और एक दरोगा को निलंबित कर दिया गया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को सभी जिलों में लागू होने वाली एक पारदर्शी नीति बनाने के निर्देश भी दिए हैं।

जौनपुर | 16 जुलाई 2025 | ग्रामसभा की भूमि को बचाने की लड़ाई लड़ रहे 92 वर्षीय पूर्व सैनिक गौरीशंकर सरोज की जनहित याचिका पर चल रही सुनवाई में न्यायपालिका की दृढ़ता एक बार फिर सामने आई है।
8 जुलाई को कोर्ट का रुख सख्त हुआ
कोर्ट के समक्ष जब गौरीशंकर सरोज और उनके पोते रजनीश ने बयान दिया कि पुलिस ने उन्हें पीआईएल वापस लेने का दबाव बनाने के लिए घर में घुसकर धमकाया, जबरन उठाकर ले गए और ₹2000 की रिश्वत लेकर छोड़ा, तब अदालत ने जौनपुर एसपी द्वारा कराई गई प्रारंभिक जांच को खारिज करते हुए स्वयं एसपी को पुनः जाँच का आदेश दिया।
11 जुलाई को सच्चाई सामने आई
एसपी डॉ. कौस्तुभ ने व्यक्तिगत हलफनामे में माना कि याचिकाकर्ता के साथ पुलिस का व्यवहार गंभीर रूप से गैरकानूनी था। उन्होंने तुरंत प्रभाव से कांस्टेबल पंकज मौर्य और नितेश गौड़ को निलंबित, थाना प्रभारी को 09 जुलाई को निलंबित, और हल्का लेखपाल व अन्य पर केस दर्ज कर भ्रष्टाचार और एससी/एसटी एक्ट में एफआईआर (क्राइम संख्या 0175/2025) दर्ज कराई।
मामला यहीं नहीं रुका
पीआईएल अधिवक्ता विष्णुकांत तिवारी के अनुसार, पुलिस ने 09 जुलाई की रात उनके घर पर छापा मारा, मोबाइल पर कॉल किया और उनके पिता से बदसलूकी की। कोर्ट ने इसे लोकतंत्र और न्यायिक प्रणाली के लिए खतरनाक बताया और पुलिस को अधिवक्ता और उनके परिजनों से किसी भी प्रकार के संपर्क, गिरफ्तारी या धमकी पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया।
15 जुलाई का आदेश: दायरा बढ़ा
कोर्ट ने 15 जुलाई को सुनवाई में आदेश दिया कि:
जौनपुर पुलिस अधीक्षक ने कोर्ट को सूचित किया कि थाना मुंगरा बादशाहपुर के एसएचओ को 9 जुलाई 2025 को तथा उसी थाने में तैनात उपनिरीक्षक इंद्र देव सिंह को 11 जुलाई 2025 को निलंबित कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त अन्य संबंधित पुलिसकर्मियों को कारण बताओ नोटिस भी जारी किए गए हैं।
12 जुलाई को समस्त थानों को निर्देश दिया गया कि वे किसी भी न्यायिक विवाद से जुड़े स्थल पर बिना अदालत की अनुमति के न जाएं और किसी अधिवक्ता से सीधे संपर्क न करें।
राज्य सरकार को प्रदेश स्तरीय दिशानिर्देश बनाने हेतु 10 दिन का समय दिया गया है।
अगली सुनवाई 28 जुलाई 2025 को नियत की गई है।
महत्वपूर्ण निर्देश:
कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश देते हुए कहा है कि अब से कोई भी पुलिसकर्मी किसी भी ऐसे स्थल पर, जो न्यायालय में विचाराधीन हो, बिना अदालत की अनुमति के नहीं जाएगा और मुकदमे के अधिवक्ता से सीधा संपर्क भी नहीं करेगा।
इसके साथ ही, राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने बताया कि सरकार प्रदेश भर में इस तरह की परिस्थितियों से निपटने हेतु समग्र दिशा-निर्देश तैयार करने जा रही है। उन्होंने इसके लिए 10 दिन का समय माँगा, जिसे कोर्ट ने स्वीकृत कर दिया।
कोर्ट ने एसपी जौनपुर को भी उनके व्यक्तिगत शपथपत्र के उत्तर हेतु 10 दिन का समय दिया है और अगली सुनवाई की तिथि 28 जुलाई 2025 दोपहर 2 बजे नियत की गई है।
इस प्रकरण ने एक बार फिर न्यायपालिका की सजगता और पुलिस जवाबदेही की अहमियत को रेखांकित किया है। अब देखना यह होगा कि आगामी सुनवाई में राज्य सरकार और पुलिस विभाग क्या ठोस कदम उठाते हैं।
न्यायालय की विशेष टिप्पणी:
“यदि अधिवक्ताओं को उनके पेशे के कारण पुलिस द्वारा डराया जाएगा, तो न्यायिक प्रणाली का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।” — न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर
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